राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सनातन संस्कृति को मजबूत करने और हिंदुओं को एकजुट करने के लिए साल 1925 में RSS की स्थापना की थी। स्थापना के साथ ही RSS की शाखाएं और इसमें शामिल स्वयंसेवकों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही थी। इस दौरान संघ की शाखा में जाने वाले हिंदू परिवारों की महिलाएं डॉ. हेडगेवार से कहती थीं कि संगठन में नारियों का भी योगदान होना चाहिए। हेडगेवार चाहते तो थे कि महिलाएं आगे आएं, लेकिन पुरुषों और महिलाओं का एक साथ काम करना, व्यवहारिक रूप से उन्हें अच्छा नहीं लगा। सरस्वती ताई आप्टे
RSS के प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और हिंदू परिवार की महिलाओं की यह इच्छा साल 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर ने ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक संगठन बनाकर पूरी की। ऐसा कहा जाता है कि ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की स्थापना RSS से प्रेरणा लेकर की गई थी। यही कारण है कि दोनों संगठनों की कार्यप्रणाली लगभग एक जैसी ही थी। चूंकि लक्ष्मीबाई केलकर ने ‘‘राष्ट्र सेविका समिति’ की स्थापना की थी, ऐसे में आगे चलकर वह इस संगठन की प्रथम संचालिका बनीं।
RSS के साथ ही ‘राष्ट्रीय सेविका समिति’ की शाखाएं भी बढ़ रही थीं। इसी दौरान साल 1938 में लक्ष्मीबाई केलकर की मुलाकात सरस्वती ताई आप्टे से हुई। पहली मुलाकात में ही दोनों ने एक दूसरे को अपना मान लिया और एक लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने का फैसला भी कर लिया। आज यानी 9 मार्च, 2025 को इन्हीं सरस्वती ताई आप्टे की पुण्यतिथि है।
लक्ष्मीबाई केलकर और सरस्वती ताई आप्टे ने मिलकर ‘राष्ट्र सेविका समिति’ के कार्यक्षेत्र को लगातार बढ़ाने का प्रयास किया। अगले 4-5 साल में ही महाराष्ट्र के लगभग सभी जिलों में राष्ट्र सेविका समिति की शाखाएं शुरू हो चुकी थीं। साल 1945 में समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। ताई आप्टे की सादगी, संगठन क्षमता, कार्यशैली एवं वक्तृत्व कौशल को देखकर लक्ष्मीबाई केलकर ने इस सम्मेलन में सरस्वती ताई आप्टे को प्रमुख कार्यवाहिका की जिम्मेदारी सौंप दी। इस जिम्मेदारी को सरस्वती ताई आप्टे ने भरपूर निभाया।
यह वह समय था, जब देश अंग्रेजी हुकूमत का दंश झेल रहा था और कांग्रेस भारत के टुकड़े करने का मन बना चुकी थी। कांग्रेस नेता किसी भी सूरत में देश की सत्ता में आना चाहते थे। वहीं इस्लामवादी भी अलग मुल्क बनाने की मांग कर रहे थे। साथ ही इस्लामवादी हिंदू युवतियों को भी शिकार बनाते जा रहे थे। देश की स्वतंत्रता से कुछ समय पूर्व सिंध के हैदराबाद से ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की एक सदस्या जेठी देवानी का मार्मिक पत्र लक्ष्मीबाई केलकर को मिला। इस पत्र में वहां की महिलाओं की स्थितियों का जिक्र किया गया था।
ऐसे में लक्ष्मीबाई केलकर ने सेविका समिति का पूरा छोड़कर हैदराबाद जाने का फैसला किया और सारा काम सरस्वती ताई आप्टे को सौंपकर चली गईं। हैदराबाद पहुंचने के बाद लक्ष्मीबाई केलकर ने सेविका समिति की सभी सदस्यों से आखिरी सांस तक डटे रहने का आह्वान किया। इससे देश की हिंदू महिलाओं को एकता का संदेश गया।
साल 1948 में जब मोहन दास करमचंद गांधी जी की हत्या के झूठे आरोप में कांग्रेस ने RSS पर प्रतिबंध लगाते हुए संघ के कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया था, तब सेविका समिति की सदस्यों ने ही संघ परिवारों की महिलाओं को धैर्य दिलाने का काम किया। इसके बाद साल 1962 में जब चीन ने भारत में आक्रमण किया था, तब भी सेविका समिति ने घर-घर जाकर धन एकत्र किया और उसे रक्षामंत्री श्री वाई. बी. चव्हाण को दे दिया था। इसके अलावा साल 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण के समय भी देश के अनेक रेल स्टेशनों पर देश के जवानों के लिए चाय एवं भोजन की व्यवस्था भी सेविका समिति ने ही की थी।
राष्ट्र सेविका समिति की दूसरी संचालिका सरस्वती ताई आप्टे समिति के इन सभी कार्यों की सूत्रधार थीं। उन्होंने संगठन की लाखों सेविकाओं को यह सिखाया कि गृहस्थी के साथ-साथ देशसेवा भी की जा सकती है। देश सेवा और महिलाओं को एकजुट करने के अथक प्रयास में जुटी सरस्वती ताई आप्टे आजीवन समाजहित में कार्य करती रहीं। इसी दौरान 9 मार्च 1994 की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। ‘राष्ट्र सेविका समिति’ आज भी उनके दिखाए मार्ग पर चल रही है और महिलाओं को राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए प्रेरित कर रही है। उनका जीवन निस्वार्थ भाव से राष्ट्र की सेवा करने की प्रेरणा देता है।
सरस्वती ताई आप्टे एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने अपने समय की रूढ़ियों को चुनौती दी और नारी शक्ति को एक नई पहचान दी। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों के बावजूद यदि संकल्प दृढ़ हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। वे न केवल राष्ट्र सेविका समिति की सूत्रधार थीं, बल्कि भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी थीं। सरस्वती ताई आप्टे का नाम ‘राष्ट्र सेविका समिति’ के कार्यों से इतर भी भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा।