बांग्लादेश इस समय एक गहरे राजनीतिक और लोकतांत्रिक संकट से गुजर रहा है, जहां जनता हर दिन यह जानने की कोशिश कर रही है कि क्या उन्हें फिर कभी वोट डालने का अधिकार मिलेगा या यह अधिकार स्थायी रूप से ताकतवरों के हाथों में खो गया है। बीते महीनों से देश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस चुनाव को लेकर या तो चुप रहे या टालते रहे। हर बार यही कहा गया कि जब तक कुछ ‘आवश्यक सुधार’ नहीं हो जाते, तब तक चुनाव की कोई उम्मीद न रखें। लेकिन अब जब सेना प्रमुख जनरल वकार-उस-जमन ने सार्वजनिक रूप से यूनुस को दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने का अल्टीमेटम दे दिया, तब जाकर यूनुस की तरफ से एक तारीख सामने आई है। उन्होंने कहा है कि अप्रैल 2026 तक चुनाव कराए जाएंगे।
यह एलान अपने आप में बहुत कुछ कहता है। पिछले दस महीनों में न तो चुनाव की तारीख तय की गई, न कोई रोडमैप सामने आया, और अब जब दबाव बढ़ा तो अचानक से यह बयान आया कि चुनाव होंगे। इस बीच बांग्लादेश में राजनीतिक और संवैधानिक हालात लगातार बिगड़ते रहे हैं। अवामी लीग, जो कि बांग्लादेश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी है, उसे फिलहाल पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके उलट, ऐसे चेहरे जो कट्टरपंथ को बढ़ावा देते रहे हैं, उन्हें ज़मानतें दी जा रही हैं। यह परिदृश्य ऐसा है जैसे देश में सब कुछ उल्टा चल रहा है, परिभाषाएं पलट दी गई हैं और लोकतंत्र को किसी कोने में धकेल दिया गया है।
बात यहीं नहीं रुकती। संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर गवीन लुइस ने यह तक कह दिया कि अगर अवामी लीग चुनाव में हिस्सा नहीं भी लेती, तो भी आगामी चुनाव समावेशी माने जा सकते हैं। यह वही संयुक्त राष्ट्र है जिसने 2018 में स्पष्ट रूप से कहा था कि विश्वसनीय और निष्पक्ष चुनाव के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की भागीदारी ज़रूरी है। अब जब सबसे बड़ा दल किनारे है, तब यह नई परिभाषा देना न सिर्फ हैरान करता है बल्कि यह संकेत भी देता है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी दोहरा रवैया अपनाया जा रहा है।
बांग्लादेश के स्वतंत्र आवाज़ों में से एक तस्कीन वाहेद आकाश ने इस पूरे घटनाक्रम की तीखी आलोचना की है। वे लगातार राष्ट्र की एकता, लोकतांत्रिक मूल्यों और बंगबंधु की विरासत की बात करते रहे हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा कि जब अवामी लीग को बाहर रखकर चुनाव कराने की बात की जा रही है, तो असल में लाखों मतदाताओं को ही चुनाव प्रक्रिया से बाहर किया जा रहा है। वे सवाल उठाते हैं कि इस स्थिति का लाभ आखिर किसे मिलेगा। क्या यह वही प्रक्रिया नहीं है जिसमें परिणाम पहले से तय होते हैं और जनता सिर्फ तमाशबीन बनकर रह जाती है।
यूनुस ने क्या कहा
ईद-उल-अजहा की पूर्व संध्या पर बांग्लादेश के अंतरिम सरकार प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने टेलीविजन के ज़रिए देश को संबोधित किया और पहली बार आगामी चुनाव को लेकर एक संभावित समयसीमा की घोषणा की। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश का अगला आम चुनाव अप्रैल 2026 की पहली छमाही में आयोजित किया जाएगा। यूनुस के मुताबिक, चुनाव आयोग जल्द ही इसका विस्तृत रोडमैप पेश करेगा। अपने संदेश में उन्होंने बीते दस महीनों की अपनी सरकार की उपलब्धियों का ज़िक्र भी किया और यह दोहराया कि उनकी सरकार न्याय, सुधार और चुनाव इन तीन बिंदुओं को आधार बनाकर काम कर रही है।
यूनुस ने यह भी कहा कि वे चाहते हैं कि चुनाव में अधिक से अधिक मतदाता, उम्मीदवार और राजनीतिक दल भाग लें, ताकि इसे देश का अब तक का सबसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव माना जाए। मगर उनका यह आत्मविश्वास उस ज़मीनी सच्चाई से मेल नहीं खाता जिसमें कई विपक्षी दलों, खासकर बीएनपी, ने चुनाव में देरी को लेकर गंभीर आपत्ति जताई है। बीएनपी की स्थायी समिति के सदस्य सलाहुद्दीन अहमद ने हाल ही में कहा कि देश में चुनाव दिसंबर 2025 से पहले कराना न केवल संभव है, बल्कि आवश्यक भी है। उन्होंने तर्क दिया कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो ज़रूरी सुधार एक महीने से भी कम समय में पूरे किए जा सकते हैं।
बीएनपी को यह विश्वास है कि अगर निष्पक्ष चुनाव होते हैं, तो जनता उन्हें बहुमत देगी। इसी विश्वास के साथ पार्टी नेतृत्व, विशेष रूप से कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान, लगातार युवाओं और नागरिकों से अपील कर रहे हैं कि वे चुनाव को दिसंबर तक कराने के लिए जनदबाव बनाएं। रहमान ने लंदन से वर्चुअल रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अतीत में कार्यवाहक सरकारें तीन महीने के भीतर सफलतापूर्वक चुनाव करवा चुकी हैं, लेकिन यूनुस सरकार दस महीने बीत जाने के बाद भी केवल संभावनाओं की बात कर रही है, कोई ठोस तिथि नहीं दे रही।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर यूनुस या उनके सहयोगी सत्ता में बने रहना चाहते हैं, तो वे औपचारिक रूप से इस्तीफा दें, जनता के बीच आएं, चुनाव लड़ें और यदि बहुमत मिले तो लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनाएं। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के लोग इस टालमटोल, अनिश्चितता और नियंत्रण के खेल से थक चुके हैं, वे एक ऐसे शासन के हकदार हैं जो जनता द्वारा चुना गया हो और जनता के प्रति जवाबदेह हो।
इन सबके बीच, मोहम्मद यूनुस के विदेश दौरों पर भी सवाल उठ रहे हैं। ईद के बाद वह 10 से 13 जून तक एक और लंदन यात्रा पर जा रहे हैं। जब देश में चुनाव को लेकर असमंजस और असंतोष चरम पर है, तब ऐसे वक्त में उनका बार-बार विदेश जाना यह संकेत देता है कि क्या वे भीतर के हालात से बच रहे हैं या फिर अंतरराष्ट्रीय सहमति के ज़रिए सत्ता को स्थगित करने की रणनीति बना रहे हैं। यह स्पष्ट है कि यूनुस का संबोधन सिर्फ एक तात्कालिक जवाब था, न कि कोई दूरदर्शी समाधान।