कुरुक्षेत्र की पुण्यभूमि, जहां कभी महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, एक बार फिर सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर बढ़ रही है। मान्यता है कि जब महाभारत का युद्ध हुआ था, तब भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी ने उस संघर्ष में भाग लेने के बजाय सरस्वती नदी के किनारे तीर्थयात्रा का मार्ग चुना। उन्होंने द्वारका से लेकर उत्तर हरियाणा के आदिबद्री तक सरस्वती नदी के तट पर बसे विभिन्न तीर्थों के दर्शन किए। इस यात्रा का उल्लेख महाभारत के वन पर्व, शल्य पर्व, वामन पुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है।
आज उसी ऐतिहासिक यात्रा को फिर से जीवंत करने का प्रयास किया जा रहा है। हरियाणा सरस्वती विरासत विकास बोर्ड ने बलराम जी द्वारा किए गए इस पथ को पुनः चिन्हित कर, उसे एक सुरक्षित, सुगम और संरक्षित तीर्थ मार्ग में बदलने का बीड़ा उठाया है। इस कार्य के तहत सरस्वती नदी के दोनों ओर मजबूत पगडंडियां और सड़कें बनाई जा रही हैं, ताकि न केवल आस्था से जुड़े लोगों को सुगमता हो, बल्कि बरसात के समय आने वाली बाढ़ की समस्या से भी राहत मिल सके। यह कार्य यमुनानगर जिले के ऊँचा चांदना गांव से लेकर पीपली तक करीब 63 किलोमीटर क्षेत्र में किया जा रहा है, जहां हर साल बरसात में सरस्वती नदी का बहाव इतना तेज होता है कि नदी किनारे के तटबंध टूट जाते हैं और आसपास के क्षेत्रों में जलभराव और नुकसान होता है।
सरस्वती बोर्ड के उपाध्यक्ष धूमन सिंह किरमच ने इस कार्य का शुभारंभ करते हुए जानकारी दी कि यह परियोजना न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व की है, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। उनके अनुसार मुख्यमंत्री नायब सैनी की इस योजना से सरस्वती नदी के किनारों को इतनी मजबूती दी जाएगी कि अब किसी भी हालात में तटबंध नहीं टूटेंगे और आसपास का इलाका बाढ़ के संकट से मुक्त हो सकेगा। इसके साथ ही जिन क्षेत्रों को डार्क ज़ोन घोषित किया गया था, वहां भी जलस्तर के सुधार की उम्मीद है।
दोनों तरफ बनेगी 63 किलोमीटर पगडंडी
सरस्वती नदी को फिर से जीवन देने और उसके ऐतिहासिक महत्व को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक बड़ी पहल शुरू हो चुकी है। यमुनानगर के ऊँचा चांदना से लेकर कुरुक्षेत्र के पिपली तक सरस्वती नदी के दोनों ओर करीब 63 किलोमीटर लंबी पगडंडी और रास्ते बनाए जा रहे हैं। सरस्वती बोर्ड के उपाध्यक्ष धूमन सिंह किरमच ने जानकारी दी कि यह कार्य क्षेत्र के लोगों के लिए बहुआयामी लाभ लेकर आएगा। बरसात के दिनों में जब नदी के आसपास जलभराव और बाढ़ की स्थिति बन जाती थी, अब यह परियोजना उस संकट को काफी हद तक कम करेगी।
उन्होंने बताया कि इस योजना से नदी किनारे बने सभी रिज़र्वायर में जल संचयन की व्यवस्था बेहतर की जाएगी। पानी की मात्रा बढ़ेगी जिससे डार्क ज़ोन घोषित रादौर और लाडवा जैसे क्षेत्रों को भी बड़ी राहत मिलेगी। यहां जल स्तर में गिरावट लंबे समय से चिंता का विषय बनी हुई थी, लेकिन अब यह प्रयास वहां के किसानों के लिए जीवनरेखा साबित हो सकता है। बेहतर जल आपूर्ति से न केवल बाढ़ का खतरा घटेगा, बल्कि खेती के लिए भी अधिक पानी उपलब्ध होगा, जिससे कृषि उत्पादन में सुधार की उम्मीद है।
इस योजना का उद्देश्य केवल जल प्रबंधन या संरचना निर्माण तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा रास्ता तैयार कर रहा है जो भक्ति और आस्था से भी जुड़ा होगा। बलराम जी की पौराणिक तीर्थ यात्रा से प्रेरित यह मार्ग, पगडंडी के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां श्रद्धालु और पर्यटक आसानी से आ-जा सकेंगे। सरस्वती बोर्ड ने इस परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने का लक्ष्य तय किया है, ताकि तीर्थ यात्रा, सिंचाई सुविधा और सांस्कृतिक संरक्षण तीनों पहलुओं में समान रूप से लाभ मिल सके। यह प्रयास न केवल एक नदी को फिर से बहने की दिशा में है, बल्कि उसकी धार में बसी सभ्यता, श्रद्धा और समृद्धि को भी पुनः जागृत करने का कार्य है।