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बरेली से अयोध्या तक: “आई लव मोहम्मद” पर बवाल, जानिए इसके पीछे की असली वजह

असल सवाल यह है कि आखिर “आई लव मोहम्मद” जैसे पोस्टरों की ज़रूरत क्यों पड़ी? यह कोई पारंपरिक धार्मिक प्रथा नहीं, बल्कि एक नया चलन है—एक तरह का शक्ति-प्रदर्शन, जो सड़कों पर नमाज़ पढ़ने और तख्तियां लहराने से शुरू हुआ।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
26 September 2025
in चर्चित, चर्चित, धर्म, भारत, राजनीति
बरेली से अयोध्या तक: “आई लव मोहम्मद” बवाल, जानिए इसके पीछे की असली वजह

भारत का भविष्य उस पहचान पर टिका है जो ऋषियों, संतों और बलिदानियों ने हमें दी।

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उत्तर प्रदेश के बरेली में जुमे की नमाज़ के बाद जो कुछ हुआ, उसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सांप्रदायिक उकसावे के ज़रिए देश के माहौल को बिगाड़ने की सुनियोजित कोशिशें लगातार की जा रही हैं। नमाज़ के बाद भीड़ तख्तियों और पोस्टरों पर “आई लव मोहम्मद” लिखकर सड़क पर उतरी, नारेबाज़ी की, और फिर देखते ही देखते हालात बेकाबू हो गए। पुलिस पर पथराव हुआ, लाठीचार्ज करना पड़ा और पूरा इलाका तनाव की गिरफ्त में आ गया। यह घटना सिर्फ़ अचानक भड़की हुई भीड़ का मामला नहीं है, बल्कि उस प्रवृत्ति का हिस्सा है जो पिछले कुछ समय से “धर्म के नाम पर वर्चस्व दिखाने” की ज़िद में लगातार उभर रही है।

असल सवाल यह है कि आखिर “आई लव मोहम्मद” जैसे पोस्टरों की ज़रूरत क्यों पड़ी? यह कोई पारंपरिक धार्मिक प्रथा नहीं, बल्कि एक नया चलन है—एक तरह का शक्ति-प्रदर्शन, जो सड़कों पर नमाज़ पढ़ने और तख्तियां लहराने से शुरू हुआ। कानपुर से लेकर बरेली तक, यह संदेश साफ़ है कि धर्म के नाम पर सार्वजनिक जगहों पर वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश हो रही है। इसके बाद जब पुलिस प्रशासन इसका विरोध करता है, तो पथराव और हिंसा से दबाव बनाने का प्रयास होता है।

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लेकिन भारत की कहानी हमेशा एकतरफ़ा नहीं रही। यही वजह है कि जब एक तरफ़ “आई लव मोहम्मद” की तख्तियां उठीं, तो दूसरी तरफ़ अयोध्या, वाराणसी और कानपुर में साधु-संतों ने “आई लव महादेव” और “आई लव सनातन” का बिगुल बजा दिया। इस देश की आत्मा हमेशा से संतों और ऋषियों की आवाज़ में रही है। राम मंदिर की धरती अयोध्या से उठी आवाज़ ने साफ़ कर दिया कि भारत की पहचान मोहम्मद, औरंगज़ेब या कट्टरपंथी नारों से नहीं, बल्कि राम, शिव और सनातन संस्कृति से है।

बरेली का बवाल: एक प्रयोग या चुनौती?

बरेली की घटना को किसी सामान्य विरोध या नमाज़ के बाद के प्रदर्शन की तरह नहीं देखा जा सकता। यह उस प्रयोग का हिस्सा लगता है, जिसमें इस्लामी पहचान को सार्वजनिक रूप से थोपने की कोशिश हो रही है। “आई लव मोहम्मद” के पोस्टर धार्मिक आस्था के नाम पर लहराए गए, लेकिन इसका असली मकसद एक राजनीतिक-सामाजिक संदेश देना था-कि मुसलमानों की पहचान को सड़कों पर, शहरों के बीचोंबीच, बिना किसी रोकटोक के पेश किया जा सकता है।

जब पुलिस ने इस पर रोक लगाने की कोशिश की, तो हिंसा शुरू हो गई। सवाल यह उठता है कि क्या यह धार्मिक आस्था का मामला था या सुनियोजित सामुदायिक दबाव बनाने का प्रयास? यदि यह सिर्फ़ आस्था होती, तो इसे घरों या मस्जिदों की दीवारों तक सीमित रखा जा सकता था। लेकिन इसे बाज़ारों और चौक-चौराहों तक लाने का अर्थ यही है कि कट्टरपंथी ताक़तें एक बार फिर वही करना चाहती हैं, जो मुग़लकाल और औरंगज़ेब के दौर में हुआ था—सार्वजनिक जगहों पर अपने प्रभुत्व का प्रदर्शन।

साधु-संतों का जवाब: “आई लव सनातन”

इस प्रयोग का जवाब भारत की परंपरा के संरक्षकों ने दिया। वाराणसी और अयोध्या में साधु-संतों ने सड़कों पर उतरकर साफ़ कहा—भारत राम, कृष्ण और भोलेनाथ की भूमि है। यहां की पहचान सनातन है और कोई इसे बदल नहीं सकता। “आई लव सनातन” के पोस्टर केवल जवाबी नारों की तरह नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की पुकार बनकर सामने आए हैं।

राम नगरी अयोध्या से उठे इन नारों का संदेश साफ़ है-यह देश किसी विदेशी आक्रांता की विचारधारा को स्वीकार नहीं करेगा। संत सूरज तिवारी और सीताराम दास महाराज जैसे संतों ने दो टूक कहा कि जिन्हें “आई लव मोहम्मद” कहना है, वे पाकिस्तान चले जाएं। हिंदुस्तान राम और कृष्ण का है, यह औरंगज़ेब का मुल्क नहीं है।

सांस्कृतिक टकराव या आत्मरक्षा?

आलोचक इसे सांप्रदायिक टकराव कह सकते हैं, लेकिन असल में यह आत्मरक्षा है। जब एक समुदाय धार्मिक नारों और तख्तियों के सहारे सार्वजनिक जगहों पर अपनी शक्ति दिखाता है, तो क्या बहुसंख्यक समुदाय चुप बैठे? भारत की परंपरा हमेशा सहिष्णुता और मेल-जोल की रही है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कोई भी समूह इस सहिष्णुता का दुरुपयोग करे।

“आई लव सनातन” का संदेश केवल हिंदुओं के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए है-कि भारत की आत्मा सनातन है, और यह आत्मा किसी भी कट्टरपंथ से बड़ी है।

औरंगज़ेब से राम मंदिर तक

यह विवाद अचानक पैदा नहीं हुआ। भारत का इतिहास ऐसे टकरावों से भरा है। जब औरंगज़ेब ने मंदिर तोड़े और मस्जिदें खड़ी कीं, तब भी भारत की आत्मा ने हार नहीं मानी। जब मुग़ल और अंग्रेज़ सत्ता के दम पर धर्म बदलवाना चाहते थे, तब भी साधु-संतों और क्रांतिकारियों ने मुकाबला किया। और यही आत्मा आज भी जीवित है-राम मंदिर आंदोलन इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। 500 साल की प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ, तो वह केवल एक इमारत नहीं, बल्कि यह घोषणा थी कि भारत की पहचान सनातन है और इसे मिटाया नहीं जा सकता।

आज का संदेश: भारत हिंदू राष्ट्र की ओर

बरेली से अयोध्या तक फैला यह विवाद एक गहरी सच्चाई को सामने लाता है-भारत की बहुसंख्यक जनता अब और सहन करने को तैयार नहीं है। “आई लव मोहम्मद” के जवाब में उठे “आई लव सनातन” के पोस्टर यही कहते हैं कि हिंदू समाज जाग चुका है। यह सिर्फ़ नारों की लड़ाई नहीं, बल्कि पहचान की लड़ाई है।

भारत का भविष्य उस पहचान पर टिका है जो ऋषियों, संतों और बलिदानियों ने हमें दी। यही वजह है कि साधु-संत साफ़ कहते हैं-रत हिंदू राष्ट्र है। और जब बहुसंख्यक समाज अपनी अस्मिता के साथ खड़ा होता है, तो कोई भी ताक़त उसे झुका नहीं सकती।

सनातन है भारत की आत्मा

बरेली का बवाल और अयोध्या से उठी आवाज़ मिलकर हमें यही सिखाती है कि भारत की आत्मा को दबाने की कोशिश हर बार होगी, लेकिन हर बार संतों, साधुओं और जाग्रत हिंदुओं की आवाज़ उसे बचा लेगी। “आई लव मोहम्मद” का नारा कितना भी लगाया जाए, भारत की गली-गली, मंदिर-मंदिर और संतों की वाणी से हमेशा “आई लव सनातन” की गूंज ही सुनाई देगी। यही इस देश की सच्चाई है और यही इसकी नियति।

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