बिहार में चुनावी माहौल पहले ही तगड़ा था—घोषणाओं का शोर, नेता-कार्यकर्ताओं की दौड़धूप, और गांव-शहर में हलचल — फिर अचानक यह मुखर बसंतीय राजनीति जिस मोड़ से गुज़री, वह था राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बेटी की शादी। यह शादी कोई सामान्य कार्यक्रम नहीं थी, यह एक राजनीतिक बाहुल्य का आयोजन था जो खुद चुनावी रणनीति की वैसी ही तैयारी लग रही थी जैसी एक रैली की होती है—बस यहां बारात चालक पार्टी थी।
कार एजेंसी का रोल: सत्ता और प्रतीकवाद का संगम
स्थानीय एक आरोप से, जो चुनावी माहौल के बीच मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेज़ी से फैल गया। Subhash Yadav, जो लालू प्रसाद यादव के जुड़वा भाई साधु यादव के साले माने जाते हैं, ने दावा किया कि “अटोमोबाइल कंपनियों (जैसे कि Mithila Motors, Karlo Automobiles, Ashiyana Holdings आदि) से कारें कार्यक्रम स्थल पर ‘उठवाई’ गई थीं — यानी ज़बरदस्ती या राजनीतिक दबाव में।”
इस घटना से यह संदेश गया कि यह केवल शादी नहीं, बल्कि सत्ता का प्रदर्शन भी था और यह चुनाव से पहले एक शक्तिशाली सांकेतिक उपाय था।
राजनीतिक समन्वय या हाथापाई?
ऐसा भी कहा गया कि टोयोटा से लेकर Tata Safari, Sumo जैसे वाहन, स्थानीय पुलिस के सहयोग से और किसी स्तर पर सत्ता के आदेश पर कार एजेंसी से ‘उठाए गए’ — सभी बड़ी VIP गाड़ियों का बेताबी से इस्तेमाल किया गया। इसमें ड्राइवर और ईंधन की व्यवस्था भी राज्य मशीनरी के मंच से की गई, ताकि शान-शौकत उच्चस्तरीय बनी रहे।
चुनावी तैयारियों से विवाह की तैयारी तक
यह विवाह किसी सामाजिक आयोजन से अधिक राजनीतिक प्रतीक बन चुका था। जैसा कि TOI (2002) की रिपोर्ट बताती है, तब भी 45 प्रीमियम कारें और फर्नीचर, सोफा सेट्स, ड्रेसेज़ आरडब्ल्यू ‘उठाए गए’ और गिफ्ट के तौर पर इस्तेमाल किए गए। यह घटना उस समय बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों की तीखी टिप्पणी का कारण बनी थी — “राजनीतिक परिवार की शादी कैसे एक राज्य-विस्तृत आयोजन में बदल गई।”
सामूहिक स्मृतियां, व्यक्तिगत संताप
फिर 2018 में बेटे तेज प्रताप यादव की शादी का जश्न हुआ, जिसमें 7,000 अतिथि, 50 घोड़े, हाथी, जांभा और 200 कारों का जुलूस था। यह शादी रैली जैसा ही दिखा — जब एक शादी इतनी भव्यता से होती है, तो जनता के बीच यह सवाल उठता है—‘ये शक्ति का प्रदर्शन है या भावनाओं का जश्न?’
राजनीतिक निहितार्थ
बीजेपी और विपक्ष ने इसे “शादी नहीं, रैली” बोलना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया में मीम्स बने— “लालू की बेटी की शादी में चुनाव से पहले ही प्रदर्शन!” यह घटना यह दिखाती है कि बिहार में राजनीतिक समारोह, चुनाव और निजी उत्सव के बीच की दीवार बहुत पतली होती है।
यह कहानी सिर्फ शादी की नहीं है— यह शक्ति, राजनीति और सार्वजनिक छवि का संगम है। जब कार एजेंसी से कारें ‘उठाई जाती हैं’, तो यह केवल वाहन नहीं, बल्कि संकेत हैं कि शक्ति व्यवधान और लोकतांत्रिक अनुशासन के साथ कैसे खिलवाड़ होता है। यह बिहार के चुनावी परिदृश्य का एक सजीव और चिंतनीय साक्ष्य है।