तैमूर लंग – एक ऐसा नाम, जो भारत में सदियों तक खौफ का पर्याय रहा। कम से कम दिल्ली और उसके आसपास के इलाक़ों में 14वीं शताब्दी में तैमूर का नाम बच्चों को डराने के लिए तो लिया ही जाता था। तैमूर के दिल्ली हमले का इतिहास इस शहर के सबसे काले अध्यायों में से एक है। कई वामपंथी इतिहासकारों ने तैमूर को ‘बहादुर’ बता कर उसका महिमामंडन भी किया। बच्चों को तैमूर की कहानियाँ पढ़ाई गईं, लेकिन भुला दिए गए वो अत्याचार जो उसने भारतीयों पर किए। भुला दिया गया कि कैसे तैमूर लंग ने दिल्ली में लाशें बिछाई थीं। कैसे भेड़-बकरियों की तरह इंसानों का खून बहाया गया था। आइए, तैमूर के उस असली इतिहास की बात करते हैं।
तैमूर के दिल्ली हमले का इतिहास और उसके बारे में असली जानकारी लोगों तक पहुँचानी इसीलिए भी आवश्यक है, ताकि आज के सेलेब्रिटी अपने बच्चों का नाम उसके नाम पर न रखें और उसका गुणगान न करें।
तैमूर एक तुर्क-मंगोल आक्रांता था। उसने तैमूरी राजवंश की स्थापना की, जो अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया में फैला हुआ था। भारत में जो मुग़ल राजवंश था, वो तैमूर का ही वंशज था। तैमूर को कला एवं आर्किटेक्चर का संरक्षक व पोषक बता कर पेश किया जाता रहा है, लेकिन इसकी आड़ में उसकी क्रूरता को छिपा दिया जाता है। आज जिसे उज्बेकिस्तान कहते हैं, वहीं तैमूर का जन्म हुआ था। सन् 1370 के आसपास उसने चग़ताई ख़ानत को अपने नियंत्रण में लिया। इसके बाद उसने मंगोल साम्राज्य के ‘गोल्डन हॉर्ड’, ऑटोमन साम्राज्य, मिस्र-सीरिया के मामलुक सल्तनत और दिल्ली सल्तनत को विभिन्न सैन्य अभियानों में हराया।
कौन था क्रूर शासक तैमूर, कैसी थी उसकी फ़ौज
तैमूर खानाबदोश बरलास जनजाति की गोरगान शाखा से ताल्लुक रखता था। उसका अब्बा तुरगाई ट्रांसऑक्सियाना (वर्तमान उज्बेकिस्तान और उसके आसपास के इलाक़े) के काश क्षेत्र का गवर्नर था। तैमूर का जन्म 1320 के आपस हुआ था, सन् 1336 में एक तीर लगने के कारण वो लँगड़ा हो गया था। 1370 में वो बल्ख का शासक बना। तैमूर जिस भी क्षेत्र को जीतता, वहाँ माल-ए-अमान लगाता, यानी रक्षा कर (Tax)। तैमूर ने अपने सैन्य अभियानों को एकदम संगठित रूप से चलाया, यानी वो पूरी योजनाबद्ध तरीके से हमलों को अंजाम देता था। लेकिन, उसकी जीत के बाद जो कहर मचता था वो तो बिलकुल भी योजनाबद्ध नहीं होता था।
तैमूर की फौज इतनी भयानक थी कि उसके बारे में क्या ही कहा जाए। 15वीं सदी के सीरियाई इतिहासकार इब्न अरबशाह ने लिखा था, “तातार सेना का दृश्य विनाशकारी था। जंगली जानवर इकट्ठा होकर ज़मीन पर बिखरे हुए प्रतीत होते थे और सितारे तितर-बितर हो जाते थे, जब उसकी सेना इधर-उधर गमन करती थी। पर्वत चलते दिखाई देते थे जब सेना बढ़ती थी और कब्रें उखाड़ दी जाती थीं जब वह कूच करती थी। ऐसा लगता था मानो पृथ्वी हिंसक गति से हिल उठी हो।” (उस समय मंगोल और तुर्क जनजातियों को यूरोपियनों ने ‘तातार’ कह कर ही संबोधित किया।)
दिल्ली में ऐसे घुसा तैमूर, भाग खड़े हुए तुगलक
तैमूर के भारतीय सैन्य अभियान की बात करें तो वो सिंध और झेलम नदियों को पार कर के यहाँ घुसा और उसने मुल्तान, भटनेर और कैथल पर अपना कब्ज़ा जमाया। उसके सैन्य अभियान की ख़ासियत ये थी कि वो जहाँ से भी गुजरता, वहाँ से लाशों के ढेर लगाते चलता। शहर के शहर श्मशान बनते चले गए। वो दिसंबर 1398 का पहला सप्ताह था, जब तैमूर ने दिल्ली में क़दम रखा। उस समय दिल्ली की गद्दी पर तुगलक राजवंश का नसीरुद्दीन महमूद शाह बैठा हुआ था। उसने अपने मंत्री मल्लू इक़बाल खान को फौज सहित तैमूर को रोकने के लिए लगाया।
दिल्ली में तुगलक और तैमूर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन, हमें ये जानना चाहिए कि उससे पहले उसने क्या किया। तैमूर ने 1 लाख हिन्दुओं को बंदी बनाया हुआ था। उसने उन सबकी हत्या का आदेश दिया। इस तरह 1 लाख निर्दोष हिन्दू मार डाले गए। तुगलक फौज बहादुरी से लड़ी, लेकिन अंततः महमूद को भाग कर गुजरात में शरण लेनी पड़ी। हौज ख़ास में उलेमाओं ने तैमूर का स्वागत किया और उपहार भेंट किए। साथ ही उससे क्षमा-याचना भी की गई। तैमूर ने इस दौरान दिल्ली के नागरिकों को नुकसान न पहुँचाने की बात कही।
हालाँकि, उसकी फौज यहाँ जिस तरह से तबाही मचा रही थी, यहाँ के लोगों ने भी प्रतिकार करना शुरू कर दिया था। तैमूर ने अपना वादा तोड़ दिया और उसने पूरी दिल्ली को तहस-नहस करने व यहाँ के लोगों के नरसंहार का आदेश दिया। ये क्रम कई दिनों तक चलता रहा। सैकड़ों लोगों को बंदी बनाया गया, भारी मात्रा में लूट जमा किए गए। इसे इस तरह समझ लीजिए कि तैमूर की फौज का एक-एक शख्स रातोंरात अमीर हो गया। जो सबसे गरीब था, उसके पास भी कम से कम 20 नौकर थे। तैमूर ने यहाँ से बड़ी संख्या में कलाकारों को भी बंदी बनाया और उन्हें समरकंद में बीबी-खानम मस्जिद बनाने के लिए भेजा गया।
लगभग 15 दिनों तक तैमूर दिल्ली में रुका, उसके बाद वो यमुना नदी पार कर के फिरोजाबाद की तरफ बढ़ चला। फिर वो हरिद्वार पहुँचा और उसने कांगड़ा होते हुए जम्मू को अपना निशाना बनाया। शिवालिक की पहाड़ियाँ उसकी बर्बरता की साक्षी बनीं। जम्मू में भी वैसी ही तबाही मचाई गई। इतिहास में झाँकने पर आप पाएँगे कि तैमूर ने दिल्ली हमले के दौरान ऐसी तबाही मचाई थी कि दिल्ली में धन-धान्य, व्यापार-कारोबार और आम जनजीवन का कोई नामोनिशान नहीं बचा। भुखमरी से लोग तड़प रहे थे, खाने को अन्न का दाना नहीं था। लेखिका प्रभा चोपड़ा द्वारा संपादित ‘Delhi Gazetteer‘ में बताया गया है कि तैमूर के जाने के बाद 3 महीनों तक दिल्ली बिना शासन व शासक के चलता रहा, श्मशान बना रहा।
तैमूर के दिल्ली हमले का इतिहास, शहर बना शमशान
फ़ारसी इतिहासकार फ़िरिश्ता ने लिखा है कि दिल्ली की कुछ गलियों में लाशों का ऐसा अंबार लगा हुआ था कि उधर से कोई गुजर भी नहीं सकता था। तैमूर ने तभी यहाँ से अपनी फ़ौज को आगे बढ़ने का आदेश दिया था, जब मारने के लिए कोई बचा ही नहीं था, लूटने के लिए उनकी नज़र में कुछ बचा ही नहीं था। बड़ी संख्या में महिलाओं को सेक्स-स्लेव बना दिया गया।
इतिहासकार अब्दुल कादिर बदायूनी द्वारा लिखे गए ‘मुंतख़ब-उल-तवारीख़’ के शब्दों में समझें तो, “दिल्ली में जो निवासी बचे थे, वे अकाल और महामारी से मर गए और 2 महीने तक दिल्ली में परिंदे तक ने पर नहीं मारा।” महमूद के समय नसरत शाह नामक तुगलक भी गद्दी का दावेदार था। तैमूर के डर से वो भी भाग खड़ा हुआ था। जब वो दिल्ली लौटा तो उसे महमूद के मंत्री मल्लू इकबाल ने खदेड़ दिया। सन् 1401 में महमूद ने लौट कर गद्दी तो सँभाली लेकिन दिल्ली उबर नहीं पाई। 1413 में उसकी मौत के साथ ही गियासुद्दीन तुगलक द्वारा सन् 1320 में स्थापित इस राजवंश का अंत हो गया।
तैमूर एक ऐसा शासक था जिससे पूरा यूरेशिया थर्र-थर्र काँपता था। भारत और चीन में से किसी एक पर उसे हमला करना था और उसने भारत को चुना। उसके फौज के जो ‘मालिक’ (Military Chiefs) थे, उनका कहना था कि भारत की जलवायु काफी गर्म है और वहाँ सैन्य अभियान मुश्किलों भरा होगा। लेकिन, अन्य इस्लामी शासकों की तरह तैमूर ने भी इसे ‘जिहाद’ का नाम दिया। उसने इस्लाम का हवाला देते हुए कहा कि ये हिन्दुओं और हिंदुस्तान के खिलाफ ‘जिहाद’ होगा। हालाँकि, साथ-साथ वो कमजोर पड़ी दिल्ली सल्तनत को लूटना भी चाहता था।
और इस तरह इतिहास में तैमूर के दिल्ली हमले का ये हिंसक अध्याय जुड़ा। तैमूर ने बड़ी चालाकी से