Vishnu Kumar Ji Birth Anniversary Special: कुछ लोग इतिहास लिखते हैं और कुछ केवल इतिहास बनते हैं। वहीं कुछ ऐसे होते हैं जो खामोशी से समाज की रचना करते हैं। किसी को भनक नहीं लगती और वो ईंट-दर-ईंट, चेहरों के पीछे रहकर समाज का गति और दिशा देते हैं। ऐसे ही एक संत सेवक का नाम विष्णु कुमार जी है जिन्होंने संघ के साय में समाज की जीवन भर सेवा की। कर्नाटक के बेंगलुरु के पास अक्कीरामपुरा नगर में एक साधारण परिवार में जन्मे विष्णु कुमार जी की कहानी किसी सूरज की तरह है, जिसने अपने प्रकाश से न जाने कितने जीवन रोशन किए।
कर्नाटक के एक शांत गांव अक्कीरामपुरा में 5 मई, 1933 को एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसने आगे चलकर सेवा के विशाल वटवृक्ष की नींव रखी। छह भाइयों और एक बहन के बीच सबसे छोटे विष्णु कुमार का दिल बचपन से ही दीन-दुखियों के प्रति करुणा से भरा था। इसे उनके पारिवारिक संस्कारों से और अधिक प्रगति मिली। परिणाम ये हुआ कि उन्होंने समाज को गढ़ना शुरू कर दिया।
- 5 मई 1933 को कर्नाटक के अक्कीरामपुरा नगर में जन्म।
- भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
- परिवार में सेवा और अध्यात्म की गूंज थी।
- दो भाई संघ के प्रचारक बने, दो रामकृष्ण मिशन के सन्यासी
- विष्णु जी छात्रावास में रहते हुए घर से आया सामान जरूरतमंदों में बांट देते थे।
इंजीनियर से प्रचारक तक का सफर
शुगर टेक्नोलॉजी में प्रशिक्षित विष्णु जी नौकरी के लिए कानपुर आए, जहां उनका परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ। यहीं से उन्होंने जीवन का नया अध्याय शुरू किया। इंजीनियरिंग की राह छोड़कर वह प्रचारक बन गए। अलीगढ़, मेरठ, पीलीभीत, काशी और कानपुर जैसे शहरों में प्रचारक रहते हुए उन्होंने जीवन को तपस्वी बना लिया। हिंदी भाषा से अपरिचित होने के बावजूद उन्होंने संगठन को सींचा।
जरूरतमंदों को दे देते थे अपना सामान
छात्रावास में पढ़ते वक्त विष्णु जी का दिल इतना बड़ा था कि घर से मिले पैसे और कपड़े वे गरीबों में बांट देते। उनके लिए अपनी जरूरतों से ज्यादा जरूरी थी किसी भूखे का पेट भरना या किसी ठिठुरते को गर्म कपड़ा देना। शुगर तकनीक में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर वे नौकरी के लिए कानपुर पहुंचे। यहीं उनकी मुलाकात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुई, और यही वह मोड़ था, जहां उनकी जिंदगी को एक नया मकसद मिला।
आपातकाल के दौरान ‘मास्टर जी’
आपातकाल के दौरान कानपुर में उन्होंने ‘मास्टर जी’ के छद्म नाम से काम किया और स्वयंसेवकों पर चल रहे मुकदमों को समाप्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1978 में उन्हें दिल्ली में प्रौढ़ शाखाओं का कार्यभार सौंपा गया। यहां उनकी असली साधना का श्रीगणेश हुआ।
- आपातकाल के दौर में ‘मास्टर जी’ के नाम से सक्रिय रहे।
- इमरजेंसी में उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं को संगठित किया।
- वर्ष 1978 में उन्हें दिल्ली में प्रौढ़ शाखाओं का दायित्व सौंपा गया।
सेवा भारती को किया खड़ा
1978 में सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने स्वयंसेवकों को निर्धन बस्तियों में काम करने का आह्वान किया। विष्णु जी ने इसे चुनौती की तरह लिया और ऐसे स्वयंसेवकों को तैयार किया जो बस्तियों में बच्चों को पढ़ा सकें। धीरे-धीरे यह काम इतना बढ़ा कि इसे ‘सेवा भारती’ का नाम दिया गया। 14 अक्टूबर, 1979 को बालासाहब देवरस ने इसका उद्घाटन किया। 1989 में जब संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जन्मशती मनाई गई तब सेवा भारती का काम पूरे देश में फैल गया। दिल्ली में शुरू हुआ यह काम देश भर के लिए नमूना बन गया।
- 1979 में दिल्ली में सेवा धाम बनाया।
- इसके लिए मंडोली में उन्हें पांच एकड़ भूमि दान में मिली थी।
- यहां निर्धन छात्रों के पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था थी।
- दिल्ली में उन्होंने संस्कार केंद्र, चिकित्सा केंद्र जैसी कई योजनाएं चलाई।
- दिल्ली में विष्णु जी को ‘बाबा’, ‘काका’, ‘भैया’ कहा जाता था।
मध्य प्रदेश में सैकड़ों प्रकल्प
1995 में विष्णु जी को मध्य प्रदेश भेजा गया, जहां उन्होंने सैकड़ों सेवा प्रकल्प शुरू किए। लेकिन इस भागदौड़ ने उनके स्वास्थ्य को चोट पहुंचाई। 2005 में उन्हें गंभीर हृदयाघात हुआ, फिर भी उनकी इच्छाशक्ति ने उन्हें काम में डटे रहने की ताकत दी। बाद में हेपेटाइटिस बी जैसी गंभीर बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया। हालांकि, अंतिम सांस तक उन्होंने सेवा से किनारा नहीं किया।
अंतिम सांस तक करते रहे सेवा
हेपेटाइटिस बी जैसी गंभीर बीमारी ने उनके शरीर को कमजोर कर दिया। इलाज के लिए उन्हें दिल्ली लाया गया, जहां 25 मई, 2009 को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने सेवा कार्यों के लिए एक लाख रुपये के तीन और भोपाल नगर निगम ने 51,000 रुपये के एक पुरस्कार की घोषणा की। विष्णु जी सार्वजनिक मंचों के नायक। वे जीवन के पृष्ठों के बीच लिखी गई वह प्रेरक कथा हैं।
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विष्णु कुमार जी एक ऐसे सेवा साधक थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन अभावग्रस्त और वंचित लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। उनकी करुणा, दृढ़ संकल्प और अथक प्रयासों ने हजारों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। ‘सेवा भारती’ के रूप में उन्होंने एक ऐसी संस्था की नींव रखी जो आज भी उनके दिखाए मार्ग पर चलकर समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उनका जीवन सेवा और समर्पण की एक प्रेरणादायक गाथा है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी मानवता की सेवा के लिए प्रेरित करती रहेगी।