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आपातकाल में जोड़े गए शब्द नासूर हैं: संविधान से ‘सेक्युलर और सोशलिस्ट’ हटाने की मांग के बीच VP धनखड़ का बड़ा बयान

आपातकाल में प्रस्तावना में बदलाव को संसद उपराष्ट्रपति ने बताया संविधान का अपमान

Mansi Singh द्वारा Mansi Singh
28 June 2025
in राजनीति
आपातकाल में जोड़े गए शब्द नासूर हैं: संविधान से ‘सेक्युलर और सोशलिस्ट’ हटाने की मांग के बीच VP धनखड़ का बड़ा बयान

संसद के उपाध्यक्ष श्री जगदीप धनखड़ का आरोप: संविधान की प्रस्तावना से छेड़छाड़ देश के लिए खतरा

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संविधान की प्रस्तावना से ‘सेक्युुलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द हटाए जाने की चर्चाओं के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि संविधान की प्रस्तावना उसकी आत्मा है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अद्वितीय है। भारत के अलावा किसी भी अन्य देश के संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ है, और ऐसा क्यों? प्रस्तावना न तो बदली जा सकती है, न ही उसमें कोई परिवर्तन किया जा सकता है। प्रस्तावना वह आधार है जिस पर संविधान विकसित हुआ है। यह संविधान का बीज है। यह संविधान की आत्मा है, लेकिन भारत के संविधान की प्रस्तावना में 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत बदलाव किया गया, जिसमें ‘समाजवादी’, ‘धार्मिक निरपेक्षता’ और ‘एकता’ जैसे शब्द जोड़े गए।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह बात आज उपराष्ट्रपति आवास पर एक कार्यक्रम में कही, जहां ‘अम्बेडकर के संदेश’ नामक पुस्तक की पहली प्रति प्रस्तुत की गई, जिसे श्री डी.एस. वीरैया ने संकलित किया है। उन्होंने कहा, “आपातकाल के दौरान, जो भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय समय था, जब लोग जेलों में थे और मौलिक अधिकार निलंबित थे, उस समय संविधान की आत्मा को बदला गया। जो लोग तब गुलाम थे, उनके नाम पर केवल शब्दों का यह झांसा एक अपमान है। केशवनंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में, 1973 में 13-सदस्यीय संविधान पीठ ने प्रस्तावना पर गहराई से विचार किया। न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान की व्याख्या के लिए मार्गदर्शक है और संविधान की प्राधिकरण का स्रोत यानी भारत के लोग को संकेत देती है।”

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उन्होंने आगे कहा, “हमें विचार करना चाहिए। डॉ. अम्बेडकर ने इस पर बहुत मेहनत की थी। वे निश्चित रूप से इस पर ध्यान देते। हमारे संविधान निर्माताओं ने इसे बुद्धिमानी से तैयार किया था। किसी भी देश की प्रस्तावना में बदलाव नहीं हुआ, सिवाय भारत के,  लेकिन यह बदलाव तब किया गया जब लोग लगभग गुलाम थे। हम ‘हम लोग’ जो शक्ति के असली स्रोत हैं, उनमें से कई जेलों में बंद थे और न्याय प्रणाली तक पहुंच से वंचित थे। मैं 25 जून 1975 से घोषित 22 महीने के कठोर आपातकाल की बात कर रहा हूं। क्या यह न्याय का अपमान नहीं है? एक ऐसा बदलाव जिसे बदला ही नहीं जाना चाहिए था, उसे आपातकाल के दौरान कर दिया गया।”

धनखड़ ने कहा, “हम संविधान की आत्मा को बदल रहे हैं। उन शब्दों को जो आपातकाल के अंधकारमय समय में जोड़े गए, वे एक तरह का ‘नासूर’ हैं। ये शब्द अस्तित्वगत चुनौतियां पैदा करेंगे। प्रस्तावना में इन शब्दों का जोड़ संविधान निर्माताओं की मानसिकता के साथ धोखा है। यह इस देश के हजारों साल के सभ्यतागत ज्ञान और समृद्धि का अपमान है। यह सनातन की आत्मा के खिलाफ एक पवित्रता उल्लंघन है।”

उन्होंने अम्बेडकर के संदेशों की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए कहा, “डॉ. भीमराव अम्बेडकर हमारे दिलों में जीवित हैं। वे हमारे मन पर राज करते हैं और हमारी आत्मा को छूते हैं। उनके संदेश आज भी हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये संदेश परिवार स्तर तक पहुँचने चाहिए, ताकि बच्चे इन्हें जान सकें। मैं उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में इस पुस्तक को प्राप्त कर बेहद संतुष्ट हूं। इसे संसद और नीति निर्धारकों द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए।”

धनखड़ ने न्यायपालिका की भूमिका पर भी प्रकाश डालते हुए कहा, “न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र का एक अहम स्तंभ है। मैं उस प्रणाली से आता हूं। सुप्रीम कोर्ट के दो उच्चस्तरीय न्यायाधीशों के समूह-गोलकनाथ बनाम पंजाब (11-न्यायाधीश) और केशवनंद भारती (13-न्यायाधीश) ने प्रस्तावना के महत्व पर विशेष ध्यान दिया। गोलकनाथ मामले में न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह ने कहा था, ‘हमारे संविधान की प्रस्तावना केवल शब्दों का झूठा दिखावा नहीं, बल्कि संविधान के लक्ष्यों का सार है।’ इसी तरह न्यायमूर्ति हेगड़े और न्यायमूर्ति मुखर्जी ने कहा था, ‘संविधान की प्रस्तावना संविधान की आत्मा है, जो अपरिवर्तनीय है।’”

उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के महान व्यक्तित्व और संघर्ष को याद करते हुए कहा, “डॉ. अम्बेडकर एक दूरदर्शी और महान राजनेता थे, जिन्हें केवल एक राजनेता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उनका जीवन संघर्ष और मानवता के लिए अद्भुत प्रयास का उदाहरण है। भारत रत्न पुरस्कार उन्हें मृत्यु के बाद मिला, जो मेरे दिल को चोट पहुंचाता है कि क्यों इतना विलंब हुआ? मैं देश के सभी नागरिकों से आग्रह करता हूं कि वे अम्बेडकर के अंतिम संबोधन को पढ़ें, जिसमें उन्होंने कहा था कि हमें अपने देश को अपनी आस्था, संस्कृति या भाषा से ऊपर रखना चाहिए। यदि हम देश से ऊपर अपनी आस्था रखते हैं, तो हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा अंतिम सांस तक करनी होगी।”

उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने यह संदेश दिया कि संविधान की प्रस्तावना को कभी भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए और इसे बदलना संविधान की आत्मा के साथ छेड़छाड़ करने के समान है। उन्होंने देशवासियों से इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने और अपने राष्ट्रप्रेम को मजबूत करने का आह्वान किया।

Tags: अपातकालउपाध्यक्ष जगदीप धनखड़जगदीप धनखड़संविधान
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