मालेगांव विस्फोट मामले में गिरफ्तारी के सत्रह साल बाद, पूर्व सांसद और आध्यात्मिक हस्ती साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गुरुवार को मुंबई की एनआईए विशेष अदालत ने छह अन्य आरोपियों के साथ बरी कर दिया। अदालत ने फैसला सुनाया कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। साध्वी प्रज्ञा के लिए, यह फैसला कानूनी राहत से कहीं बढ़कर था, लेकिन इसने भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा के एक दर्दनाक अध्याय का अंत हो गया।
पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मंगलवार (3 अक्टूबर 2023) को मालेगांव धमाकों के संबंध में हो रही सुनवाई के दौरान भावुक हो गईं। साध्वी प्रज्ञा के भावुक होने के कारण कोर्ट ने अपनी कार्यवाही 10 मिनट के लिए रोक दी और उनके सामान्य होने पर फिर कार्यवाही शुरू की। दरअसल, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर वर्ष 2008 में हुए मालेगांव धमाकों के सम्बन्ध में NIA के विशेष कोर्ट के समक्ष अपना बयान दर्ज करवा रही थीं। उनके साथ अन्य 7 व्यक्तियों का भी बयान दर्ज किया जा रहा था। इस दौरान साध्वी से लगभग 60 प्रश्न पूछे गए।
साध्वी प्रज्ञा को 24 दिनों तक रखा भूखा
साध्वी प्रज्ञा को मालेगांव धमाका मामले में गिरफ्तार करने के बाद महाराष्ट्र एटीएस और पुलिसकर्मियों ने तरह-तरह की प्रताड़नाएं दी थीं। इसका जिक्र उन्होंने स्वयं जनता के बीच किया था। साध्वी प्रज्ञा ने बताया था कि उन्हें चमड़े की बेल्ट से पीटा जाता था। 24 दिनों तक भूखा रखा गया और बिजली के झटके दिए जाते थे।साध्वी ने बताया कि उनके साथ गाली-गलौज आम बात थी। उनको पुरुष कैदियों के साथ रखकर पोर्न वीडियो देखने पर मजबूर किया जाता था। उनको पीटने के लिए लगातार 5-6 पुलिस वाले लगाए जाते थे और जब वह थक जाते थे तो दूसरे पुलिसकर्मी उनको पीटने लग जाते थे।
‘बीमारी के लिए कांग्रेस जिम्मेवार’
इन सबके बाद जब उन्हें कोर्ट के आदेश पर डॉक्टर के पास ले जाया जाता था तो उन पर दबाव रहता था कि वह यह रिपोर्ट दे कि साध्वी एकदम ठीक हैं। 25 सितम्बर 2023 को NIA कोर्ट के सामने पेश हुईं साध्वी प्रज्ञा ने बताया था उनकी बीमारी की हालत के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। साध्वी ने बताया कि जब उनको पूछताछ के लिए बुलाया गया तब वह पूरी तरह स्वस्थ थीं, लेकिन पुलिस की हिरासत में उनकी हालत बिगड़ी। उनको कैंसर और न्यूरो की बीमारी हो गई। शरीर में पस तक पड़ गया।
अदालत में रो पड़ी थीं साध्वी प्रज्ञा
अदालत को संबोधित करते हुए, साध्वी प्रज्ञा रो पड़ीं और याद किया कि कैसे बार-बार अपनी बेगुनाही का दावा करने के बावजूद उन्हें यातना, अपमान और पूरी तरह से चरित्र हनन का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, “सालों तक मुझे झूठे आरोपों के बोझ तले जीना पड़ा। मुझे बिना किसी ठोस आधार के इस मामले में घसीटा गया और इसने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी।” साध्वी ने कहा था कि “मैं एक शांतिपूर्ण, तपस्वी जीवन जी रही थी। लेकिन जिस तरह से मुझे गिरफ्तार किया गया और मेरे साथ व्यवहार किया गया, वह मेरी पहचान पर, मेरे भगवा वस्त्र पर सीधा हमला था।” मेरे ज़रिए भगवा को कलंकित करने और ‘भगवा आतंकवाद’ की झूठी कहानी गढ़ने की कोशिश की गई।
अदालत ने कहा, मेडिकल रिपोर्ट में की गई हेराफेरी
29 सितंबर, 2008 को मालेगांव के भिक्कू चौक स्थित एक मस्जिद के पास हुए मालेगांव विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और 95 लोग घायल हो गए थे। शुरुआत में 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन अंततः प्रज्ञा सिंह ठाकुर, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी (जिन्हें शंकराचार्य के नाम से भी जाना जाता है) और समीर कुलकर्णी सहित सात लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए। अदालत ने माना कि विस्फोट हुआ था, लेकिन अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि बम उस मोटरसाइकिल पर रखा गया था जिसका कथित तौर पर आरोपियों से संबंध था। अदालत ने यह भी कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई थी, क्योंकि घायलों की संख्या वास्तव में 95 थी, न कि 101 जैसा कि पहले दावा किया गया था।
साध्वी प्रज्ञा ने व्यवस्था से जूझते हुए बिताए अपने वर्षों को याद करते हुए कहा, ‘जिन लोगों ने मुझे पूछताछ के लिए बुलाया था, उनके पास कोई ठोस आधार नहीं था। मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया और शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। उन्होंने मुझे अपराधी के रूप में चित्रित किया जबकि सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। कोई भी हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ, फिर भी मैं बच गई क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं। यह शक्ति भीतर से आती है।’
पीड़ितों को मुआवजा देने का निर्देश
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को पीड़ितों को मुआवज़ा देने का भी निर्देश दिया है, जिसमें प्रत्येक मृतक के परिवार को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50,000 रुपये दिए जाएंगे। अपने कानूनी निहितार्थों से परे, यह फैसला हिरासत में महिलाओं के साथ व्यवहार, खासकर उन महिलाओं के साथ जो आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद का चोला ओढ़ती हैं, के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। साध्वी प्रज्ञा का मामला हमें याद दिलाता है कि कैसे राजनीतिक एजेंडे के बोझ तले एक महिला की आवाज दबाई जा सकती है, और कैसे देर से मिलने वाले न्याय के बावजूद भी उसे सम्मान दिलाया जा सकता है।