भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की चर्चाएँ पिछले हफ्ते वॉशिंगटन में चल रही थीं। वाशिंगटन में 22 से 24 सितंबर तक हुई इन बैठकों को भारत ने रचनात्मक बताया, लेकिन पर्दे के पीछे स्थितियां बिलकुल अलग थीं। अमेरिका ने एक बड़ा मुद्दा उठाया—भारत को रूस से तेल खरीदना बंद करना होगा। अमेरिका की यह मांग केवल व्यापार की नहीं थी, यह राजनीतिक दबाव की चुनौती थी। इस पर भारत ने साफ कर दिया कि इस मांग को मानना उसके लिए स्वीकार्य नहीं है।
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय टीम ने अमेरिकी अधिकारियों को कुछ रियायतें देने की पेशकश की। इनमें जेटिकली मॉडिफाइड मक्के के आयात पर कुछ प्रतिबंधों को कम करना और अमेरिकी रक्षा व ऊर्जा उत्पादों की खरीद बढ़ाने की योजना शामिल थी। भारत ने लगभग 40 अरब डॉलर की संभावित खरीद पर बातचीत की। ये संकेत थे कि भारत अमेरिकी सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तैयार है, लेकिन अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा रणनीति में कोई समझौता नहीं करेगा।
अमेरिकी दबाव और रूस का मुद्दा
अमेरिका के लिए रूस का तेल बड़ी चिंता का विषय है। इस दौरान अमेरिकी अधिकारियों ने साफ कहा कि रूस से तेल खरीद रोकना ही भारत के टैरिफ में कटौती और ट्रेड डील की शर्त है। यह स्पष्ट था कि ट्रंप प्रशासन रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपना रहा है और इसे दुनिया के अन्य बड़े उपभोक्ताओं के माध्यम से आर्थिक रूप से दबाना चाहता है। लेकिन, भारत के लिए यह मांग अस्वीकार्य थी। इसके जवाब में नई दिल्ली ने कहा कि रूस से तेल की खरीद उसकी रणनीतिक और ऊर्जा सुरक्षा का हिस्सा है। इसे बदलने के लिए अमेरिका को वैकल्पिक स्रोतों की अनुमति देनी होगी, जैसे ईरान और वेनेजुएला।
यह केवल तेल का मामला नहीं था। पिछले महीने ट्रंप ने भारतीय सामान पर टैरिफ दोगुना कर दिया था। आरोप था कि भारत रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यूक्रेन युद्ध के लिए आर्थिक मदद दे रहा है। भारत ने इसे अनुचित, अन्यायपूर्ण और अतार्किक करार दिया। यही कारण है कि वॉशिंगटन वार्ता में रूस का मसला सबसे बड़ा बाधक बन गया।
भारत की रचनात्मक रणनीति
भारत ने हर मोर्चे पर अमेरिका को यह दिखाया कि वह सहयोग के लिए तैयार है, लेकिन अपनी नीतियों के प्रति अडिग है। जीएम मक्के पर कुछ आयात आसान करना, अमेरिकी रक्षा और ऊर्जा उत्पादों की खरीद बढ़ाना और व्यापार बाधाओं को कम करने की पेशकश—यह सब भारत की संतुलित रणनीति का हिस्सा था। पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत आने वाले सालों में अमेरिका से और अधिक ऊर्जा उत्पाद खरीदेगा। यह कदम केवल व्यापार अधिशेष कम करने के लिए नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया।
अमेरिका ने भी वार्ता को सकारात्मक बताया, लेकिन कोई बड़ी सफलता नहीं मिली। यह स्पष्ट संकेत था कि रूस का मुद्दा बिना हल हुए भारत और अमेरिका के बीच किसी भी व्यापार समझौते पर अंतिम मुहर लगना मुश्किल है।
बातचीत का राजनीतिक संदर्भ
बता दें कि ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा पर हालिया नियम लागू करके भारतीय नागरिकों को असमान रूप से प्रभावित किया है। यह कदम भी इस वार्ता को जटिल बना रहा था। भारत ने अमेरिका को यह स्पष्ट किया कि रूस से तेल खरीद में कोई कमी तभी संभव है, जब उसे वैकल्पिक सप्लायर्स से खरीदने की अनुमति मिले।
इस बार की वार्ता में दोनों देशों ने समझौते के संभावित स्वरूप पर विचारों का आदान-प्रदान किया। भारतीय टीम ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधियों जैमीसन ग्रीर और सर्जियो गोर से मुलाकात की। गोर ट्रंप के नामित भारत में राजदूत हैं। बैठक में भारत ने अपने व्यवसायियों और निवेशकों के हितों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करने की कोशिश की। लेकिन, बात नहीं बन पाई।
भारत की मजबूती और रणनीतिक स्वतंत्रता
पूरे मामले में सबसे बड़ा संदेश यह है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा रणनीति में किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा। अमेरिकी दबाव चाहे जितना भी हो, नई दिल्ली ने स्पष्ट किया कि रूस से तेल खरीदना उसकी रणनीति का हिस्सा है और इसे बदला नहीं जाएगा। यह दृढ़ता सिर्फ व्यापार की नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति में भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा की भी मिसाल है।
इस दौरान वॉशिंगटन वार्ता ने यह दिखा दिया कि भारत न केवल व्यापारिक समझौतों में साझेदार हैं, बल्कि अपने हितों के प्रति कट्टर और सशक्त भी है। रूस के तेल और अमेरिकी दबाव के बीच संतुलन बनाना भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा की रणनीति का हिस्सा है।
अमेरिका ने भारत को व्यापार डील का लालच दिया और टैरिफ कम करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन रूस के तेल पर भारत का रुख स्पष्ट था। यह बातचीत केवल व्यापार की नहीं, बल्कि वैश्विक सत्ता संतुलन और रणनीतिक स्वतंत्रता की परीक्षा भी थी। भारत ने एक बार फिर दिखा दिया कि वह किसी भी दबाव में झुकने वाला नहीं है।
रूस के तेल और अमेरिकी दबाव के बीच यह गतिरोध संकेत है कि आने वाले समय में भारत को वैश्विक व्यापार और ऊर्जा नीतियों में और भी सतर्क और रणनीतिक होना होगा। यह दिखाता है कि भारत न केवल आर्थिक रूप से मजबूत है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों और संप्रभुता के लिए हमेशा तैयार भी है।