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क्या नेहरू ने चंद्रशेखर आज़ाद की मुखबिरी की थी? CID की गोपनीय फाइलों में छुपा वो राज़, जो आज भी उनकी शहादत की अनसुलझी गुत्थी बना हुआ है!

'वह हमारे घर आया था, क्योंकि ...'- नेहरू

himanshumishra द्वारा himanshumishra
27 February 2025
in इतिहास
क्या नेहरू ने चंद्रशेखर आज़ाद की मुखबिरी की थी?

क्या नेहरू ने चंद्रशेखर आज़ाद की मुखबिरी की थी? (Viral Images)

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भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का इतिहास हमेशा से विवादों से घिरा रहा है। कभी उन पर अंग्रेजों की चापलूसी के आरोप लगे, तो कभी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ गद्दारी करने की बातें उठीं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि नेहरू ने 1946 में मुंबई के नौसैनिक विद्रोहियों को अंग्रेजों के साथ मिलकर धोखा दिया था। यही नहीं, उन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदारों की जासूसी कराने के भी गंभीर आरोप लगे। लेखों के अनुसार, 1947 में सत्ता संभालने के बाद नेहरू ने ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों के साथ कई गोपनीय जानकारियाँ साझा की थीं।

सुभाष चंद्र बोस ही नहीं, इतिहासकारों ने नेहरू पर अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी करने के भी आरोप लगाए हैं, जिनमें चंद्रशेखर आज़ाद का नाम प्रमुख रूप से आता है। दैनिक जागरण को दिए एक साक्षात्कार में चंद्रशेखर आज़ाद के भतीजे सुजीत आज़ाद ने नेहरू पर सीधे तौर पर आरोप लगाते हुए कहा था, “नेहरू ने देश के साथ गद्दारी कर चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या कराई। यह बात किसी से छिपी नहीं है। कांग्रेस ने हमेशा देश को बाँटने का काम किया है।”

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वहीं, ‘दैनिक भास्कर’ में छपे 8 साल पहले पुराने एक लेख में चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत को लेकर बड़ा खुलासा किया गया था। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि उन्हें इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के एक बड़े नेता ने अंग्रेजों से मुखबिरी करवा कर मरवाया था। दिलचस्प बात यह है कि फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आज़ाद, झांसी से सीतापुर जेल गए थे, जहाँ उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी से मुलाकात की। विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहरलाल नेहरू से मिलने की सलाह दी।

27 फरवरी 1931 को जब चंद्रशेखर आज़ाद, आनंद भवन में नेहरू से मिलने पहुँचे, तो नेहरू ने उनकी बात सुनने से इनकार कर दिया। इससे नाराज होकर चंद्रशेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ अल्फ्रेड पार्क चले गए, जहाँ अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें घेर लिया। आज़ाद के नेहरू से मिलने का जिक्र खुद नेहरू ने अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में भी किया है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या सुजीत आज़ाद के आरोपों की निष्पक्ष जाँच नहीं होनी चाहिए? क्या जवाहरलाल नेहरू ने सच में चंद्रशेखर आज़ाद को धोखा दिया था?

‘वह हमारे घर आया था, क्योंकि …’ – मेरी कहानी 

नेहरू ने अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में इस घटना का उल्लेख किया है कि फरवरी 1931 में चंद्रशेखर आज़ाद उनसे मिलने आनंद भवन पहुँचे थे। उन्होंने लिखा, “मुझे उस समय के बारे में एक जिज्ञासु घटना याद है। एक अजनबी मुझसे मिलने मेरे घर आया और मुझे बताया गया कि वह चंद्रशेखर आज़ाद है। मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था, लेकिन उसके बारे में दस साल पहले सुना था, जब उसने कम उम्र में असहयोग आंदोलन में भाग लिया था और 1921 में जेल गया था। बाद में, वह आतंकवादियों के समूह में शामिल हो गया था। हालाँकि, यह सब मैंने अस्पष्ट रूप से सुना था और मैंने इन अफवाहों में कोई दिलचस्पी नहीं ली थी।

“वह हमारे घर इसलिए आया था, क्योंकि ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच उस वक्त बातचीत की संभावना थी। वह जानना चाहता था कि क्या होने वाले समझौते में उन लोगों को भी राहत मिलेगी। क्या उन्हें अब भी आतंकी माना जाएगा और उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाएगा? क्या उन्हें शांतिपूर्ण व्यवसाय करने की अनुमति दिए जाने की संभावना है?”

नेहरू आगे लिखते हैं, “उसने मुझे बताया कि जहाँ तक उसका और उसके कई सहयोगियों का संबंध है, उन्हें अब यह भरोसा हो गया है कि आतंकवाद किसी का भला नहीं कर सकता। हालाँकि, वह यह मानने को तैयार नहीं था कि भारत पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से आज़ाद हो पाएगा। उसने सोचा कि भविष्य में कभी हिंसक संघर्ष हो सकता है, लेकिन यह आतंकवादी तरीके से नहीं होगा। जहाँ तक भारत की स्वतंत्रता का सवाल था, उन्होंने आतंकवाद को पूरी तरह खारिज कर दिया था। लेकिन फिर उसने कहा कि जब उसे बसने का कोई मौका नहीं दिया जाएगा, तो वह इस स्थिति में क्या करेगा? यह बात हर समय उसे परेशान कर रही थी।”

“आज़ाद से मिलकर मुझे खुशी हुई और बाद में मुझे इस बात पर भरोसा हो गया कि अब उनके समूह का आतंकवाद में विश्वास नहीं रहा। बेशक, इसका मतलब यह नहीं था कि पुराने आतंकवादी या उनके नए सहयोगी अहिंसा का मार्ग अपनाने वाले थे, या ब्रिटिश शासन के प्रशंसक बन गए थे। लेकिन, वे आतंकवाद के मामले में पहले की तरह नहीं सोचते थे। उनमें से कई, मुझे ऐसा लगता है, निश्चित रूप से फासीवादी मानसिकता वाले हैं।”

“चंद्रशेखर आज़ाद को मैं केवल इतना सुझाव दे सकता था कि वह अपने प्रभाव का उपयोग भविष्य में आतंकवादी घटनाओं को रोकने के लिए करे। दो-तीन हफ्ते बाद, जब गाँधी-इरविन की बातचीत चल रही थी, मैंने दिल्ली में सुना कि चंद्रशेखर आज़ाद को इलाहाबाद में पुलिस ने गोली मार दी। दिन के समय एक पार्क में उसकी पहचान हो गई थी और भारी पुलिस बल ने उसे घेर लिया। उसने एक पेड़ के पीछे छिपकर अपना बचाव करने की कोशिश की। वहाँ फायरिंग हो रही थी और खुद को गोली मारने से पहले उसने एक या दो पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया था।”

अल्फ़्रेड पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद
अल्फ़्रेड पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद

CID की उस फाइल में क्या मिला

नेहरू के इन शब्दों से यह साफ झलकता है कि उनके नजरिए में चंद्रशेखर आज़ाद का क्रांतिकारी संघर्ष केवल आतंकवाद था। शायद यही सोच उनके और आज़ाद के बीच मतभेद की जड़ थी। सत्यनारायण शर्मा लिखते हैं कि जब आज़ाद ने नेहरू से पूछा कि क्या गांधी, इरविन के साथ उनकी और उनके साथियों—भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु—की फाँसी माफ कराने पर चर्चा करेंगे, तो नेहरू ने जवाब दिया कि वह इस पर कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि गांधी क्रांतिकारियों के समर्थन में कोई ठोस कदम उठाने को तैयार नहीं थे।

इस पर आज़ाद आक्रोशित हो उठे और बोले कि यह उन जैसे राष्ट्रभक्तों के साथ सरासर अन्याय है। उनके तीन साथियों को फाँसी दी जा रही है, और उन्हें नेहरू और उनके जैसे नेताओं से सिर्फ उपेक्षा ही मिली है। नेहरू और उनके सहयोगियों को भी ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया था, लेकिन उन्हें रिहा कर दिया जाएगा, जबकि क्रांतिकारियों को फाँसी चढ़ा दिया जाएगा। नेहरू के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।

वहीं, दैनिक भास्कर में प्रकाशित एक 8 साल पुरानी रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के पीछे एक गहरी साजिश थी। रिपोर्ट के अनुसार, इलाहाबाद के एक प्रभावशाली नेता ने ब्रिटिश सरकार को आज़ाद के ठिकाने की सूचना देकर उनकी मुखबिरी की थी। इस घटना से जुड़ी एक गोपनीय फाइल लखनऊ के सीआईडी ऑफिस में मौजूद है, जिसमें इलाहाबाद के तत्कालीन ब्रिटिश पुलिस अधिकारी नॉट वावर के बयान दर्ज हैं।

नॉट वावर के मुताबिक, जब वह अपने घर पर भोजन कर रहे थे, तब उन्हें एक बड़े भारतीय नेता का संदेश मिला, जिसमें बताया गया कि चंद्रशेखर आज़ाद अल्फ्रेड पार्क में हैं और दोपहर 3 बजे तक वहीं रहेंगे। इसके बाद, वावर तुरंत पुलिस बल के साथ वहाँ पहुँचे और चारों ओर से घेराबंदी कर दी। उन्होंने आज़ाद से आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन इस वीर योद्धा ने मना कर दिया। उन्होंने अपनी माउजर पिस्तौल से एक पुलिस अधिकारी को गोली मार दी, जिसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। नॉट वावर के बयान के अनुसार, आज़ाद ने पाँच गोलियाँ चलाकर पाँच पुलिसकर्मियों को ढेर कर दिया। लेकिन जब उनकी आखिरी गोली बची, तो उन्होंने उसे अपनी कनपटी पर रखकर खुद को मार लिया।

आज़ाद के भतीजे द्वारा नेहरू पर लगाए गए आरोप और सीआईडी फाइलों में दर्ज “बड़े नेता” की मुखबिरी का जिक्र इस घटना को और भी रहस्यमय बना देता है। यही कारण है कि समय-समय पर यह माँग उठती रही है कि सुजीत आज़ाद के आरोपों की निष्पक्ष और गहन जाँच कराई जाए। क्या नेहरू ने सच में चंद्रशेखर आज़ाद के साथ विश्वासघात किया था? क्या यह महज़ एक ऐतिहासिक इत्तेफाक था, या फिर किसी गहरी राजनीतिक साजिश का हिस्सा? इतिहास आज भी इन सवालों का जवाब देने से कतराता है।

 

 

 

स्रोत: चंद्रशेखर आजाद, चंद्रशेखर आजाद और जवाहलाल नेहरू, चंदशेखर आजाद और महात्मा गाँधी, चंद्रशेकर आजाद पुण्यतिथि, मेरी कहानी, Chandrashekhar Azad, Chandrashekhar Azad and Jawaharlal Nehru, Chandrashekhar Azad and Mahatma Gandhi, Chandrashekhar Azad Punyatithi, Meri Kahani
Tags: Chandrashekhar AzadChandrashekhar Azad and Jawaharlal NehruChandrashekhar Azad and Mahatma GandhiChandrashekhar Azad PunyatithiMeri Kahaniचंदशेखर आजाद और महात्मा गाँधीचंद्रशेकर आजाद पुण्यतिथिचंद्रशेखर आज़ादचंद्रशेखर आजाद और जवाहलाल नेहरूमेरी कहानी
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