इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA), जिसका नाम उस नेता के नाम पर रखा गया है जिन्होंने 1975 में लोकतंत्र को कमजोर किया था, अब आपातकाल के 50वें वर्ष की याद में एक साल भर चलने वाला कार्यक्रम शुरू करने जा रहा है। तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यह कठोर कदम उठाया था, जिसमें मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, विपक्षी नेताओं को जेल भेजा गया, प्रेस को दबाया गया, और स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे दमनकारी शासन स्थापित किया गया।
यह पहल उस कालखंड पर प्रकाश डालना चाहती है जो भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय और शर्मनाक अध्याय माना जाता है। इसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को नागरिक अधिकारों की क्रूर कटौती, सत्ता के दुरुपयोग और उन बहादुर नागरिकों की कहानियाँ बताना है जिन्होंने इस तानाशाही का विरोध किया, वही व्यक्ति जिसने इस आपातकाल की घोषणा की, उसी के नाम पर यह संस्था स्थापित है।
आपातकाल, जिसे 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने लागू किया था, एक संवैधानिक तख्तापलट था। “आंतरिक अशांति” के बहाने उन्होंने नागरिक स्वतंत्रताएँ रोकीं, प्रेस सेंसर की, विपक्ष को भंग किया और हजारों पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाल दिया। 21 महीने तक भारत में एक तानाशाही शासन रहा जहाँ प्रधानमंत्री को बिना किसी रोक-टोक के शासन करने की छूट थी, केवल अपनी सत्ता बचाने के लिए, जब उनके चुनाव को अदालतों ने अवैध घोषित कर दिया था। यह कदम राष्ट्रीय संकट के जवाब के बजाय राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए लोकतंत्र को कुचलने का एक सुनियोजित प्रयास था।
यह स्मृति कार्यक्रम 26 जून को नई दिल्ली के अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में एक बड़ी प्रदर्शनी से शुरू होगा। इस प्रदर्शनी में दुर्लभ अभिलेखीय सामग्री जैसे मूल दस्तावेज, तस्वीरें, समाचार पत्र के कटिंग्स, और आपातकाल के समय से जुड़े पहले व्यक्ति के अनुभव दिखाए जाएंगे। इसमें जेल की यादें, भूमिगत साहित्य और उस दौर में प्रतिबंधित प्रकाशित सामग्री भी शामिल होगी। इसका मकसद उस 21 महीने के दौरान हुए व्यापक सेंसरशिप, गिरफ्तारियों और राजनीतिक विरोध के दबाव की पूरी तस्वीर पेश करना है।
मुख्य प्रदर्शनी के अलावा, IGNCA ने चलती-फिरती प्रदर्शन इकाइयाँ भी तैयार की हैं जो राष्ट्रीय राजधानी में विभिन्न स्थानों पर जाकर स्कूलों, कॉलेजों, नागरिक समाज और आम जनता तक इतिहास पहुँचाएंगी। इस श्रृंखला में पैनल चर्चा, फिल्म स्क्रीनिंग, सार्वजनिक व्याख्यान और डिजिटल अभियान भी शामिल होंगे, जिनका मकसद आपातकाल के प्रभाव और तानाशाही के खिलाफ खड़े हुए लोगों के साहस को पुनः जीवित करना है।
इस अभियान के शुरू होते ही राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी तेज हो गईं। मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पार्टी की आपातकाल लागू करने वाली भूमिका की कड़ी आलोचना की। एक अलग कार्यक्रम में शाह ने कहा कि यह कदम “जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से” लिया गया था ताकि भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों को कमजोर किया जा सके और तानाशाही शासन थोप दिया जाए।
उन्होंने कहा, “25 जून 1975 वह दिन था जब भारत में लोकतंत्र की हत्या हुई। यह सिर्फ राजनीतिक गलती नहीं थी, बल्कि हमारे संविधान की आत्मा पर हमला था। इंदिरा गांधी ने आपातकाल राष्ट्रीय हित के लिए नहीं, बल्कि अपनी सत्ता बचाने के लिए घोषित किया, जब उनके चुनाव को अदालतों ने अमान्य कर दिया था।” उन्होंने डीएमके और कुछ समाजवादी दलों पर भी कांग्रेस के समर्थन में अपने सिद्धांतों का समझौता करने का आरोप लगाया।
गृह मंत्री की यह टिप्पणी बीजेपी सरकार की लगातार कोशिशों को दर्शाती है कि जनता को आपातकाल के दौरान हुई अत्याचारों की याद दिलाई जाए, और कांग्रेस को वह राजनीतिक दल बताया जाए जो ऐतिहासिक रूप से लोकतांत्रिक मानदंडों के साथ समझौता करने को तैयार रही है।
50वीं वर्षगांठ के मौके पर संवैधानिक अधिकारों, राजनीतिक जवाबदेही और लोकतांत्रिक संस्थानों के महत्व पर बहस फिर से छिड़ गई है। IGNCA का यह कार्यक्रम आने वाले साल में सार्वजनिक संवाद को आकार देने में अहम भूमिका निभाएगा।