भारत का रुख अब स्पष्ट है। इसे सबसे पहले दुनिया के सामने रखा है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने। मध्य प्रदेश के सतना में एक गुरुद्वारे के उद्घाटन के दौरान उन्होंने वह कह दिया, जो शायद दिल्ली के सत्ता गलियारों में अब तक केवल संकेतों में कहा जा रहा था। उन्होंने कहा— वो घर और ये घर अलग नहीं है, पूरा भारतवर्ष एक घर है। मेरे घर का एक कमरा किसी ने हथियाया है, कल उसको वापस लेकर फिर से वहां डेरा डालना है और इसलिए स्मरण रखना है अविभाजित भारत। उनका यह वक्तव्य न तो महज़ एक भावनात्मक संबोधन था और न कोई धार्मिक उपदेश। यह बयान भारत के अगले भू-राजनीतिक कदम की वैचारिक घोषणा थी।
बता दें कि संघ की भाषा में यह हमेशा से रहा है कि भारत एक परिवार है, एक सभ्यता है, जिसे देश विभाजन ने अस्थायी रूप से बांट दिया। लेकिन, यही बात संघ प्रमुख ऐसे समय में कहते हैं, जब केंद्र में उनकी ही विचारधारा सत्ता में है और देश के प्रधानमंत्री खुद बार-बार PoK का नाम लेकर पाकिस्तान को चेतावनी दे रहे हैं, तो इसे सामान्य भाषण नहीं माना जा सकता। भागवत का घर का कमरा वापस लेने वाला कथन इस बात की उद्घोषणा है कि भारत की निगाह अब सीमाओं के पार पहुंच चुकी है।
यह बात इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि भारत की आधिकारिक स्थिति भी इसी स्वर को पुष्ट करती है। लोकसभा में 2020 में दिए गए बयान में विदेश मंत्रालय ने साफ कहा था कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का संपूर्ण क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है और पाकिस्तान को अवैध कब्जे वाले सभी क्षेत्रों को खाली कर देना चाहिए। यह वही स्थिति है, जिसे भारत की संसद ने 1994 में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव के रूप में हमेशा के लिए दर्ज किया था। आज भागवत उसी भावना को जनभावना के रूप में दोहरा रहे हैं। मानो यह याद दिलाने के लिए कि वादा अधूरा है और नक्शा अभी पूरा नहीं हुआ।
इस बीच, केंद्र सरकार के रुख में जो बदलाव दिखा है, वह किसी संयोग से नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ ही महीने पहले ही कहा था, PoK हमारा है और रहेगा। सभी सरकारों को इस पर काम करना चाहिए। उनका यह वाक्य अपने आप में भारत की नीतिगत दृढ़ता का दस्तावेज है। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई में राष्ट्र को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को यह चेताया कि अब कोई बातचीत और कोई व्यापार नहीं होगा, अगर बातचीत होगी तो सिर्फ आतंकवाद और PoK पर होगी, तब यह समझना कठिन नहीं रहा कि नई दिल्ली की नीति अब प्रतीक्षा नहीं, तैयारी के चरण में है।
कश्मीर के पहलगाम में जब आतंकियों ने निर्दोषों पर कहर ढाया, तो भारत की प्रतिक्रिया तत्काल और निर्णायक रही। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जवाबी हमले में भारतीय बलों ने पाकिस्तान और PoK में मौजूद नौ आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। उसके बाद जो भाषण प्रधानमंत्री ने दिया, उसमें एक निर्णायक पंक्ति थी, आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते, आतंकवाद और पानी साथ नहीं बह सकता। उनके इस वाक्य में वह नई नीति समाई थी, जिसमें पाकिस्तान के लिए भारत के पास अब कोई छूट, कोई रियायत नहीं बची है।
22 मई को राजस्थान के बीकानेर में जब पीएम मोदी ने कहा कि भारत के दुश्मन अब देख चुके हैं कि जब सिंदूर बारूद बन जाए तो क्या होता है, तो उनका यह स्पष्ट संदेश था कि भारत की रणनीतिक सीमा अब नियंत्रण रेखा पर नहीं रुकती। दरअसल, यह वह वक्त है जब भारत केवल जवाब देने की नहीं, हिसाब बराबर करने की स्थिति में है। संघ प्रमुख का वक्तव्य इसी दिशा में एक वैचारिक स्वीकृति है, जैसे वह यह कह रहे हों कि देश अब तैयार है अपने घर का कब्जा छुड़ाने के लिए।
PoK का प्रश्न केवल भू-राजनीति का नहीं, बल्कि सभ्यता और सुरक्षा का भी है। पाकिस्तान ने जिस इलाके को अपने कब्जे में रखा हुआ है, वह भारत की जल-नसों पर नियंत्रण रखता है। सिंधु नदी और उसकी सहायक धाराओं का ऊपरी हिस्सा इसी क्षेत्र से होकर बहता है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) का बड़ा हिस्सा PoK से होकर गुजरता है, जो न केवल अवैध है बल्कि भारत की संप्रभुता का खुला उल्लंघन भी है। यही वह क्षेत्र है, जहां पाकिस्तान ने चीनी कंपनियों को खनिजों के दोहन का अधिकार दिया हुआ है। भारत के लिए यह सिर्फ भूमि नहीं, बल्कि संसाधन, जल और सुरक्षा के स्रोत पर नियंत्रण का प्रश्न है।
संघ का यह अखंड भारत का विचार कोई आज की राजनीति का नारा नहीं है। 1925 में इसकी स्थापना के समय से ही संघ ने विभाजित भारत को अधूरा कहा था। 1947 में जब देश बंटा, तो भी संघ के विचार में यह विभाजन अस्थायी कहा गया था। इन सबके बीच अब, जब सौवें वर्ष में RSS शताब्दी मना रहा है, तो मोहन भागवत का यह वक्तव्य उस ऐतिहासिक वैचारिक यात्रा का चरम बिंदु प्रतीत होता है। जैसे वह कह रहे हों कि हमने 100 वर्ष तक प्रतीक्षा की, अब अधूरे भूगोल को पूरा करने का समय आ चुका है।
पाकिस्तान मोहन भागवत के इस बयान से बौखलाया हुआ है। इस्लामाबाद में बैठे विश्लेषक इसे भारत के विश्लेषक इसे मानसिक युद्ध की शुरुआत बता रहे हैं। लेकिन भारत में यह बयान किसी उत्तेजना की उपज नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का परिणाम है। मोदी सरकार ने जिस तरह से कूटनीति और सैन्य नीति का एकीकरण किया है, उससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अब प्रतिक्रिया देने वाला राष्ट्र नहीं रहा। यह अब नीति निर्धारित करने वाला राष्ट्र बन चुका है।
PoK की ओर भारत का झुकाव केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से तार्किक भी है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था टूट चुकी है, उसका रक्षा ढांचा चीन पर निर्भर है और उसके कब्जे वाले क्षेत्रों में जनता खुद पाकिस्तान से असंतुष्ट है। मुजफ्फराबाद और गिलगित में हाल के महीनों में हुए विरोध प्रदर्शनों ने यह साबित कर दिया है कि PoK अब पाकिस्तान के लिए संपत्ति नहीं, बोझ बन गया है। यही वह मनोवैज्ञानिक मोड़ है, जहां से भारत के लिए अवसर शुरू होता है।
संघ प्रमुख का बयान ऐसे समय में आया है, जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रतिष्ठा अपने सर्वोच्च स्तर पर है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक भारत को स्थिर शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जो चीन और रूस के बीच एक संतुलन बिंदु बन चुका है। ऐसे में यदि भारत अपने अधिकार की बात करता है, तो दुनिया उसे आक्रामक नहीं बल्कि सिद्ध अधिकार के रूप में स्वीकार कर रही है।
इन सबके बीच शायद यही वह क्षण है, जहां मोहन भागवत का वक्तव्य केवल संघ या सरकार का नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का स्वर बन जाता है। वह स्वर जो यह कहता है कि यह भूमि केवल सीमा की रेखाओं से नहीं, बल्कि हजारों वर्षों के सांस्कृतिक धागों से जुड़ी हुई है। PoK केवल कागज पर एक भूभाग नहीं, बल्कि यह वह हिस्सा है जहां से भारतीय सभ्यता का एक अध्याय हमसे अलग हो गया था। अब भारत वह अध्याय फिर जोड़ने की तैयारी में है।
इसलिए जब भागवत कहते हैं कि घर का कमरा वापस लेकर फिर से वहां डेरा डालना है, तो यह किसी राजनीतिक नारे की नहीं, बल्कि सभ्यता के पुनर्जागरण की घोषणा है। अब यह प्रश्न पाकिस्तान से अधिक भारत के भीतर के आत्मविश्वास का है। क्या हम उस नक्शे को पूरा करने को तैयार हैं, जिसे हमने अधूरा छोड़ा था?
भारत की सरकार, सेना और जनता तीनों के बीच जिस सामंजस्य की झलक आज दिखती है, वह इस बात का संकेत है कि यह सपना अब केवल कागज पर नहीं रहेगा। भागवत के शब्द उस दिशा में पहला सार्वजनिक संकेत हैं कि भारत अब शब्दों से आगे बढ़ चुका है। अब संकल्प का समय है, और यह संकल्प है अखंड भारत का।