मंगलवार में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए निर्दोष पर्यटकों के सामूहिक नरसंहार ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। यह कोई पहली घटना नहीं है जब भारत ने आतंकवादी हमले झेले हों, परंतु अधिकतर बार भारत ने आदर्शों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का संयम बरता। हालांकि वर्तमान सरकार ने पुरी और पुलवामा के आतंकवादी हमलों का मुहतोड़ जवाब दिया है लेकिन अब वह समय आ गया है, जब भारत को पाकिस्तान और उसके पोषित आतंकवाद को अंतिम रूप से देखने और निर्णायक कार्रवाई करने की आवश्यकता है। क्योंकि, जैसा कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी. के. सिंह ने 2010 में कहा था: “जब हम लगातार उकसावे के बाद भी संयम दिखाते हैं, तो यह दुश्मन को और निर्भय बना देता है।” यह कथन न केवल सैन्य नीति, बल्कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा की नीति पर पुनर्विचार की माँग करता है।
हमारे समक्ष श्रीलंका का उदाहरण मौजूद है। श्रीलंका ने लिट्टे (LTTE) के आतंकवाद के सामने शुरुआत में संयम और वार्ताओं का रास्ता अपनाया। लेकिन जब यह स्पष्ट हो गया कि आतंकवादी संगठन निर्दोषों की हत्याएं, आत्मघाती हमले और अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा है, तब 2009 में श्रीलंका सरकार ने “Zero Tolerance” नीति के तहत निर्णायक सैन्य कार्रवाई कर आतंकवाद का समूल नाश कर दिया। यह घटना हमे सिखाती है कि “संयम तब तक ही ठीक है, जब तक वह सुरक्षा और न्याय को कमजोर न करे।”
इसी के साथ वर्तमान समय में जारी इस्राइल-हमास संघर्ष भी एक सीख है। अक्टूबर 2023 में हमास ने इस्राइल पर हमला किया। खास बात यह है कि यह हमला भी ठीक उसी प्रकार था जैसा भारत के पहलगाम क्षेत्र में हुआ। अक्टूबर 2023 में हमास ने इस्राइल पर एक अभूतपूर्व और क्रूर हमला किया। यह हमला उस वक्त हुआ जब सैकड़ों लोग खुले मैदानों में एक संगीत महोत्सव और पिकनिक का आनंद ले रहे थे। अचानक हमास के लड़ाके सीमा पार कर सैकड़ों निर्दोष युवाओं पर गोलीबारी और अपहरण करने लगे। यह हमला न केवल सैन्य ठिकानों पर, बल्कि निहत्थे नागरिकों पर था, जिसने पूरे विश्व को झकझोर कर रख दिया। आरंभ में संयम की नीति अपनाने के बाद, जब नागरिकों की हत्या और अपहरण की घटनाएँ बढ़ीं, तब प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने स्पष्ट रूप से कहा, “बर्बरता के सामने संयम नैतिकता नहीं है, वह आत्मसमर्पण है।” भारत को भी इस उदाहरण से यह सीखने की आवश्यकता है कि शांति की चाह तभी संभव है जब आपके शत्रु को आपकी शक्ति का भी भान हो।
भारत की परंपरा: संयम + साहस = संतुलन
भारत सदा से ही वसुधैव कुटुम्बकम् और शांति की पहल का समर्थक रहा है। लेकिन वर्तमान समय में, भारत ने यह स्पष्ट किया है कि अब वह संयम की सीमाएँ भी जानता है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 2023 में कहा था, “India will not stay silent when its core interests are threatened. Strategic autonomy does not mean strategic silence.” यह बयान बताता है कि आत्मसम्मान और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए केवल संयम पर्याप्त नहीं है — समय पर प्रतिकार भी आवश्यक है। भगवद्गीता भी स्पष्ट करती है कि धर्म-संरक्षण के लिए प्रतिकार आवश्यक है। श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट रूप से कहा गया है:
“हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं, जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः॥” 2.37
इस श्लोक में यह स्पष्ट किया गया है कि जब धर्म की रक्षा के लिए युद्ध आवश्यक हो, तब संयम नहीं, कर्तव्यपरायण साहस की आवश्यकता होती है। इसी अध्याय का एक और श्लोक है, “क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ…” — (श्लोक 2.3) अर्थात “हे अर्जुन, इस कायरता को मत अपनाओ।” स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है, “Restraining expression out of fear is cowardice, not self-control.” अर्थात जब संयम केवल भयवश हो, तब वह कायरता है। इतना ही नहीं अहिंसा के पुजारी कहे जाने वाले महात्मा गांधी ने भी कहा था, “कायरता हिंसा से भी बदतर है।” अहिंसा तभी तक गुण है जब तक वह अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध को कमजोर न करे।
पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा समय-समय पर किए जा रहे हमले — पुलवामा, उरी, और अब पहलगाम — बार-बार यही सवाल उठाते हैं क्या भारत अब भी केवल संयम दिखाएगा या निर्णायक जवाब देगा? इन हत्याओं को ‘स्थानीय असंतोष’ कहकर शांतिपूर्ण वार्ता के कवर में छिपाना अब स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपने दुश्मनों को ढ़ूढकर मरने की पहचान बना चुका है। प्रधानमंत्री का यह कहना कि हम भारत के सैनिकों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे। अब भारत जवाब देने से नहीं डरता”, भारत की बदलती सुरक्षा नीति, रणनीतिक दृढ़ता और आत्मसम्मान की घोषणा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने जिस तरह आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति को निर्णायक रूप से बदला है, वह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि अब भारत किसी भी हमले का केवल प्रतीक्षा नहीं करता, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर शत्रु के घर में घुसकर जवाब देता है।
2016 में उरी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा के जवाब में की गई बालाकोट एयर स्ट्राइक इस नीति की सशक्त मिसाल हैं। नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत अब अपने सैनिकों की शहादत का जवाब देगा—डर कर नहीं, बल्कि साहस और संकल्प के साथ। मोदी जी के कई भाषणों में यह भावना उजागर होती है कि भारत किसी से लड़ाई शुरू नहीं करता, लेकिन यदि उकसाया जाए तो उसे वहीं जाकर खत्म करता है जहाँ से वह शुरू हुई हो। यह सोच भारत की पारंपरिक नीति “संयम में शक्ति” के साथ आधुनिक रणनीतिक सोच का मिलन है। अब पुन: इसी प्रकार के अदम्य साहस का समय है। संयम निश्चय ही एक महान गुण है, परंतु यदि वह बार-बार के अत्याचारों को अनदेखा करने का साधन बन जाए, तो वह धर्म विरुद्ध हो जाता है। भारत को अब यह स्पष्ट करना चाहिए कि “हम शांति चाहते हैं, परंतु अपने नागरिकों की हत्या पर मौन नहीं रह सकते।” जब संयम न्याय का गला घोंटने लगे, तब प्रतिकार ही धर्म है। अत्यधिक संयम, जब वह अत्याचार को बल प्रदान करने लगे, तो वह कायरता बन जाता है। आज भारत को यह दिखाना होगा कि संयम उसका स्वभाव है, कमजोरी नहीं — और प्रतिकार उसका अधिकार है, विकल्प नहीं।