भारत और अमेरिका के बीच चल रही द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में डेयरी क्षेत्र को लेकर गंभीर मतभेद उभरे हैं। अमेरिका अपने डेयरी उत्पादों के लिए भारत के बाजार को खोलने का प्रयास कर रहा है जबकि भारत ने उन डेयरी उत्पादों के आयात पर कड़ा रुख अपनाया है जिनमें ‘मांसाहारी दूध’ शामिल है।यह ऐसे दूध और डेयरी उत्पाद हैं, जो उन गायों से प्राप्त हुए हैं जिन्हें मांस या खून से बने चारे खिलाए गए हों। भारत के लिए डेयरी क्षेत्र केवल एक आर्थिक विषय नहीं है बल्कि यह 1.4 अरब से अधिक आबादी की दैनिक जरूरतों और 8 करोड़ से अधिक छोटे किसानों की आजीविका का महत्वपूर्ण स्तंभ है।
इसके साथ ही, डेयरी उत्पादों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी व्यापक रूप से माना जाता है। भारत की बड़ी शाकाहारी आबादी ऐसे डेयरी उत्पादों को स्वीकार नहीं करती जो गैर-शाकाहारी चारे से पोषित गायों से प्राप्त होते हैं। भारत सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं है और इसे उपभोक्ताओं की सुरक्षा एवं सांस्कृतिक भावनाओं की रक्षा के लिहाज से ‘रेड लाइन’ मानती है। भारत की मांग है कि अमेरिका से आयात किए जाने वाले ऐसे सभी डेयरी उत्पादों पर यह स्पष्ट रूप से उल्लेख हो कि वे उन गायों से प्राप्त हैं जिन्हें मांस या खून से बने चारे नहीं खिलाए गए हैं। वार्ता में इस पहलू ने द्विपक्षीय समझौते की प्रक्रिया को जटिल बना दिया है।
अमेरिका में गायों को खिलाया जाता है नॉन वेज चारा
भारत में गाय बेशक पूरी तरह वेज़ होती हों लेकिन अमेरिका में डेयरी उद्योग में गायों को चारे के रूप में मांस, खून, मुर्गी, मछली समेत अन्य पशु उत्पाद खिलाए जाते हैं। seattlepi.com की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गायों के चारे में सूअर, घोड़े, कुत्ते और बिल्ली के अंग भी शामिल हो सकते हैं। कई बार मुर्गी के पंख, कूड़ा और गिरा हुआ चारा भी दिया जाता है। इसका उद्देश्य गायों की सेहत या दूध की गुणवत्ता नहीं बल्कि चारे की लागत कम करना होता है। भारत सरकार ने ऐसे डेयरी उत्पादों पर आयात प्रतिबंध लगाया है और यह सुनिश्चित करने के लिए सख्त पशु चिकित्सा प्रमाणन व्यवस्था लागू की है कि जो डेयरी उत्पाद भारत में आयात हो, वे केवल उन गायों से आए हों जिन्हें पशु-आधारित चारा नहीं दिया गया हो। यह नियम भारत की सांस्कृतिक एवं धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए बेहद जरूरी माना जा रहा है।
व्यापार वार्ता में डेयरी क्षेत्र बना बड़ा अड़ंगा
भारत-अमेरिका के बीच 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक ले जाने के लक्ष्य के तहत चल रही बातचीत में डेयरी और कृषि क्षेत्र सबसे संवेदनशील मुद्दे बन गए हैं। भारत वर्तमान में विदेशी डेयरी उत्पादों पर उच्च आयात शुल्क (टैरिफ) लगाता है। जैसे पनीर पर 30%, मक्खन पर 40% और दूध पाउडर पर 60% शुल्क लगाया जाता है। भारत की इस टैरिफ नीति के कारण न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से डेयरी उत्पादों का आयात अव्यावहारिक बन जाता है, भले ही वहां ये उत्पाद वैश्विक मानकों के अनुसार अपेक्षाकृत सस्ते हों। आयात पर भारी शुल्क लगने से ये उत्पाद भारत पहुंचने तक काफी महंगे हो जाते हैं, जिससे भारतीय बाजार में इनकी प्रतिस्पर्धा घरेलू उत्पादकों के साथ असंतुलित हो जाती है।
भारत में अनिवार्य पशु चिकित्सा प्रमाणन
भारत सरकार का पशुपालन एवं डेयरी विभाग विदेशी खाद्य आयात के लिए सख्त पशु चिकित्सा प्रमाणन को अनिवार्य मानता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत में आयातित डेयरी उत्पाद केवल उन्हीं पशुओं से प्राप्त हों जिन्हें मांस या खून से बने चारे नहीं खिलाए गए हों। यह नीति भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक संवेदनशीलताओं की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। हालांकि, अमेरिका ने इस शर्त की आलोचना विश्व व्यापार संगठन (WTO) में की है। अमेरिका का तर्क है कि यह एक ‘अनावश्यक व्यापारिक बाधा’ है, जिससे अमेरिकी डेयरी उत्पादों की भारत में पहुंच सीमित हो जाती है। अमेरिका विश्व का एक प्रमुख डेयरी निर्यातक देश है और उसने वर्ष 2023 में लगभग 8.22 बिलियन डॉलर मूल्य के डेयरी उत्पादों का वैश्विक निर्यात किया।
वाशिंगटन डीसी की मंशा है कि भारत अपने डेयरी बाजार को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोले लेकिन भारत का रुख इस मामले में बेहद सख्त है। भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक और उपभोक्ता देश है बल्कि इसका डेयरी क्षेत्र करोड़ों ग्रामीण परिवारों की आजीविका का मुख्य आधार भी है।
भारत ने खींच दी है ‘रेड लाइन’
सरकारी सूत्र बताते हैं कि भारत ने डेयरी क्षेत्र में किसी भी तरह की नरमी करने से साफ इंकार कर दिया है। यह क्षेत्र भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है और यहां के लाखों छोटे किसानों की आर्थिक सुरक्षा इस पर निर्भर है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्पष्ट कहा, ‘डेयरी क्षेत्र में कोई नरमी नहीं होगी, यह हमारी लक्ष्मण रेखा है।’ एसबीआई के एक विश्लेषण के अनुसार, अगर भारत अपने डेयरी बाजार को अमेरिकी आयात के लिए खोलता है तो इससे सालाना 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। सस्ते अमेरिकी उत्पाद घरेलू बाजार में भारी दबाव बनाएंगे जिससे छोटे किसानों की आमदनी प्रभावित होगी।
सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाएं सबसे बड़ी बाधा
भारत में दूध और घी जैसे डेयरी उत्पाद सिर्फ खाने के लिए नहीं, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों का अभिन्न हिस्सा हैं। इन उत्पादों की शुद्धता और उत्पत्ति को लेकर लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। अगर भारत अमेरिका से ऐसे डेयरी उत्पादों का आयात शुरू करता है, जिनमें “मांसाहारी दूध” शामिल हो, तो यह धार्मिक भावनाओं के खिलाफ होगा।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट के अजय श्रीवास्तव ने PTI से कहा है, “कल्पना कीजिए आप उस गाय के दूध से बना मक्खन खा रहे हों जिसे दूसरी गाय का मांस और खून खिलाया गया हो। भारत शायद इसकी कभी अनुमति न देगा।” भारत-अमेरिका के बीच डेयरी आयात को लेकर यह विवाद सिर्फ व्यापारिक मसला नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक संवेदनशीलता का मामला है। दोनों देशों को इस मुद्दे पर संतुलित और सम्मानजनक समाधान निकालना होगा ताकि न केवल आर्थिक हितों की रक्षा हो, बल्कि सांस्कृतिक भावनाओं का भी सम्मान बना रहे।