उत्तराखंड ने भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय लिखा है। धामी सरकार ने पिछले साल 6 फरवरी को एक विशेष विधानसभा सत्र में समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक पेश किया था, जिसे अगले ही दिन, 7 फरवरी को भारी बहुमत के साथ पारित कर दिया गया। इसके बाद, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 मार्च को इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर इसे कानून का दर्जा दिया।
अब, 27 जनवरी 2025 से, उत्तराखंड स्वतंत्र भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। यह कदम न केवल सभी नागरिकों को एक समान कानून के दायरे में लाने का प्रयास है, बल्कि यह ‘एक राष्ट्र, एक कानून’ के सिद्धांत को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा बदलाव भी है। UCC का क्रियान्वयन समाज में समानता, न्याय और एकता को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस प्रयास है।
समाज में समानता की ओर
उत्तराखंड ने देश में समानता और न्याय की एक नई मिसाल पेश करते हुए समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। यह कदम समाज में एकरूपता लाने और सभी नागरिकों को समान अधिकार और जिम्मेदारियां देने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आत्मनिर्भर और संगठित भारत के निर्माण के संकल्प में उत्तराखंड का यह योगदान बेहद अहम है।
समान नागरिक संहिता के तहत, उन सभी भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने का प्रयास किया गया है जो धर्म, जाति, लिंग या अन्य किसी आधार पर नागरिकों के साथ अन्याय करती थीं। यह कदम न केवल समाज में समानता को बढ़ावा देगा बल्कि इसे अधिक संगठित और न्यायसंगत बनाने का रास्ता भी खोलेगा।
समान नागरिक संहिता के प्रमुख बदलाव
1. विवाह पंजीकरण अनिवार्य होगा
अब सभी विवाहों का पंजीकरण करना अनिवार्य होगा। इससे न केवल पारदर्शिता आएगी बल्कि इससे कानूनी विवादों को भी रोकने में मदद मिलेगी।
2. तलाक के लिए एक समान कानून
अब तलाक के मामलों में धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। सभी समुदायों के लिए एक समान तलाक कानून लागू होगा।
3. विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित
लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष तय की गई है, जो सभी धर्मों और जातियों पर समान रूप से लागू होगी।
4. गोद लेने के समान अधिकार
सभी धर्मों के लोग अब गोद लेने का अधिकार रखेंगे, हालांकि किसी अन्य धर्म के बच्चे को गोद लेना प्रतिबंधित रहेगा।
5. अनुचित प्रथाओं पर रोक
‘हलाला’ और ‘इद्दत’ जैसी प्रथाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है, जो महिलाओं के अधिकारों को कमजोर करती थीं।
6. एक विवाह का नियम लागू
पहले जीवनसाथी के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह अब पूरी तरह से अवैध होगा।
7. संपत्ति में समान अधिकार
पुत्र और पुत्री दोनों को संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलेगा, जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
8. लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य
लिव-इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण जरूरी होगा, और 18 से 21 वर्ष की उम्र के साझेदारों के लिए माता-पिता की सहमति आवश्यक होगी।
9. लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों के अधिकार
ऐसे बच्चों को भी वही अधिकार दिए जाएंगे जो विवाहित दंपतियों के बच्चों को मिलते हैं।
एक न्यायपूर्ण समाज की ओर
उत्तराखंड का यह ऐतिहासिक कदम केवल एक कानून लागू करना नहीं है, बल्कि यह समाज में समानता, न्याय और एकता को बढ़ावा देने का प्रयास है। UCC का क्रियान्वयन यह सुनिश्चित करेगा कि हर नागरिक को समान अधिकार और जिम्मेदारियां मिलें, जिससे सामाजिक भेदभाव का अंत हो। यह निर्णय न केवल उत्तराखंड के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा है। यह कदम दिखाता है कि कैसे एक सशक्त नेतृत्व प्रगतिशील नीतियों के जरिए समाज को बदल सकता है। समान नागरिक संहिता का यह लागू होना, एक संगठित और आधुनिक भारत की ओर बढ़ने का सशक्त प्रयास है।