जम्मू-कश्मीर पहलगाम में आतंकियों ने फायरिंग कर कम से कम 26 लोगों की हत्या कर दी है। इस जघन्य हमले के बाद मीडिया का एक विशेष वर्ग हमेशा की तरह प्रोपगेंडा फैलाने में जुट गया। कुछ मीडिया संस्थान ने आतंकियों को आतंकी लिखने की जगह गनमैन यानी बंदूकधारी बताया। जबकि इस्लामी आतंकी दशकों से घाटी में आतंक फैलाते और खून बहाते आए हैं। वहीं, घृणा फैलाने के लिए मशहूर एक पोर्टल ने तो यह लिख दिया कि मुस्लिम होने के चलते आतंकियों ने हत्या की है। पहलगाम आतंकी हमला
खाड़ी देश क़तर का सरकारी मीडिया संस्थान है ‘अल जज़ीरा’। इसने अपनी खबर में लिखा, “भारतीय पुलिस के अनुसार, सशस्त्र व्यक्तियों ने भारत प्रशासित कश्मीर में पर्यटकों पर गोलीबारी की जिसमें 26 लोग मारे गए।” इसके बाद पुलिस के बयान का जिक्र करते हुए लिखा गया, “आतंकी हमला” डबल कोट में इस तरह लिखा गया, जैसे यदि ‘अल जज़ीरा’ इन हत्यारों को ख़ुद से आतंकी कह देगा तो शायद उसको सरकार से मिलने वाला फंड बंद हो जाएगा और यह उसके संपादकीय के खिलाफ हो जाएगा।

गौरतलब है कि ‘अल जज़ीरा’ इससे पहले भी आतंकियों के लिए ‘लड़ाके’, हथियारबंद युवक जैसे शब्द का उपयोग कर चुका है। ऐसे में इस बार भी उसका आतंकी ना लिखना हैरान करने वाला बिल्कुल नहीं रहा।
BBC ने नहीं लिखा आतंकी
इसके अलावा, ब्रिटेन का सरकारी प्रसारण संस्थान ‘ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन’ यानी BBC आज भी उसी औपनिवेशिक सोच में डूबा है, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन और गुलाम था। बीबीसी को लगता है कि वह कुछ भी बोलकर बच सकता है। इसने जम्मू-कश्मीर को ‘भारत प्रशासित कश्मीर’ कहकर पुकारा और आतंकियों को ‘हथियारबंद व्यक्ति’ करार दिया। इतना ही नहीं BBC ने कश्मीर को ‘मुस्लिम बहुल क्षेत्र’ के रूप में दिखाने की कोशिश की और वहां के आतंकवाद को ‘अलगाववादी आंदोलन’ का नाम दिया। साथ ही, यह दावा किया कि जम्मू-कश्मीर में 5 लाख भारतीय सैनिक तैनात हैं।

BBC ने जम्मू कश्मीर को भारतीय क्षेत्र मानने से एक तरह से इनकार करते हुए इतिहास बताया कि आजादी के बाद दोनों देश जम्मू कश्मीर पर अपना दावा ठोकते रहे हैं। इसने आतंकियों को भी चरमपंथी लिखा, ऐसा दिखाया जैसे वो कोई बागी हों। BBC की हिंदी टीम ने तो हेडिंग में ही ‘चरमपंथियों’ लिख दिया। साथ ही आतंकियों को ‘बंदूकधारियों’ लिख दिया।

अमेरिकी मीडिया ने भी लिखा ‘बंदूकधारी’
अमेरिकी मीडिया संस्थान ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने भी आतंकियों को अंग्रेजी में ‘Gunmen’, अर्थात ‘हथियारबंद’ लिखा। इसकी एक और चालबाजी देखिए। इसने लिखा कि आतंकी जंगलों से निकले और ‘बिना किसी भेदभाव’ के गोलीबारी की। जरा सोचिए, ‘बिना भेदभाव’! जबकि पीड़ितों ने बार-बार बताया कि पुरुषों के पैंट उतारकर यह जांच की गई कि उनका खतना हुआ है या नहीं। जिनका खतना नहीं था, उन्हें हिंदू मानकर मार डाला गया। पहचान पत्रों की जांच की गई, सवाल पूछे गए, “मुस्लिम हो?”
फिर भी, ‘वाशिंगटन पोस्ट’ दावा करता है कि गोलीबारी ‘बिना भेदभाव’ के हुई। इतना ही नहीं, यह ‘वाशिंगटन पोस्ट’ लिखता है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भारत सरकार ने असहमति के खिलाफ कठोर कदम उठाए। साथ ही, किसी ‘अब्दुल वहीद’ की प्रशंसा की गई कि उसने पीड़ितों को बचाया।
‘द वायर’ ने लिखा मुस्लिम होने के कारण मारा:

चूंकि ‘द वायर’ प्रोपगेंडा फैलाता आया है, ऐसे में उसने एक बार फिर यही किया और पीड़ित महिला की बात को नकारते हुए ये लिखा कि उसके पति को मुस्लिम होने के कारण गोली मारी गई। हालांकि जब यह बात सोशल मीडिया पर आई और लोगों ने फटकर लगानी शुरू की तो उसने इसे एडिट कर दिया।