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बिहार में पहले चरण में बंपर वोटिंग से पीएम मोदी गदगद, विपक्ष हतप्रभ और एनडीए का आत्मविश्वास आसमान पर

पीएम मोदी ने जैसे ही सोशल मीडिया पर लिखा, एनडीए को भारी बढ़त मिल चुकी है, दूसरे चरण में भी हर तरफ उसकी लहर है, यह ट्वीट महज आत्मविश्वास नहीं था, बल्कि जमीन पर महसूस की जा रही उस राजनीतिक हवा का संकेत था, जो बिहार के हर जिले में चल रही है।

Vibhuti Ranjan द्वारा Vibhuti Ranjan
7 November 2025
in चर्चित, बिहार डायरी, भारत, मत, राजनीति, समीक्षा
बिहार में पहले चरण में बंपर वोटिंग से पीएम मोदी गदगद, भारी मतदान से विपक्ष हतप्रभ और एनडीए का आत्मविश्वास आसमान पर

विपक्ष के पास न तो कोई राष्ट्रीय चेहरा है और न ही विचारधारा का सामर्थ्य।

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बिहार की राजनीति में जिस लहर का नाम अक्सर मतदाता के दिल की गहराइयों से उठता है, वह इस बार किसी सर्वे या नारे की उपज नहीं है, बल्कि यह सजीव ऊर्जा है जो बूथ से लेकर सोशल मीडिया तक, और गांव की चौपाल से लेकर शहर के चौराहे तक दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील, उनके नेतृत्व की विश्वसनीयता और पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार की योजनाओं की प्रत्यक्ष अनुभूति, इन तीनों ने मिलकर इस बार बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण को एक असाधारण राजनीतिक संकेत में बदल दिया है।

पहले चरण की 121 सीटों पर 64.66 प्रतिशत की रिकॉर्डतोड़ वोटिंग सिर्फ़ एक आंकड़ा नहीं है, यह बिहार की जनता के भीतर उठ रहे एक मौन विश्वास का प्रतीक है। इस वोटिंग में न केवल युवाओं और महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही, बल्कि पहली बार ग्रामीण इलाकों में भी जिस स्तर का उत्साह देखा गया, उसने विपक्षी खेमे की झूठी उम्मीदों को ध्वस्त करके रख दिया है। नरेंद्र मोदी ने जैसे ही सोशल मीडिया पर लिखा, एनडीए को भारी बढ़त मिल चुकी है, दूसरे चरण में भी हर तरफ उसकी लहर है, यह ट्वीट महज आत्मविश्वास नहीं था, बल्कि जमीन पर महसूस की जा रही उस राजनीतिक हवा का संकेत था, जो बिहार के हर जिले में चल रही है।

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उल्लेखनीय रही महिलाओं की भागीदारी

दरअसल बिहार का मतदाता बहुत चतुर है। वह नारों और भाषणों से ज़्यादा काम और नीयत देखता है। बीस साल पहले तक जो राज्य अंधकार में डूबा था, जो बिजली, सड़क और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझता था, आज उसी बिहार के गांवों में प्रधानमंत्री आवास योजना के मकान चमक रहे हैं, उज्ज्वला योजना की गैस चूल्हों से धुआं नहीं उठता, बल्कि आत्मगौरव उठता है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस जनकल्याण राष्ट्रवाद की राजनीति को मूर्त रूप दिया है, वह बिहार के साधारण नागरिक को अपने जीवन में महसूस हो रही है और यही कारण है कि मोदी का नाम अब किसी पोस्टर की ज़रूरत नहीं रखता, वह हर घर की दीवार पर खुद लिखा हुआ है।

पहले चरण की भारी वोटिंग में महिला मतदाताओं की बड़ी भागीदारी इस चुनाव का सबसे निर्णायक संकेत है। नरेंद्र मोदी की ‘लाडली बहनों’ और ‘नारी शक्ति’ के प्रति योजनाएं — जैसे जनधन खाता, शौचालय निर्माण, एलपीजी, मातृत्व लाभ और अब महिला स्वयं सहायता समूहों के आर्थिक सशक्तिकरण — ने गांव की महिलाओं को पहली बार ऐसा अहसास दिया है कि शासन उनके द्वार तक पहुंचा है। यह वर्ग आज चुपचाप लेकिन निर्णायक वोट देता है, और उसका झुकाव स्पष्टतः एनडीए की ओर दिख रहा है।

कोई ठोस एजेंडा नहीं दे सका विपक्ष

दूसरी तरफ विपक्ष का हाल देखें तो तस्वीर बिल्कुल उलट है। राजद, कांग्रेस और उनकी छिटपुट सहयोगी ताकतें न तो एकजुट हैं, न ही कोई ठोस एजेंडा दे पा रही हैं। तेजस्वी यादव का पूरा प्रचार सिर्फ बेरोजगारी शब्द पर टिका रहा, लेकिन वह यह बताने में असफल रहे कि 15 साल के लालू शासन के दौरान बिहार बेरोजगारी, अपराध और पलायन का गढ़ क्यों बना रहा। तेजप्रताप यादव की व्यक्तिगत छवि और पारिवारिक विवाद ने भी पार्टी के जनाधार को कमजोर किया है। दूसरी ओर, एनडीए की तरफ से भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सुनियोजित रैलियां, प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता और स्थानीय उम्मीदवारों की साख, तीनों ने मिलकर चुनावी समीकरण को एकतरफा बना दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी जब कहते हैं कि बिहार में एनडीए की लहर है, तो उसके पीछे सिर्फ भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि सांख्यिक और राजनीतिक यथार्थ भी है। 64.66% वोटिंग में 45,000 से अधिक पोलिंग स्टेशन, जिनमें 926 महिलाओं द्वारा संचालित और 107 दिव्यांगों द्वारा प्रबंधित थे, यह बताता है कि बिहार में लोकतंत्र अब जनआंदोलन बन चुका है। यह वही बिहार है, जिसने जेपी आंदोलन से लेकर आपातकाल तक राजनीतिक चेतना का नेतृत्व किया था, और अब उसी बिहार से नरेंद्र मोदी की राष्ट्रवादी राजनीति को नया बल मिल रहा है।

मोदी ने बिहार के आत्मसम्मान को दिया बल

इस चुनाव में सबसे अहम बात यह रही कि विपक्ष के बड़े चेहरे, चाहे वह तेजस्वी हों या कांग्रेस के नेता, कहीं भी मोदी के नैरेटिव को तोड़ नहीं पाए। उनके भाषणों में गुस्सा तो था, लेकिन विजन नहीं था। जबकि मोदी के हर भाषण में भविष्य की झलक थी आत्मनिर्भर बिहार, औद्योगिक निवेश, युवाओं के लिए स्टार्टअप वातावरण और शिक्षा-स्वास्थ्य का बुनियादी सुधार। यही वजह है कि पहले चरण की वोटिंग से लेकर अब तक जो माहौल बना है, उसमें एनडीए समर्थकों के बीच उत्साह और विपक्षी खेमे में घबराहट स्पष्ट रूप से महसूस की जा रही है।

राजनीति सिर्फ आंकड़ों की नहीं, भावनाओं की भी होती है। बिहार के मतदाता का मन तब बनता है जब वह सम्मान महसूस करता है। पीएम मोदी की राजनीति ने बिहार के उस आत्मसम्मान को छुआ है जिसे दशकों तक दिल्ली की सत्ताओं ने अनदेखा किया था। गरीब का बेटा प्रधानमंत्री बना, यह वाक्य अब कोई नारा नहीं, बल्कि हर गरीब बिहारी का आत्मबोध बन चुका है। यही कारण है कि पटना से लेकर पूर्णिया तक, लोग मोदी को अपना आदमी मानते हैं, और भाजपा के उम्मीदवारों को उसी भरोसे के साथ वोट दे रहे हैं।

सामाजिक संतुलन की नई परिभाषा

पहले चरण में जिन क्षेत्रों में मतदान हुआ जैसे बेगूसराय, शेखपुरा, औरंगाबाद, भभुआ, तारापुर, राघोपुर, मोकामा, मुजफ्फरपुर इन सबकी अपनी राजनीतिक जटिलताएं हैं। लेकिन दिलचस्प यह है कि इन इलाकों में भी स्थानीय समीकरणों से ज़्यादा असर मोदी के नाम का दिखा। मोकामा सीट इस बार पूरे बिहार में चर्चा का केंद्र बनी रही, क्योंकि यहां से जदयू ने बाहुबली छवि वाले लेकिन अनंत सिंह को टिकट दिया है। यह कदम अपने आप में बड़ा संकेत था कि एनडीए अब केवल साफ़-सुथरी छवि नहीं, बल्कि जनाधार वाले स्थानीय प्रभावशाली चेहरों को भी अपने साथ जोड़कर विपक्ष को किनारे कर रहा है। अनंत सिंह का जदयू प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरना उस वर्ग को भी आकर्षित कर गया जो पहले एनडीए से दूरी बनाए रखता था। इस तरह मोकामा ने यह साबित किया कि एनडीए अब न सिर्फ़ “विकास” का प्रतीक है, बल्कि “सामाजिक संतुलन” की नई परिभाषा भी गढ़ रहा है।

इस चुनाव का एक और पहलू भी उल्लेखनीय है युवाओं का झुकाव। बिहार से हमेशा पलायन की पीड़ा जुड़ी रही है, लेकिन मोदी सरकार की नीति ने अब इस दर्द को धीरे-धीरे अवसर में बदलना शुरू कर दिया है। अब युवा पहली बार अपने गांव में आत्मनिर्भरता की बात करते हैं चाहे वह पीएम मुद्रा योजना से मिले लोन हों या पीएम कौशल विकास योजना से मिला प्रशिक्षण। यही कारण है कि 18 से 25 वर्ष के मतदाताओं में भाजपा और जदयू की लोकप्रियता उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है।

मोदी-नीतीश समीकरण विपक्ष के लिए चुनौती

वहीं, एनडीए के सहयोगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रशासनिक साख ने भी मैदान में स्थिरता दी है। केंद्र में मोदी का करिश्मा और राज्य में नीतीश की छवि, यह जोड़ी बिहार के मतदाता के लिए भरोसे का दूसरा नाम बन चुकी है। मोदी-नीतीश समीकरण विपक्ष के लिए एक ऐसा पहाड़ बन गया है जिसे पार करना उनके लिए असंभव दिखता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जिस आत्मविश्वास के साथ कहा कि दूसरे चरण में भी हर तरफ लहर है, वह केवल राजनीतिक बयान नहीं था। यह वही आत्मविश्वास है जो उन्होंने 2014 में दिखाया था, 2019 में सिद्ध किया था और अब 2025 में बिहार की जनता के माध्यम से पुनः प्रमाणित कर रहे हैं। इस बार चुनाव में भाजपा की रणनीति पूरी तरह डेटा-संचालित और बूथ-केंद्रित रही है। हर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ता पिछले छह महीने से लगातार डोर-टू-डोर संपर्क में हैं। आरएसएस, सेवा भारती और स्थानीय स्वयंसेवकों की भागीदारी ने भी संगठन को जमीनी मजबूती दी है।

यह लहर सिर्फ राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक भी है। मोदी के राष्ट्रवाद ने बिहार की गौरवशाली परंपराओं को पुनर्जीवित किया है। जनता-जनार्दन शब्द का प्रयोग मोदी सिर्फ़ एक अलंकार के रूप में नहीं करते, यह उनके राष्ट्रदर्शन का केंद्र है, जहां जनता ही असली जनादेश और शक्ति है। यही वजह है कि जब वे कहते हैं परिवारजनों से संवाद का सौभाग्य मिलेगा, तो यह औपचारिक राजनीतिक वाक्य नहीं, बल्कि गंगा के तट पर बसे उस समाज के प्रति एक भावनात्मक नाता है जो मोदी को अपना मान चुका है।

विपक्ष के पास न तो कोई राष्ट्रीय चेहरा है और न ही विचारधारा का सामर्थ्य। उनकी राजनीति अब सिर्फ़ मोदी-विरोध तक सीमित रह गई है, जबकि मोदी की राजनीति भारत-निर्माण तक पहुंच चुकी है। यही फर्क बिहार की जनता समझ चुकी है, और पहले चरण की भारी वोटिंग उसी समझ का परिणाम है।

आने वाले दूसरे चरण में यह लहर और तेज़ होगी, क्योंकि बिहार के गांवों तक यह संदेश पहुंच चुका है कि जो काम मोदी करते हैं, वही देश के काम आते हैं। यह सिर्फ़ चुनाव नहीं, एक विचारधारा की स्वीकृति है। यह उस नए भारत का प्रतीक है, जहां लोकतंत्र जनसेवा और जनसशक्तिकरण का माध्यम बन चुका है।

पहले चरण के मतदान ने यह साफ कर दिया है कि बिहार अब पुराने समीकरणों की राजनीति से बाहर निकल चुका है। यह राज्य अब स्थिरता, विकास और राष्ट्रीय गौरव के साथ खड़ा है। और जब प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि “बिहार में एनडीए की भारी लहर है”, तो यह किसी चुनावी भाषण का दावा नहीं, बल्कि हर बूथ से उठती उसी आवाज़ का प्रतिबिंब है।

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