भारत और पाकिस्तान के बीच चले 12 दिन के सैन्य तनाव और 10 दिन के युद्धविराम के बाद, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) मंगलवार शाम से एक बार फिर अटारी-वाघा, हुसैनीवाला और फाजिल्का सीमाओं पर बीटिंग रिट्रीट समारोह की वापसी करने जा रहा है। यह आयोजन भले ही सामान्य दिनों जैसा न हो, लेकिन तनाव के बाद यह एक ऐसा प्रयास है जो सीमांत इलाकों में जनजीवन में थोड़ी उम्मीद और सामान्यता लौटाने की कोशिश करता है।
बीएसएफ अधिकारियों ने बताया कि इस बार समारोह सीमित रूप में होगा। पाकिस्तान की ओर से आए सुरक्षाकर्मियों से हैंडशेक या सीमा द्वार खोले जाने की संभावना नहीं है। यह एक तरह से सम्मानजनक दूरी बनाए रखने का संकेत भी है। हालांकि, आम दर्शकों को कार्यक्रम देखने की अनुमति होगी, जो खासकर सीमा पर बसे लोगों के लिए एक राहत और गर्व का क्षण है।
यह कार्यक्रम शाम 6 बजे अटारी सीमा (अमृतसर), हुसैनीवाला सीमा (फिरोजपुर) और सादकी सीमा (फाजिल्का) पर आयोजित होगा। बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट फ्रंट ने स्थानीय नागरिकों से अपील की है कि वे शाम 5:30 बजे तक सादकी बॉर्डर पर पहुंचे और बड़ी संख्या में इस समारोह में भाग लें। सामान्य दिनों में इस कार्यक्रम को देखने के लिए सैकड़ों दर्शक, यहां तक कि विदेशी नागरिक भी आते हैं। परेड की गर्जना, बूटों की ताल और तिरंगे की लहराती शान यह सब सीमा पर एक ऐसा दृश्य रचते हैं जो केवल परंपरा नहीं, बल्कि देशभक्ति की जीवंत झलक बन जाता है।
परंपरा वही, अंदाज़ थोड़ा अलग
20 मई से शुरू हुए बीटिंग रिट्रीट समारोह में इस बार कुछ बदलाव किए गए हैं, जो हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच उपजे तनाव को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं। अब पहले की तरह बीएसएफ और पाक रेंजर्स के बीच हाथ मिलाने की परंपरा इस आयोजन का हिस्सा नहीं होगी। सीमा के द्वार भी नहीं खोले जाएंगे, जो सामान्य दिनों में दोनों सेनाओं के बीच एक प्रतीकात्मक सौहार्द का संकेत होते थे।
बीएसएफ पंजाब फ्रंटियर के इंस्पेक्टर जनरल अतुल फुलजले ने जानकारी दी कि समारोह को छोटा और अधिक सुरक्षित रखा गया है। उनका कहना है कि सुरक्षा व्यवस्था सर्वोपरि है, लेकिन इसके साथ ही सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले नागरिकों को यह विश्वास भी देना जरूरी है कि जीवन सामान्य दिशा में लौट रहा है। हर शाम ठीक 6 बजे यह आयोजन होगा, और इच्छुक दर्शक इसे देखने आ सकते हैं। भीड़ को नियंत्रित रखते हुए लोगों को इस आयोजन से जोड़ने की अनुमति दी जा रही है ताकि सीमा पर बसे आम नागरिक भी गर्व और गौरव के इस क्षण के साक्षी बन सकें। यह बदलाव भले ही छोटे लगें, लेकिन इनका संदेश गहरा है शांति की कोशिशें जारी हैं, लेकिन सजगता और सम्मान के साथ।
बीटिंग रिट्रीट का इतिहास
भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित वाघा बॉर्डर सिर्फ एक भौगोलिक रेखा नहीं है, बल्कि यह उस विरासत का प्रतीक है जिसमें परंपरा, पराक्रम और प्रतीकात्मक संवाद तीनों का संगम देखने को मिलता है। वाघा गांव, भारत के अमृतसर और पाकिस्तान के लाहौर के बीच ऐतिहासिक ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है। लाहौर से 29 किलोमीटर और अमृतसर से 27 किलोमीटर दूर बसे इस स्थान ने दशकों से सीमा पर दोनों देशों के रिश्तों का सांकेतिक मंच तैयार किया है।
वर्ष 1959 में शुरू हुए बीटिंग रिट्रीट समारोह की शुरुआत का मकसद सीमावर्ती तनावों के बीच भी आपसी सम्मान, अनुशासन और एक प्रकार का संवाद बनाए रखना था। यह एक औपचारिक सैन्य परेड होती है जिसमें दोनों देशों के सैनिक संध्या समय झंडा उतारने की रस्म को एक सख्त लेकिन सम्मानजनक अनुशासन के साथ निभाते हैं। हर शाम सूर्यास्त से पहले, परेड का आयोजन होता है जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों ओर से सैनिकों की सजीव और शक्तिशाली उपस्थिति देखने को मिलती है। भारतीय पक्ष परेड को जोश, गरिमा और देशभक्ति के गीतों के साथ प्रस्तुत करता है दर्शकों के नारों, तालियों और राष्ट्रध्वज के सम्मान के साथ माहौल बेहद जीवंत हो उठता है।
बीते वर्षों में यह आयोजन एक लोकप्रिय पर्यटन आकर्षण बन चुका है, जहां देशभर से ही नहीं, बल्कि विदेशी नागरिक भी बड़ी संख्या में आते हैं। बॉलीवुड के देशभक्ति गीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और लोगों की भागीदारी इसे सिर्फ एक सैन्य परेड नहीं, बल्कि राष्ट्रप्रेम के सार्वजनिक उत्सव का रूप दे देते हैं। एक दिलचस्प परंपरा इस समारोह की यह भी रही है कि झंडा उतारने के समय दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं, जो तमाम कटुता के बीच एक प्रतीकात्मक सद्भाव की झलक देता है। हालांकि, हाल के सैन्य तनावों और सुरक्षा कारणों से इस बार यह परंपरा फिलहाल निलंबित रहेगी। गौरतलब है कि जब भी सीमा पर हालात असामान्य या युद्ध जैसे हो जाते हैं, तो यह आयोजन कुछ समय के लिए रोक दिया जाता है। लेकिन उसकी वापसी भले ही बदले हुए स्वरूप में हो यही दर्शाती है कि सामान्य स्थिति की ओर लौटने की उम्मीद और कोशिशें जारी हैं।