तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली जिले के 70 वर्षीय किसान राजगोपाल ने जब अपनी बेटी की शादी के लिए 1.2 एकड़ जमीन बेचने की कोशिश की तो वे हैरान रह गए। सब-रजिस्ट्रार के ऑफिस में उन्हें 20 पन्नों का एक दस्तावेज मिला जिसमें कहा गया था कि उनकी जमीन असल में तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की है।
सिर्फ राजगोपाल की ही नहीं, बल्कि उनका पूरा गांव थिरुचेंथुरई की जमीन पर वक्फ बोर्ड ने दावा ठोका है। इसमें 1,500 साल पुराना सुंदरेश्वर मंदिर भी शामिल है। सिर्फ यह गांव नहीं बल्कि आसपास के 18 गांवों में भी वक्फ बोर्ड ने दावा किया है। जब इसकी जानकारी सामने आई तो सिर्फ गांव वाले ही नहीं बल्कि पूरा देश हैरान रह गया। यह सिर्फ एक घटना नहीं है बल्कि अब लगभग हर दिन किसी न किसी जमीन पर वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है।
दो गांवों के दान से शुरु हुआ जमीन पर ‘अवैध कब्जे’ का खेल:
खिलजी और तुगलक की सेना में कमांडर रहे ऐन अल-मुल्क मुल्तानी की फारसी पुस्तक इंशा-ए-माहरू के अनुसार, इस्लामिक आक्रांता मुइज़ुद्दीन सैम उर्फ मुहम्मद गौरी ने साल 1185 में पंजाब पर कब्जा करने के बाद मुल्तान की जामा मस्जिद को दो गांव उपहार में दिए थे। इसके बाद आगे चलकर ये गांव वक्फ घोषित कर दिए गए। मुल्तानी की पुस्तक में उस दौरान आधिकारिक पत्राचार के लिए इस्तेमाल किए गए सैकड़ों पत्रों और उनके नमूनों का संग्रह है। पत्र संख्या 16 में कहा गया है कि शुरुआती ‘वक्फ संपत्तियों’ का उपयोग मुख्य रूप से धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाता था। 1206 में मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद उसके गुलामों ने उसके राज्य की कमान संभाली और गुलाम वंश की शुरुआत की। इन मुस्लिम आक्रांताओं और उसके बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले लोगों ने संपत्तियों को वक्फ करने की परंपरा को आगे बढ़ाया।
ऐसा माना जाता है कि दिल्ली की सत्ता में बैठे इस्लामिक आक्रांताओं ने ही मुल्तान की मस्जिद को दान की गई जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित किया था। बिहार अल्पसंख्यक मंत्रालय के अपर सचिव एवं निदेशक डॉ. अमीर आफाक अहमद फैजी के अनुसार, बदायूं में स्थित मीरान मुलहिम की कब्र, बिलग्राम में ख्वाजा मजदुद्दिन की कब्र, गोपामन के अजमत टोला में लाल पीर की दरगाह, बदायूं में बिल्सी रोड पर स्थित कब्रिस्तान तथा उन्नाव के असीवन में गंज-ए-शहीदान, भारत में सबसे पुरानी वक्फ संपत्तियाँ हैं। अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा सितंबर में संसद में पेश किए गए वक्फ संशोधन विधेयक 2024 में भी इस बात का जिक्र है कि जैसे-जैसे इस्लामी आततायी दिल्ली की सत्ता के अलावा देश के अन्य हिस्सों में कब्जा करते चले गए, वैसे-वैसे भारत में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती चली गई।
उल्लेखनीय है कि इस्लामिक आक्रांता बाबर से लेकर शाहजहां तक तक सबने तलवार के दम पर लोगों को धर्मांतरित किया था। इस दौरान सैकड़ों एकड़ जमीन पर भी कब्जा किया था। इस दौरान हजारों मंदिरों को तोड़कर उनके ऊपर मस्जिद का ढांचा भी खड़ा किया गया था। इन सबके बीच जब भी कहीं मकबरा या मस्जिद बनवाने का मन होता था तो वहां की जमीन वक्फ कर दी जाती थी। इसके अलावा हिंदुओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई पूजा व धार्मिक स्थलों को भी वक्फ किया गया था।
इस्लामिक आक्रांताओं ने जिस सोच के साथ संपत्तियों को वक्फ करने की शुरुआत की थी उस पर ‘चार चाँद’ लगाने और भारत की भूमि पर अवैध कब्जे को मान्यता देने का काम अंग्रेजों ने कर दिया। दरअसल, साल 1923 में ब्रिटिश लुटेरों द्वारा मुस्लिम वक्फ अधिनियम की शुरुआत की थी। बची हुई कसर, आजादी के बाद साल 1954 में नेहरू सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम बनाकर पूरी कर दी गई। इसके बाद साल 1995 और 2013 में कांग्रेस सरकारों द्वारा संविधान संसोधन कर वक्फ बोर्ड को और भी अधिक शक्तियां दे दी गईं। इसके बाद वक्फ लगातार एक के बाद सैकड़ों संपत्तियों पर दावा ठोकता चला गया।
आज वक्फ बोर्ड का नाम भारत में सबसे अधिक संपत्ति वाली संस्थाओं में गिना जाता है। इस्लामिक आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी द्वारा वक्फ को उपहार में दिए गए दो गांवों से लेकर दिल्ली की सत्ता में कब्जा करने वाले आक्रांताओं के दौरान जमीन में कब्जे से लेकर आज वक्फ बोर्ड करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन में फैली 8.7 लाख से अधिक संपत्तियों पर कब्जा किया हुआ है। इनमें से कई संपत्तियों की कीमत अरबों में है।
कांग्रेस सरकार के द्वारा वक्फ बोर्ड को दिए गए मनमाने अधिकारों को सीमित करने के लिए ही केंद्र की भाजपा सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पेश किया था। फिलहाल यह विधेयक रिव्यू के लिए संसदीय समिति को भेजा गया है। साथ ही अब साल 2025 में इसके संसद में पेश होने की उम्मीद है।
क्या है वक्फ:
वक्फ शब्द का अर्थ कोई भी वस्तु या स्थान अल्लाह हो सौंपना है। इस्लाम के अनुसार, कोई संपत्ति यदि वक्फ कर दी जाती है अर्थात अल्लाह के नाम पर समर्पित कर दी जाती है तो फिर वह हमेशा के लिए अल्लाह की ही रहती है, मतलब किसी व्यक्ति का इस पर अधिकार नहीं रहता। इस्लाम के अनुसार वक्फ संपत्ति पर परोपकार के ही कार्य हो सकते हैं। चूंकि वक्फ संपत्ति का मालिकाना हक अल्लाह को दे दिया जाता है, ऐसी स्थिति में उस संपत्ति को कभी वापस नहीं लिया जा सकता। सीधे शब्दों में कहें तो जो संपत्ति अल्लाह की हो चुकी है, वह हमेशा अल्लाह की ही रहेगी। यानी वक्फ वस्तु हमेशा वक्फ की ही रहेगी।