तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा इन दिनों लगातार सुर्खियों में हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में अपना 90वां जन्मदिन मनाते हुए दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी को लेकर एक बड़ा ऐलान किया, जिसके बाद चीन की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। इसी बीच अब दलाई लामा को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की मांग ने जोर पकड़ लिया है।
ऑल पार्टी फोरम ने रखा प्रस्ताव, 80 सांसदों ने किए हस्ताक्षर
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सांसदों के एक ऑल पार्टी फोरम ने दलाई लामा को भारत रत्न देने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव पर अब तक 80 सांसदों के हस्ताक्षर हो चुके हैं, और 20 अन्य सांसदों से भी समर्थन लेने की प्रक्रिया चल रही है। इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को सौंपा जाएगा। इस फोरम की अगुआई भर्तृहरि महताब कर रहे हैं, जबकि राज्यसभा सांसद सुजीत कुमार इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
भारत रत्न की मांग और वैश्विक संदेश
दलाई लामा को भारत रत्न देने की मांग कोई नई नहीं है। वर्ष 2021 में आईएएनएस-सीवोटर सर्वे में 62.4% भारतीयों ने दलाई लामा को यह सम्मान देने का समर्थन किया था। 1959 में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद दलाई लामा भारत में शरणार्थी बनकर आए थे। वह आज भी अहिंसा, करुणा और वैश्विक शांति के प्रतीक माने जाते हैं।
दलाई लामा को यह सम्मान देने से भारत की सॉफ्ट पावर को भी बल मिलेगा, जैसा कि पहले नेल्सन मंडेला (1990), खान अब्दुल गफ्फार खान (1987) और मदर टेरेसा (1980) को भारत रत्न देकर देश ने अपनी वैश्विक नैतिक छवि को मजबूत किया था।
गौरतलब है कि दलाई लामा को 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार भी मिल चुका है, जिसे उन्हें “सहिष्णुता और आपसी सम्मान पर आधारित शांतिपूर्ण समाधान” की वकालत के लिए दिया गया था।
CTA से मुलाकात और चीन को जवाब
तिब्बत पर केंद्रित सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच ने कई बार केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) से भी मुलाकात की है। चीन द्वारा दलाई लामा के उत्तराधिकारी चयन पर आपत्ति जताने के बाद सुजीत कुमार ने कहा कि चीन को दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फोरम इस मुद्दे को संसद सहित कई अन्य मंचों पर उठाएगा।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चीन का गुस्सा
दलाई लामा द्वारा उत्तराधिकारी को लेकर की गई घोषणा के बाद चीन बुरी तरह भड़क गया है। बीजिंग ने इस घोषणा को खारिज करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि, “दलाई लामा, पंचेन लामा और अन्य प्रमुख बौद्ध आध्यात्मिक गुरुओं के पुनर्जन्म की प्रक्रिया स्वर्ण कलश से लॉटरी निकालकर की जानी चाहिए, और इसे चीनी सरकार की मंजूरी से ही वैध माना जाएगा।”
माओ निंग ने यह भी दावा किया कि तिब्बती बौद्ध धर्म की उत्पत्ति चीन में हुई है और यह अब “चीनी विशेषताओं वाला धर्म” है।
इतना ही नहीं, चीन ने अपने समर्थक पंचेन लामा की नियुक्ति भी कर दी है, जिन्होंने हाल ही में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति अपनी वफादारी की शपथ ली।