आज कार्तिक पूर्णिमा है। कार्तिक पूर्णिमा सनातन परंपराओं में अत्यंत पवित्र दिन माना जाता है। यह केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार के लिए भी दिव्य माना जाता है। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन देवताओं ने दीपावली मनाई थी, इसलिए इसे देव दीपावली कहा जाता है।
पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा 2025 में 4 नवंबर की रात 10:36 बजे से प्रारंभ होकर 5 नवंबर को शाम 6:48 बजे तक रहेगी। इस दिन को धार्मिक आस्था और पवित्र परंपराओं का संगम माना जाता है।
त्रिपुरासुर वध: शिव बने त्रिपुरारी
कार्तिक पूर्णिमा का सबसे प्रमुख पर्व त्रिपुरासुर वध से जुड़ा है। कहा जाता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण कर त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया। त्रिपुरासुर तीनों लोकों में अत्याचार फैलाने वाला राक्षस था और उसकी शक्ति अत्यधिक थी। महादेव की इस अद्भुत विजय से देवताओं ने उनकी स्तुति की और भगवान विष्णु ने उन्हें ‘त्रिपुरारी’ नाम से संबोधित किया।
इसी दिन देवताओं ने काशी में दीपावली मनाई, जिसे आज भी देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन काशी में दीपदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। यह दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि महादेव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण कर अपनी दिव्यता और शक्ति का अद्भुत प्रदर्शन किया।
मत्स्य अवतार: वेदों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु का दिव्य रूप
भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रलय के समय जब समस्त सृष्टि जल में विलीन हो गई, भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर वेदों और सप्तऋषियों की रक्षा की। कहा जाता है कि राजा सत्यव्रत को भगवान मत्स्य अवतार ने वेदों का ज्ञान दिया और उन्हें सृष्टि के पुनर्निर्माण के लिए मार्गदर्शन किया।
इस दिन भगवान विष्णु मत्स्य रूप में जल में निवास करते हैं और पूर्णिमा के दिन बैकुंठ धाम लौटते हैं। इस अवसर पर श्रद्धालु मत्स्य अवतार की कथाओं का स्मरण करते हुए जल में स्नान करते हैं और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
पांडवों का दीपदान: पितरों की तृप्ति के लिए गंगा स्नान
महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने परिजनों की मृत्यु से अत्यंत दुखी थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें पितरों की आत्मा की शांति हेतु उपाय बताया। तब पांडवों ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन गढ़ मुक्तेश्वर में पवित्र गंगा स्नान कर तर्पण और दीपदान किया।
इस दिन गंगा स्नान और दीपदान की परंपरा प्रचलित हुई। कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने और दीपदान करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि मनुष्य अपने भीतर आध्यात्मिक शुद्धि भी प्राप्त करता है। यह परंपरा आज भी लाखों श्रद्धालुओं द्वारा निभाई जाती है।
देवी तुलसी का विवाह: शालिग्राम के संग दिव्य मिलन
पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवी तुलसी का भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से विवाह हुआ था। यह विवाह कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है। मान्यता है कि तुलसी दल अर्पित करने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
तुलसी विवाह के पश्चात ही अन्य विवाहोत्सवों का शुभारंभ माना जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे की पूजा कर उन्हें भगवान विष्णु अर्पित करने से घर में सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
पुष्कर तीर्थ: ब्रह्मा जी का अवतरण
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्मा जी का अवतरण पवित्र पुष्कर सरोवर में हुआ था। आज भी यह स्थान ब्रह्मा जी की आराधना का प्रमुख केंद्र है। लाखों श्रद्धालु इस दिन पुष्कर में स्नान कर ब्रह्मा मंदिर में पूजा-अर्चना और दीपदान करते हैं। ऐसा करने से देव कृपा और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुष्कर तीर्थ पर इस दिन स्नान करने और पूजा करने की परंपरा ने इसे पूरे भारत में कार्तिक पूर्णिमा के प्रमुख तीर्थ स्थलों में बदल दिया है।
देवताओं की दीपावली: लक्ष्मी-नारायण की महाआरती
कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि को भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। उनके जागरण पर समस्त देवी-देवताओं द्वारा महाआरती की जाती है और दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। यही परंपरा मनुष्य भी अपनाता है, दीपदान और व्रत-पूजन करके देव दीपावली का उत्सव मनाते हैं।
इस दिन घरों और मंदिरों में दीपक जलाने से जीवन में प्रकाश, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
स्नान और दीपदान का महत्व
शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन स्नान करने से पूरे वर्ष स्नान का फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट होते हैं।
दीपदान की महिमा भी अत्यधिक है। स्कन्द पुराण के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने से राजसुय और अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और यह पुण्य जन्म-जन्मांतर तक अक्षय रहता है। घरों में दीपक जलाने से जीवन प्रकाशमान होता है और माता लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं।
सत्यनारायण व्रत: पुण्य और समृद्धि
इस दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ अवश्य किया जाना चाहिए। अक्षत, पुष्प, नारियल, पान, सुपारी, कलावा, तुलसी, आंवला, दूर्वा, शमी पत्र, पीपल के पत्तों और गंगाजल से पूजन करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह व्रत व्यक्ति को समस्त सांसारिक सुखों के साथ अंत में स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग भी प्रदान करता है।
कार्तिक पूर्णिमा केवल वैष्णवों के लिए ही नहीं, बल्कि शैव और सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार और इस दिन की कथाएं सृष्टि की रक्षा और वेदों की सुरक्षा का प्रतीक हैं। स्नान, व्रत, दीपदान और पूजा के माध्यम से यह पर्व आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करता है और समाज में सांस्कृतिक चेतना जागृत करता है।
कार्तिक पूर्णिमा 2025 का यह पवित्र पर्व श्रद्धालुओं के लिए न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
