राहुल गांधी अपने ही बयानों से अपनी भद पिटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। अब सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस नेता और विपक्ष के नेता राहुल गांधी को उनके इस विस्फोटक दावे के लिए फटकार लगाई कि चीन ने 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए उन्हें फटकार भी लगाई है।
सुप्रीम कोर्ट की ने न केवल गांधी के बयान के तथ्यात्मक आधार पर, बल्कि उनकी राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी की भावना पर भी सवाल उठाया। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से टिप्पणी की कि ‘एक सच्चा भारतीय’ सार्वजनिक रूप से ऐसे असत्यापित दावे नहीं करेगा। अदालत की टिप्पणी ने गहरी चोट पहुंचाई, गांधी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में राजनीतिक बयानबाजी की सीमाओं पर तीखे सवाल उठाए।
अदालत की फटकार: ‘एक सच्चा भारतीय…’
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ राहुल गांधी की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि के मुकदमे को चुनौती दी थी। यह मामला 2022 में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान गांधी की टिप्पणियों से उपजा था। उन्होंने दावा किया था कि एक पूर्व सैन्य अधिकारी ने उन्हें बताया था कि चीनी सेना ने लद्दाख में भारतीय भूभाग के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया है।
क्यों दिए ऐसे बयान
उनके इस बयान पर पीठ ने अपनी आलोचना में कोई कसर नहीं छोड़ी। न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा, ‘डॉ. सिंघवी [राहुल गांधी के वकील] से कहिए कि आपको कैसे पता चला कि 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय भूभाग पर चीनियों ने कब्ज़ा कर लिया है? क्या आप वहाँ थे? क्या आपके पास कोई विश्वसनीय सामग्री है?’ ‘आप बिना किसी आधार के ये बयान क्यों दे रहे हैं? अगर आप एक सच्चे भारतीय होते, तो आप यह सब नहीं कहते।’ अदालत ने यह भी सवाल किया कि एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता राहुल गांधी ने संसद में बोलने के बजाय सार्वजनिक मंचों पर ऐसे बयान क्यों दिए। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि आपको सोशल मीडिया पर ऐसा क्यों कहना पड़ रहा है? आप इसे संसद में क्यों नहीं कहते?
क्या कहा था राहुल गांधी ने जानें
राहुल गांधी ने मूल बयान दिसंबर 2022 में दिए थे और बाद में जनवरी 2023 में अपनी राष्ट्रव्यापी पदयात्रा, भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर दोहराए। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार पर चीनी अतिक्रमण को नकारने का आरोप लगाया, जो उनके अनुसार एक खतरनाक नीतिगत रुख था। उन्होंने कहा था, “मैंने हाल ही में कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों और लद्दाख से आए एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। उन्होंने मुझे साफ़ तौर पर बताया कि चीन ने हमारी 2,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है। प्रधानमंत्री ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो इससे उलट सोचते हैं।”
राहुल गांधी ने सरकार पर सार्वजनिक रूप से स्थिति को स्वीकार करने से इनकार करके बीजिंग के ख़िलाफ़ भारत के रुख़ को कमज़ोर करने का भी आरोप लगाया। उनके ये बयान विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा उन पर राजनीतिक फ़ायदे के लिए ग़लत सूचना फैलाने का अप्रत्यक्ष आरोप लगाने के तुरंत बाद आए थे।
दर्ज थी मानहानि की शिकायत
राहुल गांधी के इस बयान के खिलाफ सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि राहुल गांधी की टिप्पणियां भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अपमानजनक थीं। इस मामले की सुनवाई वर्तमान में लखनऊ की एक निचली अदालत में चल रही था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 29 मई को शिकायत रद्द करने की राहुल गांधी की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल सेना जैसी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने के लिए नहीं किया जा सकता।
इसके बाद राहुल गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया और दावा किया कि शिकायत राजनीति से प्रेरित है और असहमति को दबाने के उद्देश्य से की गई है। उनका प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि विपक्ष के नेता को राष्ट्रीय मुद्दों पर टिप्पणी करने से रोकना लोकतंत्र के विरुद्ध है।सिंघवी ने कहा, “अगर वह इन चिंताओं को नहीं उठा सकते जो पहले से ही सार्वजनिक चर्चा में हैं और प्रेस में रिपोर्ट की गई हैं, तो वह विपक्ष के नेता के रूप में अपना काम नहीं कर सकते।”
अमित मालवीय ने बताया आदतन लापरहवाही
भाजपा ने भी सर्वोच्च न्यायालय की तीखी टिप्पणियों का समर्थन किया। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर राहुल गांधी की आलोचना की, उन्हें ‘चीन गुरु’ करार दिया और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में उन पर आदतन लापरवाही बरतने का आरोप लगाया।
‘भारत की क्षेत्रीय अखंडता को लेकर गैर-जिम्मेदाराना बयानों के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर राहुल गांधी को फटकार लगाई है। कल्पना कीजिए, एक विपक्ष के नेता को बार-बार इस तरह फटकार लगाई जा रही है। उनका हालिया ‘मृत अर्थव्यवस्था’ वाला तंज एक और कूटनीतिक और राजनीतिक चूक है। वह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की प्रशंसा करते हैं जबकि हमारा अपना देश आगे बढ़ रहा है।’ मालवीय ने लिखा, ‘यह सिर्फ़ लापरवाही नहीं, यह ख़तरनाक है।’
किरेन रिजिजू ने ट्वीट किया, ‘सुप्रीम कोर्ट ने श्री राहुल गांधी को उनके गैर-ज़िम्मेदाराना दावे के लिए फटकार लगाई कि चीन ने भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है!’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘भारत की सीमाओं के संबंध में कांग्रेस और वामपंथी विचारधारा के झूठे बयानों से कोई भ्रम नहीं होना चाहिए।’
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने भी ट्वीट किया, ‘सुप्रीम कोर्ट ने सीमा मुद्दों और गलवान घाटी में झड़प पर उनके गैर-ज़िम्मेदाराना बयानों के लिए राहुल गांधी को फटकार लगाई है। सभी समझौतों और सीमा पार से हुई आक्रामकता का जवाब देने के बाद उन्हें और उनके परिवार को चीन के मुद्दे पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।’
राजनीतिक बयानबाजी बनाम राष्ट्रीय संवेदनशीलता
हालांकि अदालत ने मानहानि के मामले पर रोक लगा दी है, लेकिन उसकी मौखिक टिप्पणियां राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों पर भड़काऊ, अपुष्ट दावे करने वाले राजनीतिक नेताओं को लेकर न्यायपालिका के भीतर व्यापक बेचैनी को दर्शाती हैं। पीठ की टिप्पणी, हालांकि बाध्यकारी नहीं है, एक कड़ा संदेश देती है: लोकतंत्र में असहमति का स्वागत है, लेकिन इसकी जड़ें ज़िम्मेदारी में होनी चाहिए।
राहुल गांधी अपनी ओर से आक्रामक विरोध और राजनीतिक ग़लतफ़हमी के बीच तार पर चल रहे हैं। जहां, उनका खेमा तर्क देता है कि चीनी घुसपैठ पर सवाल उठाना लोकतांत्रिक कर्तव्य का हिस्सा है। आलोचक उनके बयानों को कम से कम लापरवाही और कम से कम सशस्त्र बलों का मनोबल गिराने वाला मानते हैं। जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ता है, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने राहुल गांधी को अस्थायी राहत दी है, लेकिन उन्हें कड़ी आलोचनाओं के घेरे में ला दिया है। ऐसे दौर में जब राजनीतिक भाषण लगातार जांच के घेरे में है, सत्ता के सामने सच बोलने और लापरवाही से बोलने के बीच का अंतर सार्वजनिक विमर्श के भविष्य को परिभाषित कर सकता है।