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ऑस्ट्रेलियाई रिपोर्ट में साफ किया गया है कि भारत द्वारा सिंधु के बहाव में मामूली बदलाव करने की क्षमता, गर्मियों के दौरान पाकिस्तान के मैदानी इलाकों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
1 November 2025
in अर्थव्यवस्था, कृषि, चर्चित, भारत, भू-राजनीति, विश्व, व्यवसाय
80% खेती सिंधु पर, तालाब भी नहीं बचे! भारत की जल-नीति और अफगानिस्तान के फैसले ने पाकिस्तान को रेगिस्तान में धकेला, अब न पानी होगा, न रोटी, न सेना की अकड़

पानी भारत के लिए अचूक रणनीतिक हथियार बन चुका है।

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भारत-पाकिस्तान संबंध हमेशा तनाव और जटिलताओं से भरे रहे हैं, लेकिन हालिया जल-सैन्य रणनीति ने पाकिस्तान के लिए खेल बदल दिया है। सिंधु बेसिन पर भारत की स्थिर और रणनीतिक पकड़, अब पाकिस्तान की खेती, अर्थव्यवस्था और सैन्य अकड़ पर सीधे प्रहार कर रही है। ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित “Ecological Threat Report 2025” ने इस वास्तविकता को उजागर किया है कि कैसे भारत ने सिंधु जल संधि को स्थगित करके पड़ोसी मुल्क को अपने फैसलों के अनुसार प्यासा और कमजोर कर दिया है।

सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान ने भी कुनार नदी पर पानी रोकने का ऐलान किया है। इससे पाकिस्तान की जल-समस्या और गहरी हो गई है। यह अब केवल एक साधारण प्राकृतिक संकट नहीं, बल्कि पाकिस्तान के अस्तित्व और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए रणनीतिक खतरे में तब्दील हो गया है। सिंधु बेसिन पाकिस्तान की 80% खेती और पूरे देश के पानी का मुख्य स्रोत है। अगर इस जल-प्रवाह में मामूली व्यवधान आता है, तो वहां की फसलें बर्बाद हो सकती हैं, खाद्य सुरक्षा पर संकट पैदा हो सकता है, और आम जनता पर सीधे असर होगा।

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दोहरे संकट में फंसा पाकिस्तान

पाकिस्तान की सेना, जो हमेशा अपनी अकड़ और सैन्य दावों में गर्व करती रही है, अब खुद इस पानी-संकट के सामने बेबस नजर आती है। 75 सालों में कश्मीर पर कब्जे की अपनी नाकाम कोशिशों और बाहरी युद्धों के दावों के बावजूद, पाकिस्तान अब अपनी खुद की सीमा पर पानी की कमी से त्रस्त है। ऑस्ट्रेलियाई रिपोर्ट में साफ किया गया है कि भारत द्वारा सिंधु के बहाव में मामूली बदलाव करने की क्षमता, गर्मियों के दौरान पाकिस्तान के मैदानी इलाकों को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त है।

अफगानिस्तान का कुनार नदी पर पानी रोकने का फैसला, पाकिस्तान की परेशानियों को दोगुना करता है। सिंधु की आपूर्ति में बाधा और कुनार नदी से पानी की कमी, पाकिस्तान के सिंचाई वाले क्षेत्रों में बर्बादी का कारण बन सकती है। यह रणनीतिक ‘जल-घेरा’ पाकिस्तान के लिए किसी आपातकाल की तरह है। किसानों की फसलें, जल-भंडार, और खाद्य आपूर्ति तीनों संकट में पड़ सकते हैं।

इतना ही नहीं, पाकिस्तान की कमजोर आर्थिक स्थिति इस संकट को और गंभीर बना देती है। सिंधु बेसिन पर निर्भरता के कारण पाकिस्तान अब बाहरी सहयोग, निर्यात और आयात में भी अस्थिर हो गया है। भारत ने जो रणनीतिक कदम उठाए हैं, वे केवल जल प्रवाह को नियंत्रित करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि पाकिस्तान की सामाजिक स्थिरता, अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा पर भी प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं।

इस समय पाकिस्तान का राजनीतिक नेतृत्व और सेना दोनों ही अपने पुराने दावों और अकड़ के बावजूद दबाव में हैं। सरकार के पास विकल्प सीमित हैं – चाहे सिंचाई के लिए नई तकनीक अपनाएं, या महंगी आपूर्ति मार्गों से फसल बचाने की कोशिश करें। भारत की रणनीति ने उन्हें हर दिशा में फंसा दिया है।

भारत ने दिया यह संदेश

इतिहास से भी यह स्पष्ट है कि जल-स्रोतों पर नियंत्रण किसी भी क्षेत्रीय शक्ति के लिए ‘सशस्त्र और गैर-सशस्त्र’ दोनों तरह का अस्त्र बन सकता है। भारत ने इस अवसर का पूर्ण लाभ उठाया है। सिंधु जल संधि को स्थगित कर, और अफगानिस्तान के सहयोग से पड़ोसी देश के जल-स्रोतों पर नियंत्रण मजबूत कर, भारत ने यह संदेश दिया है कि किसी भी तरह की शत्रुता का सामना अब सिर्फ सैन्य शक्ति या राजनीतिक दावों से नहीं, बल्कि रणनीतिक संसाधनों के माध्यम से भी किया जा सकता है।

पाकिस्तान के लिए यह समय चेतावनी का है। सिंधु और कुनार पर नियंत्रण, भारत और अफगानिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, पाकिस्तान को अपने पुराने दावों, झूठे सैन्य दावों और अकड़ की कीमत चुकाने पर मजबूर करता है। 80% खेती सिंधु पर निर्भर होने के नाते, पाकिस्तान के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाद्य संकट की संभावना गंभीर हो गई है।

पानी ही अब भारत का ब्रह्मास्त्र बन चुका है। यह न केवल पाकिस्तान की खेती, अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव डालता है, बल्कि उसकी सैन्य और राजनीतिक अकड़ पर भी सवाल खड़े करता है। इस रणनीति ने साबित कर दिया है कि सीमाओं के भीतर सैन्य ताकत से ज्यादा, प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण राष्ट्रीय शक्ति का एक अहम हिस्सा है।

पाकिस्तान की आबादी के लिए यह संकट और भी गहरा है। सिंधु बेसिन पर निर्भर किसान, जो देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, अब पानी की कमी के चलते बर्बादी का सामना कर सकते हैं। यही नहीं, पाकिस्तान की जल-निगरानी और प्रबंधन प्रणाली की असफलताएं भी इस संकट को बढ़ा रही हैं।

पाकिस्तान के पास कोई विकल्प नहीं

भारत और अफगानिस्तान के कदम इस बात का संकेत हैं कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन अब सिर्फ सैन्य और राजनीतिक शक्ति पर नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर भी निर्भर है। पाकिस्तान ने कई दशकों तक अपने दावों और सैन्य शक्ति पर गर्व किया, लेकिन आज वही अकड़ उसे भारी नुकसान और अस्थिरता की ओर ले जा रही है।

सिंधु और कुनार के पानी पर भारत और अफगानिस्तान की पकड़ ने पाकिस्तान के लिए अब कोई सुरक्षित विकल्प नहीं छोड़ा। यह न केवल उसकी फसलें और आर्थिक स्थिति पर असर डाल रही है, बल्कि उसकी रणनीतिक ताकत और सेना की प्रतिष्ठा पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा कर रही है।

इस रणनीतिक चाल का एक और असर यह है कि पाकिस्तान अब अपनी विदेशी नीतियों और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होगा। भारत की जल नीति और अफगानिस्तान का सहयोग, पड़ोसी देश को अपने पुराने झूठे दावों और अकड़ के परिणाम भुगतने के लिए मजबूर करता है।

अंततः यह स्पष्ट है कि पानी अब केवल एक प्राकृतिक संसाधन नहीं रह गया है। यह भारत के लिए रणनीतिक हथियार बन चुका है, जिसने पाकिस्तान को अपनी सीमा के भीतर संकट में डाल दिया है। सिंधु और कुनार पर नियंत्रण, अफगानिस्तान के सहयोग के साथ, पाकिस्तान की खेती, अर्थव्यवस्था और सैन्य प्रतिष्ठा पर सीधा प्रहार कर रहा है।

सिंधु और कुनार के पानी पर भारत और अफगानिस्तान की सामूहिक रणनीति ने पाकिस्तान को उसके पुराने दावों, अकड़ और सैन्य झूठ पर भुगतान करने के लिए मजबूर कर दिया है। अब न सिर्फ उसकी खेती और खाद्य सुरक्षा खतरे में है, बल्कि उसके राष्ट्रीय गौरव और सैन्य प्रतिष्ठा पर भी प्रश्न खड़े हो गए हैं। इस जल-सैन्य रणनीति ने स्पष्ट कर दिया है कि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण किसी भी क्षेत्रीय शक्ति के लिए सबसे बड़ा अस्त्र हो सकता है। पड़ोसी देश की नींव अब हिल चुकी है, और उसके लिए बचाव के विकल्प बेहद सीमित हैं।

Tags: AfghanistanfarmersIndiaIndus Water TreatyKunar DamPakistanPakistani Armywater crisis in Pakistanअफ़ग़ानिस्तानकिसानकुनार पर बांधपाकिस्तानपाकिस्तान में पानी का संकटपाकिस्तानी सेनाभारतसिंधु जल संधि
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