संघ प्रमुख मोहन भागवत और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अंडमान निकोबार में वीर सावरकर की प्रतिमा का अनावरण किया। ये कार्यक्रम वीर सावरकर की मशहूर कविता ‘सागर प्राण तलमाला’ के लिखे जाने के 115 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित किया गया था।उन्होंने यह कविता साल 1909 में तब लिखी थी, जब वो अंडमान की कुख्यात सेलुलर जेल (कालापानी) में बंद थे।
सावरकर का ये गीत भारत माता के प्रति अतुलनीय प्रेम, स्वतंत्रता की बेचैनी, और कैद में तड़पते क्रांतिकारी मन की मार्मिक आवाज़ है। ये गीत उन्होने मूल रूप में मराठी में लिखा था, लेकिन आप भी इसे समझ सकें, इसलिए हम इस गीत का हिंदी भावानुवाद दे रहे हैं।
‘सागरा प्राण तळमळला’ गीत का हिंदी भावानुवाद
हे सागर, मेरा मन तड़प रहा है
हे सागर!
मेरी आत्मा तड़प रही है, व्याकुल है, बेचैन है।
मेरे प्राण छटपटा रहे हैं—
तू मुझे मेरी मातृभूमि तक पहुँचा दे।
तुम्हारी अनंत लहरों के पार,
मैं उस भूमि को देखना चाहता हूँ
जहाँ मेरा जन्म हुआ,
जहाँ मेरी मिट्टी है,
जहाँ मेरे स्वजन हैं, और जहाँ मेरी प्रतिज्ञाएँ अधूरी पड़ी हैं।
मैं यहाँ कैद हूँ—
लोहे की सलाखों के पीछे, पत्थरों की दीवारों के बीच,
लेकिन मेरा मन तुम्हारी हर लहर के साथ उड़ता है,
मुक्त आकाश की ओर, स्वदेश की ओर।
हे सागर!
तुम ही तो वह मार्ग हो
जो मेरे देश से मुझे यहाँ लाया—
अब तुम ही मुझे वापस ले चलो।
मेरी पीड़ा सुनो…
मेरी आकांक्षा, मेरा प्रण, मेरा संकल्प
अब और भीतर नहीं रुक सकता।
मेरी आत्मा मातृभूमि की गोद में लौटने को पुकार रही है।
मैं उस पवित्र धरती को फिर छूना चाहता हूँ,
उसकी आज़ादी के लिए अपना सब कुछ अर्पित करना चाहता हूँ,
और अपने लोगों के बीच
फिर एक बार सांस लेना चाहता हूँ।
हे विशाल सागर!
मेरी व्याकुलता तुम्हें महसूस हो—
मेरी तड़प को राह दो।
मुझे मेरे देश तक पहुँचा दो—
मेरे प्राण तड़प रहे हैं।
वीर सावरकर को साल 1911 में मॉर्ले–मिंटो सुधारों (इंडियन काउंसिल्स एक्ट 1909) के विरुद्ध आंदोलन और कथित बगावत के आरोप में उन्हें ‘काला पानी’ की 50 वर्ष की सज़ा सुनाई गई थी। इस जेल में बिताए उनके दिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे मार्मिक अध्यायों में गिने जाते हैं।





























