भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को उसकी बार-बार की धमकियों और परमाणु शक्ति के नाम पर डराने की कोशिशों पर तीखा जवाब दिया।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में कहा कि 1960 में बनी सिंधु जल संधि भारत के लिए एकतरफा और अन्यायपूर्ण रही है। उन्होंने बताया कि इस समझौते के कारण भारत की नदियों का पानी वर्षों तक पाकिस्तान की ज़मीन को सींचता रहा, जबकि भारत के किसान पानी के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने साफ कर दिया – अब ऐसा नहीं होगा।
सिंधु जल संधि: एक ऐतिहासिक भूल?
1960 में वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से बनी यह संधि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी। इसे लंबे समय तक भारत-पाक रिश्तों के बीच एक सकारात्मक उदाहरण माना जाता रहा है।
लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने इसे “ऐतिहासिक गलती” बताया और कहा, “जो पानी भारत का है, वह भारत के किसानों के लिए ही इस्तेमाल होगा। हम अब ऐसी व्यवस्था नहीं सहेंगे जिसने हमारे किसानों को वर्षों तक वंचित रखा।”
पाकिस्तान की परमाणु धमकियाँ
पिछले कुछ हफ्तों में पाकिस्तान की तरफ से बयानबाज़ी काफी बढ़ गई है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने अमेरिका के टाम्पा में एक निजी भोज के दौरान कहा कि अगर भारत ने कोई डैम बनाया तो पाकिस्तान “दस मिसाइलें चलाकर उसे नष्ट कर देगा।”
प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने भी अन्यायपूर्ण को चेतावनी दी कि अगर भारत ने नदी के जलप्रवाह में बदलाव किया, तो इसे युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा।
मोदी का कड़ा संदेश: अब बर्दाश्त नहीं
इन धमकियों के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने बिना कोई नरमी दिखाए कहा, “परमाणु ब्लैकमेलिंग बहुत समय से चल रही है, लेकिन अब और नहीं चलेगी। अगर दुश्मन इस तरह की कोशिशें जारी रखते हैं, तो भारत की सेनाएं अपनी शर्तों पर, अपने समय पर जवाब देंगी।”
उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब अपने संसाधन डर के साए में किसी और को नहीं देगा, खासकर जब बात उसके पानी की हो।
ऑपरेशन सिंदूर: रणनीति में बदलाव
पहलगाम आतंकी हमले के बाद, भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया, वीज़ा सेवाएं रोक दीं और अटारी सीमा को भी बंद कर दिया। इसे “ऑपरेशन सिंदूर” नाम दिया गया। इस कार्रवाई से यह साफ हो गया कि अब जल सुरक्षा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का हिस्सा है।
अब तक पाकिस्तान इस संधि का लाभ लेता रहा, लेकिन भारत पर कभी कोई राजनीतिक या आर्थिक बोझ नहीं पड़ा। अब मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत का पानी भारत के लोगों का है।
पाकिस्तान की सच्चाई और भारत की नई नीति
पाकिस्तान भले ही भाषणों में मिसाइलों की धमकी दे, लेकिन असलियत यह है कि अब उसे भारत की सदभावना की ज़रूरत है। इस संधि को निलंबित करके भारत ने केवल एक असमान समझौते को तोड़ा नहीं है, बल्कि दशकों की रणनीतिक चुप्पी को भी खत्म कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने दो टूक कहा – “भारत ने तय कर लिया है कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” यह बयान सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि यह स्पष्ट कर देता है कि अब भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को जल सुरक्षा से जोड़ चुका है।
कभी अटूट मानी जाने वाली सिंधु जल संधि अब ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। प्रधानमंत्री मोदी का यह फैसला केवल पानी को लेकर नहीं, बल्कि यह दिखाने के लिए है कि भारत अब दबाव या धमकी में नहीं झुकेगा।