राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज (10 फरवरी 2025) प्रयागराज के पवित्र संगम तट पर महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाई। इस बार के महाकुंभ ने ऐतिहासिक रिकॉर्ड कायम किया है, जहां अब तक 42 करोड़ से अधिक श्रद्धालु संगम में स्नान कर अपनी आस्था व्यक्त कर चुके हैं। यह आयोजन भारत की सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत का गौरवशाली प्रतीक बन गया है।
लेकिन, मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ की घटना के बाद मेले में की गई व्यवस्थाओं पर सवाल उठने लगे हैं। मेले में आए करोड़ों श्रद्धालु योगी सरकार की प्रतिबद्धता और इस भव्य आयोजन की सराहना कर रहे हैं तो वहीं कई लोगों को कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है।
सच यह है कि इतने विशाल स्तर के आयोजन में चुनौतियां स्वाभाविक हैं। प्रशासन ने कई विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की है, लेकिन कहीं-कहीं कमियां भी नजर आईं। ऐसे में आज के इस लेख में हम बात करेंगे कि महाकुंभ की व्यवस्थाओं का वास्तविक परिदृश्य क्या है और इनसे जुड़ी चुनौतियों की जमीनी हकीकत क्या है….
आरोप 1: साइन बोर्ड की कमी
महाकुंभ में रोजाना लाखों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं, और अमृत स्नान के दिन यह संख्या करोड़ों तक पहुंच जाती है। इतने बड़े आयोजन में श्रद्धालुओं के मार्गदर्शन के लिए साइन बोर्ड की अहमियत को नकारा नहीं जा सकता।
हाल ही में, दिल्ली से प्रयागराज आए एक श्रद्धालु ने अपनी यात्रा के अनुभव को सोशल मीडिया पर साझा किया। उन्होंने लिखा:
“50 घंटे का दिल्ली से प्रयागराज का सफर और फिर पवित्र संगम में डुबकी। घाट के पास व्यवस्थाएं शानदार थीं, लेकिन जो कमियां दिखीं, उन्हें बताना जरूरी है:
साइन बोर्ड – पार्किंग से आगे रास्ते में साइन बोर्ड की कमी से काफी परेशानी हुई। पैदल जाने वालों को रास्ता समझने में दिक्कत होती है।”
उनके इस ट्वीट ने ध्यान खींचा, क्योंकि साइन बोर्ड जैसे छोटे से पहलू में भी मेले की व्यवस्थाओं को बेहतर बनाया जा सकता है। हालांकि, जब हमारी ग्राउंड टीम ने प्रयागराज में व्यवस्थाओं को करीब से देखा, तो यह बात सामने आई कि साइन बोर्ड की व्यवस्था है, लेकिन समस्या दूसरी है। दरअसल, अधिकतर श्रद्धालु संगम नोज (मुख्य घाट) पर ही स्नान करना चाहते हैं। प्रशासन भगदड़ जैसी स्थितियों से बचने के लिए श्रद्धालुओं को अन्य घाटों पर डायवर्ट करने की कोशिश कर रहा है। इसी वजह से संगम नोज के आसपास सीमित साइन बोर्ड लगाए गए हैं। यही कारण है कि कुछ लोग असुविधा महसूस कर रहे हैं।
आरोप 2 : निम्न दर्जे की शटल व्यवस्था
श्रद्धालुओं द्वारा महाकुंभ में आने-जाने के लिए शटल सेवा की व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में एक ट्वीट ने ध्यान आकर्षित किया, जिसमें लिखा गया:
” शटल व्यवस्था – यह व्यवस्था बेहद निम्न दर्जे की थी। शटल के लिए डेडिकेटेड रूट होना चाहिए था। बहुत से लोग पार्किंग से घाट तक की 15 किमी की दूरी तय करने में 8-10 घंटे लगा रहे थे। 90% शटल ने जाने से मना कर दिया।”
इस मुद्दे पर जब अहमदाबाद से आए एक श्रद्धालु ने अपनी बात साझा की, तो उन्होंने बताया, “मैं अपने परिवार के साथ आया था, जिसमें वरिष्ठ नागरिक भी थे। घाट से 15 किमी दूर पार्किंग में हमें शटल लेने का सुझाव मिला, लेकिन शटल चालकों ने कहा कि भीड़ के कारण घाट तक पहुंचने में 10 से 12 घंटे लग सकते हैं। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल था। सरकार को शटल के लिए एक अलग मार्ग तय करना चाहिए था, ताकि सीनियर सिटीजन्स को राहत मिल सके।”
50 घंटे का दिल्ली से प्रयागराज का सफर और उसके बाद प्राप्त हुआ पवित्र संगम की डुबकी। घाट के पास बहुत शानदार व्यवस्था था लेकिन जो कमियाँ दिखी उसे बताना जरूरी है:-
1. साइन बोर्ड – पार्किंग स्थल के बाद रास्ते में साइन बोर्ड बनाने में क्या दिक्कत थी। जो लोग पैदल जा रहे हैं उन्हें… pic.twitter.com/oiSGL5ixtC
— Ramnivas Kumar (@ramnivaskumar) February 10, 2025
जब हमारी टीम ने इस आरोप की जमीनी पड़ताल की और प्रशासन से बात की, तो उनकी सफाई कुछ अलग थी। प्रशासन का कहना था कि इस बार मेले में भीड़ अप्रत्याशित रूप से बहुत अधिक है। “अगर शटल के लिए एक डेडिकेटेड मार्ग बनाते हैं, तो मुख्य रास्ते और अधिक संकरे हो जाएंगे, जिससे भगदड़ जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।”
प्रशासन ने यह भी बताया कि सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शटल सेवाओं को सीमित रखा गया है। उनका कहना है कि शटल व्यवस्था के जरिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को मदद पहुंचाने की कोशिश की गई, लेकिन भीड़ के दबाव और लॉजिस्टिक चुनौतियों के कारण हर किसी तक सुविधा पहुंचाना संभव नहीं हो पाया।
आरोप 3: – टोल प्लाजा पर मचा कोहराम
आरोप 3: टोल प्लाजा पर मचा कोहराम
श्रद्धालुओं ने महाकुंभ तक पहुंचने के दौरान हाईवे पर स्थित टोल प्लाजा पर लंबी लाइनों और भीड़भाड़ को लेकर नाराजगी जताई है। श्रद्धालु ने ट्वीट में तीसरी चुनौती को बताते हुए लिखा:
“हाईवे टोल – टोल प्लाजा पर कोहराम मचा हुआ है। हर टोल पर 2-3 घंटे का इंतजार करना पड़ता है। जितने का टोल नहीं, उससे ज्यादा का डीजल और पेट्रोल बर्बाद हो रहा है। ऊपर से मानसिक प्रताड़ना अलग से।”
इस मामले की पड़ताल में हमारी टीम ने पाया कि टोल प्लाजा पर भारी भीड़ के कारण श्रद्धालुओं को घंटों लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। इससे न केवल समय की बर्बादी हो रही है, बल्कि ईंधन के अतिरिक्त खर्च के चलते आर्थिक दबाव भी बढ़ रहा है। कई श्रद्धालु इसे एक बेहद थकाऊ और मानसिक रूप से कष्टकारी अनुभव बता रहे हैं।
टोल पर भीड़भाड़ का मुख्य कारण महाकुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालुओं का एक साथ आवाजाही करना है। हालांकि, इस तरह के ऐतिहासिक और विशाल आयोजनों में व्यवस्थाओं की कमी को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। टोल पर व्यवस्था बनाए रखने के लिए रूट डायवर्जन जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन यह समाधान भी फिलहाल पर्याप्त साबित नहीं हुआ है।
आरोप 4 : महिलाएं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सुविधा की कमी
महाकुंभ के आयोजन में महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए समुचित सुविधाओं की कमी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। एक श्रद्धालु ने अपनी शिकायत में बताया:
“महाकुंभ में महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों की संख्या काफी अधिक है, लेकिन उनके लिए कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं है। पार्किंग से घाट तक पहुंचने के लिए न तो कोई विशेष शटल सेवा दिखी और न ही पर्याप्त महिला शौचालय।”
इस आरोप की पड़ताल में हमारी टीम ने पाया कि श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के चलते शटल सेवाओं को सीमित कर दिया गया है। वरिष्ठ नागरिकों और महिलाओं के लिए समर्पित सुविधाएं, जैसे कि अलग शटल मार्ग और पर्याप्त महिला शौचालय, कई जगहों पर नदारद नजर आए।
हालांकि, ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान यह भी सामने आया कि पार्किंग से घाट तक कुछ स्थानों पर महिला शौचालय मौजूद हैं, लेकिन उनकी संख्या इस आयोजन की विशालता के हिसाब से कम है। श्रद्धालु यह भी महसूस कर रहे हैं कि इस तरह के ऐतिहासिक आयोजनों में महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष इंतजाम जरूरी थे।