अमेरिका की एक ईसाई संस्था, अंतरराष्ट्रीय ईसाई चिंता (ICC), ने भारत सरकार पर ईसाइयों का जानबूझकर उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। यह आरोप गलत है और पुरानी उपनिवेशकालीन सोच पर आधारित है, जो सिर्फ कुछ घटनाओं को लेकर एकतरफा विरोध करता है।
पश्चिमी देश जो सच को नजरअंदाज करते हैं और भारतीय मीडिया जो शायद खुलकर कहने से बचता है, वह यह है कि ये ‘उत्पीड़ित’ समूह केवल धर्म प्रचार नहीं कर रहे बल्कि वे देश के सबसे कमजोर वर्गों गरीब, आदिवासी और सामाजिक रूप से वंचित समुदायों को पैसों, सामाजिक दबाव और झूठे वादों के जरिए धर्मांतरित करने की कोशिश कर रहे हैं।
कल्याण कार्य के बहाने धर्मांतरण
शिक्षा, स्वास्थ्य या चैरिटी के नाम पर विदेशी पैसे से चलने वाले मिशनरी संगठन एक ही मकसद से काम करते हैं, धर्मांतरण। ये संगठन शहरी इलाकों या पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग के लोगों के बीच नहीं जाते, बल्कि वे ज्यादा तर दूर-दराज के गांवों, आदिवासी इलाकों और दलित समुदायों को अपना निशाना बनाते हैं, जहां लोगों को भोजन, शिक्षा या नौकरी के बदले धर्म बदलने के लिए कहा जाता है।
यह बात सब जानते हैं। बस्तर से लेकर झारखंड, ओडिशा और पूर्वोत्तर के कई इलाकों में ये समूह जान-बूझकर आर्थिक रूप से पिछड़े लेकिन सांस्कृतिक रूप से समृद्ध इलाकों में अपनी पकड़ बना रहे हैं। वहां की पुरानी परंपराओं और विश्वासों को विदेशी धर्म की सोच से बदलने की कोशिश की जा रही है।
धर्मांतरण विरोधी कानून: उत्पीड़न नहीं, सुरक्षा का साधन
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों ने धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाए हैं ताकि लोगों को जबरन धर्म बदलने या धोखे में पड़ने से बचाया जा सके। ये कानून बस यह सुनिश्चित करते हैं कि धर्म परिवर्तन पूरी तरह से अपनी मर्जी से और साफ तरीके से हो, जो कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में जरूरी है।
लेकिन जब ये कानून लागू होते हैं, तो पश्चिमी संगठन तुरंत धार्मिक उत्पीड़न का दावा करने लगते हैं। क्या अब धोखे से धर्म परिवर्तन पर सवाल उठाना ही मानवाधिकारों पर हमला माना जाएगा? या असली बात यह है कि विदेशी फंडिंग वाली संस्थाएं भारत के आदिवासी इलाकों में अपना प्रभाव खो रही हैं?
प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी शक्ति है, मिलीभगत नहीं
ICC का यह कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी का मतलब मिलीभगत है, बिलकुल गलत और अपमानजनक है। मोदी का तरीका संविधान का पालन करना है, दिखावा करना नहीं। उनकी सरकार ने गरीबों और अल्पसंख्यकों के लिए उज्ज्वला, जनधन, प्रधानमंत्री आवास जैसी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के चलायी हैं।
भारत को ऐसे देशों से धार्मिक आज़ादी की बातें सुनने की जरूरत नहीं है, जहां अल्पसंख्यकों पर रोज़ नफरत से भरे अपराध होते हैं, या जहां धर्म बदलने पर सख्त नियम या पूरी तरह रोक लगी हो।
वैश्विक राजनीतिक खेल
यह मुद्दा सिर्फ धर्म का नहीं, बल्कि नियंत्रण का है। वही पश्चिमी समूह जिन्होंने भारत के नागरिकता कानून (CAA) विरोध, किसान आंदोलन और अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान भारत की छवि खराब करने की कोशिश की, अब ‘ईसाइयों का उत्पीड़न’ दिखाकर भारत को बदनाम करने की नई कोशिश कर रहे हैं।
वे कश्मीरी पंडितों के लिए न्याय की मांग को नजरअंदाज करते हैं। उनकी नारेबाजी सच पर नहीं, बल्कि राजनीति, सोच और पुराने उपनिवेशकालीन मिशनरियों की मानसिकता पर आधारित है, जो ‘देशी लोगों को सुधारने’ या ‘सफेद आदमी का बोझ उठाने’ की बात करते हैं।
भारत अपनी सभ्यता की रक्षा करेगा
यह साफ कर दें: भारत अपनी सांस्कृतिक जड़ों की रक्षा करने में कभी माफी नहीं मांगेगा। वह उन विदेशी फंड वाली संस्थाओं को जो गरीबी का फायदा उठाकर धर्म फैलाती हैं, बर्दाश्त नहीं करेगा। हमारा संविधान धर्म की आज़ादी देता है, लेकिन जबरन धर्म बदलने की आज़ादी नहीं। और चाहे जितना भी पश्चिमी प्रचार हो, यह सचाई नहीं बदलेगी।