बांग्लादेश में बाल विवाह की दर दक्षिण एशिया में सबसे अधिक दर्ज की गई है, जहां आधे से अधिक लड़कियों की शादी 18 साल की कानूनी उम्र से पहले कर दी जाती है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में सामने आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि पहले जहां इस प्रवृत्ति में सुधार हो रहा था, वहीं कोविड-19 महामारी के बाद इसमें तेज़ी से गिरावट देखी गई है।
महामारी के बाद बाल विवाह में तेज़ बढ़ोतरी
UNFPA की हालिया वार्षिक रिपोर्ट, जो पिछले महीने प्रकाशित हुई, के अनुसार बांग्लादेश में 51 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। यह आंकड़ा पड़ोसी देशों की तुलना में काफी अधिक है: अफगानिस्तान में 29 प्रतिशत, भारत में 23 प्रतिशत और पाकिस्तान में 18 प्रतिशत।
महामारी से पहले बांग्लादेश में बाल विवाह की दर लगभग 33 प्रतिशत थी। लेकिन 2020 से लेकर अब तक बांग्लादेश सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस दर में हर साल लगातार वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन से उत्पन्न सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता को बताया गया है। लोकप्रिय शिक्षा अभियान की कार्यकारी निदेशक राशेदा के. चौधरी ने कहा “कोविड-19 से पहले हम दक्षिण एशिया में सबसे खराब स्थिति में नहीं थे,” “लेकिन महामारी ने शिक्षा को बाधित किया, गरीबी बढ़ाई और घरेलू तनाव को और गहरा किया। इससे कई परिवारों ने कम उम्र में अपनी बेटियों की शादी कर दी।”
गरीबी और आर्थिक बोझ बनी बाल विवाह की मुख्य वजह
विशेषज्ञों के अनुसार बांग्लादेश में बाल विवाह के पीछे गरीबी सबसे बड़ा कारण है। कई गरीब परिवारों के लिए कम उम्र में बेटियों की शादी करना खर्च कम करने का एक जरिया बन चुका है। “हमारे शोध में सामने आया है कि महामारी के दौरान आर्थिक संकट के कारण विशेषकर निम्न आय वर्ग के अभिभावकों ने मजबूरी में अपनी बेटियों की शादी कर दी,” चौधुरी ने कहा। “अक्सर यह फैसला पूरी तरह निराशा की स्थिति में लिया जाता है।”
केवल शिक्षा से नहीं रुकेगा बाल विवाह
हालांकि बांग्लादेश में दक्षिण एशिया में सबसे अधिक लड़कियों का माध्यमिक शिक्षा में नामांकन है, लेकिन यह उपलब्धि बाल विवाह पर प्रभाव डालने में सफल नहीं हो पा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल शिक्षा पर्याप्त नहीं है; इसके साथ मानव विकास और सामाजिक जागरूकता में भी निवेश ज़रूरी है। चौधुरी ने कहा “बांग्लादेश ने इन्फ्रास्ट्रक्चर में काफी निवेश किया है, लेकिन मानव विकास में नहीं,” “अगर हम बाल विवाह को रोकना चाहते हैं तो इसमें समुदाय की भागीदारी आवश्यक है। सरकार हर घर पर निगरानी नहीं रख सकती, समाज को खुद आगे आना होगा।”
सांस्कृतिक सोच और ग्रामीण शिक्षा की कमी से बढ़ रही समस्या
ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में सामाजिक मान्यताएं और सीमित शिक्षा व्यवस्था इस समस्या को और बढ़ा रही हैं। कई गांवों में केवल आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई होती है, जिससे लड़कियों के पास आगे पढ़ने या कुछ और करने के विकल्प नहीं बचते। वर्ल्ड विजन बांग्लादेश के प्रोजेक्ट मैनेजर अज़ीज़ुल हक़ ने कहा “ऐसे इलाकों में लड़कियों को बोझ समझा जाता है,” “जब वे आठवीं कक्षा पास कर लेती हैं, तो उनके पास घर में बैठने के अलावा कुछ करने को नहीं होता। ऐसे में माता-पिता शादी को ही एकमात्र रास्ता समझते हैं।”
हक़ ने यह भी कहा कि लोगों में बाल विवाह के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर जागरूकता की भारी कमी है। “हमें एक राष्ट्रीय अभियान की जरूरत है जो परिवारों को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसानों के बारे में शिक्षित कर सके।”
सामुदायिक स्तर पर ठोस कार्रवाई की ज़रूरत
हालांकि बांग्लादेश में बाल विवाह को रोकने के लिए कानून मौजूद हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि केवल कानून से काम नहीं चलेगा। इसके लिए ज़मीनी स्तर पर पहल, जागरूकता अभियान और माध्यमिक शिक्षा से आगे भी निवेश की ज़रूरत है। चौधुरी ने ज़ोर देकर कहा “नीतियों से ज्यादा ज़रूरी है सोच में बदलाव,” “यह बदलाव समुदाय से शुरू होगा, जब समाज बेटियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य को महत्व देना शुरू करेगा, तभी बाल विवाह पर रोक संभव होगी।”
बाल विवाह की बढ़ती दर बांग्लादेश की नई पीढ़ी के स्वास्थ्य, शिक्षा और अधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है। यदि जल्द और समन्वित कदम नहीं उठाए गए, तो विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रवृत्ति आने वाली पीढ़ियों को गरीबी और असमानता के चक्र में फंसा देगी।