कॉन्स्टीट्यूशन क्लब चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस और उसके समर्थकों ने जोर-शोर से इसे अपनी जीत बताया है। दिलचस्प बात यह है कि इस चुनाव में केवल दो उम्मीदवार थे, दोनों ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से, राजीव प्रताप रूडी और संजीव बलियान। फिर भी कांग्रेस इसे भाजपा की हार और अपनी बड़ी जीत बताने में लगी है।
कांग्रेस इस नतीजे को एक ऐसा मुकाबला साबित करना चाहती है जिसमें जैसे अमित शाह और विपक्ष आमने-सामने थे, और विपक्ष ने जीत हासिल की हो। यह पूरी तरह एक काल्पनिक कहानी है जिसे कांग्रेस और उसके प्रचारक गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
क्लब चुनाव को राष्ट्रीय जनमत की तरह दिखाने की कोशिश
राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों में लगातार हार झेलने वाली कांग्रेस अब क्लब स्तर के चुनावों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। यह दिखाता है कि कांग्रेस और उसके समर्थक कितने हताश हैं कि अब उन्हें क्लब की जीत को भी बड़ी राजनीतिक उपलब्धि बताना पड़ रहा है।
राहुल गांधी, जो अपने गृह राज्य तक में पार्टी को जीत नहीं दिला सके, अब बैकडोर जोड़तोड़ और क्लब जीत में खुशियां खोजते नजर आ रहे हैं। ठीक वैसी ही तस्वीर हर साल प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वीमेन प्रेस कॉर्प्स के चुनावों में भी देखने को मिलती है, जहाँ कांग्रेस और वामपंथ समर्थित पैनल अक्सर जीतते हैं।
भाजपा के दो सांसदों के बीच हुआ था मुकाबला, कोई पार्टी स्तर की लड़ाई नहीं
यह स्पष्ट करना जरूरी है कि संविधान क्लब का चुनाव भाजपा बनाम विपक्ष नहीं था। यह एक साधारण चुनाव था, जिसमें भाजपा के दो सांसदों के बीच मुकाबला हुआ। कांग्रेस और उसके साथियों का इसे भाजपा की हार बताना दिखाता है कि वे असली राजनीतिक सच्चाई से कितने दूर हैं।
वास्तव में, यह चुनाव भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र की अच्छी स्थिति को दर्शाता है। पार्टी की ओर से किसी भी सांसद को यह निर्देश नहीं दिया गया था कि वे किसे वोट दें। दोनों उम्मीदवारों को समान अवसर मिला और उन्होंने वोटों से अपनी लड़ाई लड़ी।
कांग्रेस को सीखने की ज़रूरत, भाजपा अब भी जनता से जुड़ी पार्टी
यह पूरा घटनाक्रम कांग्रेस के लिए एक सीख हो सकता है। कांग्रेस पार्टी जहां मल्लिकार्जुन खरगे औपचारिक अध्यक्ष हैं और राहुल गांधी बिना जवाबदेही के वास्तविक नेता की भूमिका निभा रहे हैं, ऐसे में क्लब की छोटी सी जीत को देशभर की बड़ी जीत बताना सिर्फ खुद को खुश करने वाली सोच है।
कांग्रेस का यह जश्न दिखाता है कि पार्टी किस कदर वास्तविक राजनीति और जनता से कट चुकी है। जब कांग्रेस लुटियंस ज़ोन के क्लबों में जीत ढूंढ रही है, भाजपा ज़मीनी स्तर पर राज्य दर राज्य चुनाव जीत रही है और पिछले एक दशक से राष्ट्रीय जनादेश को बनाए हुए है।
राहुल गांधी का राजनीतिक करियर लगातार चुनावी पराजयों से भरा रहा है, लेकिन पार्टी में उनकी कोई जवाबदेही तय नहीं होती। वहीं खरगे केवल प्रतीकात्मक अध्यक्ष की भूमिका निभाते नजर आते हैं, जबकि कांग्रेस को जमीनी रणनीति और पुनर्गठन की सख्त ज़रूरत है।
भाजपा आज भी जनता से जुड़ी पार्टी बनी हुई है, जो शासन, संगठन और भरोसे के आधार पर चुनाव जीतती है। कांग्रेस द्वारा क्लब चुनाव की जीत को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना दिखाता है कि यह पार्टी किस स्तर तक गिर चुकी है।
संविधान क्लब का यह चुनाव बताता है कि राजनीति में कौन सत्ता चलाने के लिए है और कौन केवल खास लोगों को दिखाने के लिए। जनता को फर्क नहीं पड़ता कि दिल्ली के किसी क्लब का मुखिया कौन है, उन्हें इस बात की परवाह है कि देश कैसे और कौन चला रहा है।
कांग्रेस को अब यह तय करना चाहिए कि वह जनता का विश्वास जीतना चाहती है या राजधानी के क्लबों में जीत के छोटे-छोटे तमगे बटोरने में ही संतोष करेगी।