अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर चुनावी मंच से भारत पर व्यापार को लेकर निशाना साधा है। ट्रंप का आरोप है कि भारत ने अमेरिकी व्यापार को “एकतरफा तबाही” बना दिया है और अमेरिका भारत की वजह से “सबसे बड़ा हारा हुआ” देश है। लेकिन आंकड़े, तथ्यों और हकीकत इस बयानबाज़ी की पोल खोलते हैं। असलियत यह है कि अमेरिका को भारत से कोई नुकसान नहीं, बल्कि सबसे ज़्यादा फायदा हो रहा है।
आंकड़े बताते हैं असली कहानी
ट्रंप का आरोप है कि भारत के कारण अमेरिका को भारी व्यापार घाटा झेलना पड़ रहा है। लेकिन व्यापार संतुलन के आंकड़े उल्टी तस्वीर पेश करते हैं। अमेरिका का व्यापार घाटा चीन के साथ 270 अरब डॉलर, यूरोपीय संघ के साथ 161 अरब डॉलर, मेक्सिको के साथ 157 अरब डॉलर, और वियतनाम के साथ 113 अरब डॉलर है। भारत के साथ? सिर्फ 41.5 अरब डॉलर।
यानी अमेरिका का सबसे बड़ा घाटा भारत से नहीं बल्कि चीन, यूरोप और मेक्सिको जैसे देशों से है। फिर भी, ट्रंप भारत को सबसे बड़ा “खलनायक” साबित करने की कोशिश करते हैं। यह अर्थशास्त्र से ज़्यादा राजनीति का मामला है।
असली तस्वीर: भारत से कमाता है अमेरिका
सच्चाई यह है कि भारत के साथ कारोबार में अमेरिका को वास्तविक लाभ है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार अमेरिका को भारत से सालाना 35 से 40 अरब डॉलर का अतिरिक्त लाभ मिलता है।गूगल, मेटा, अमेज़न, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियां भारत से हर साल 15-20 अरब डॉलर कमाती हैं। कोका-कोला और मैकडोनाल्ड्स जैसी ब्रांड कंपनियां भारत से 15 अरब डॉलर का राजस्व पाती हैं।
वॉल स्ट्रीट की कंसल्टेंसी फर्में और वैश्विक क्षमता केंद्र (ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स) अमेरिका की कंपनियों को 15-20 अरब डॉलर का सीधा फायदा पहुंचाते हैं। हॉलीवुड, नेटफ्लिक्स, दवाइयों के पेटेंट और रक्षा सौदों से भी अरबों डॉलर का मुनाफा अमेरिका की झोली में जाता है।
इसके अलावा, भारत से हर साल लाखों छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हैं। ये छात्र अकेले 25 अरब डॉलर से अधिक फीस और जीवन-यापन पर खर्च करते हैं, जो सीधा अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मज़बूती देता है। अगर यह “डिज़ास्टर” है, तो दुनिया के बाकी देश शायद इसी डिज़ास्टर को पाने के लिए कतार में खड़े हो जाएं।
टैरिफ पर आधा सच
ट्रंप का दावा है कि भारत अमेरिका पर “दुनिया में सबसे ऊंचे आयात शुल्क” लगाता है। हकीकत यह है कि भारत ने पिछले तीन दशकों में लगातार बाज़ारों को खोला है। अमेरिका की लगभग 95% निर्यात वस्तुओं पर भारत पहले से ही शून्य या बेहद कम शुल्क लेता है।
हाँ, डेयरी और कृषि जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर भारत अपने किसानों की रक्षा करता है। लेकिन यह कोई “अन्याय” नहीं, बल्कि नीति-संप्रभुता है। अमेरिका भी अपने किसानों को भारी सब्सिडी और सुरक्षा देता है। फिर भारत ऐसा क्यों न करे?
रूस का मुद्दा: संप्रभुता बनाम दबाव
ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीदने को लेकर भी तंज कसा। लेकिन भारत की विदेश नीति स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी पर आधारित है। भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ऊर्जा और रक्षा सौदे करता है। किसी भी देश की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी सुरक्षा नीतियों को दांव पर लगाना भारत की परंपरा नहीं है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत-अमेरिका रक्षा व्यापार साल 2000 में लगभग शून्य था, जो 2024 तक बढ़कर 22 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यदि रिश्ता “एकतरफा आपदा” होता, तो रक्षा व्यापार में यह वृद्धि असंभव थी।
असली मकसद: राजनीति
स्पष्ट है कि ट्रंप की नाराज़गी का कारण व्यापार घाटा नहीं है। असली मकसद चुनावी राजनीति है। भारत को बलि का बकरा बनाकर ट्रंप अमेरिकी मतदाताओं को यह दिखाना चाहते हैं कि वह “कड़े नेता” हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि अमेरिका भारत से फायदा उठाता है, न कि नुकसान।
ट्रंप की यह झुंझलाहट शायद उस समय की भी है जब भारत ने उनकी पाकिस्तान-भारत मध्यस्थता की “पहल” को सिरे से ठुकरा दिया था। तब से ही वे बार-बार भारत को अपने भाषणों में निशाना बनाते रहे हैं।
भारत अब soft target नहीं
भारत आज की दुनिया में एक आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी शक्ति है। आर्थिक क्षेत्र हो या सामरिक, भारत अपनी संप्रभुता और हितों से समझौता नहीं करता। अमेरिका या कोई और ताकत भारत को चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल करे, यह अब संभव नहीं।
ट्रंप की बयानबाज़ी से शायद उन्हें अमेरिका में भले ही कुछ तालियां मिल जाएं, लेकिन सच यही है कि भारत-अमेरिका संबंध संतुलन और परस्पर लाभ पर आधारित हैं। भारत अब किसी का soft target नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर निर्णायक खिलाड़ी है।