मुझे लगता है कि आप सभी ‘गब्बर सिंह कर’ के बारे में जानते होंगे, एक शब्द जो भारतीय राजनीति के उद्धारक श्री राहुल गांधी द्वारा उद्धत किया गया है।
भारत को गब्बर सिंह टैक्स नहीं, सरल GST चाहिए। कांग्रेस और देश की जनता ने लड़कर कई वस्तुओं पर 28% टैक्स ख़त्म करवाया है।18% CAP के साथ एक रेट के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा। अगर भाजपा ये काम नहीं करेगी, तो कांग्रेस करके दिखाएगी।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 11, 2017
अब आते हैं विषय की गंभीरता पर, जीएसटी परिषद ने १० नवंबर २०१७ को गुवाहाटी में सभा आयोजित की और विभिन्न जीएसटी स्लैब के तहत उत्पादों के वर्गीकरण के लिए आवश्यक संशोधन किए।
जीएसटी के संशोधन को गुजरात में चुनाव होने वाले चुनाव को जीतने के लिए किये जाने वाले राजनीतिक चाल के रूप में दर्शाते हुए, विपक्षियों खासकर कांग्रेस द्वारा इसके विरोध में एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। विपक्ष द्वारा लगाया गया आरोप हास्यास्पद भी है और तर्कहीन भी।
जीएसटी की दरों में बदलाव कोई भी राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से नहीं किया गया है, क्योंकि जीएसटी परिषद जीएसटी के निहितार्थ जांच के लिए और कुछ सुधारात्मक उपाय करने के लिए जुलाई के बाद से हर महीने बैठक कर रही है। यह एक नियमित प्रक्रिया है, कभी-कभी संशोधन बड़े होते हैं (इस बार की तरह) और कभी छोटे, और कभी-कभी उनमें बदलाव नहीं किया जाता है। जीएसटी परिषद ने जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद पहली बार टैक्स स्लैब में बदलाव नहीं किए हैं। हालांकि, विपक्ष इस बात पर जोर दे रहा है कि ये निर्णय गुजरात और हिमाचल के चुनावों को देखते हुए लिए गया है।
जीएसटी परिषद ने २८ प्रतिशत टैक्स स्लैब से १७८ वस्तुओं को स्थानांतरित करके १८ प्रतिशत टैक्स स्लैब में कर दिया है। अब, केवल ५० उत्पाद ही २८ प्रतिशत कर स्लैब के अन्तर्गत रह गए हैं, जिनमें सभी लग्जरी और स्किन उत्पाद शामिल हैं।
२८ प्रतिशत टैक्स स्लैब में जो सामान सस्ते हुए उनमें तार, केबल, इन्सुलेट प्लग, फर्नीचर, बिस्तर, गद्दे, सूटकेस, डिटर्जेंट, शैम्पू, इत्र, लैंप, हाथ की घड़ी और संगमरमर तथा ग्रेनाइट के तख्ते शामिल हैं। टैक्स की दरों में कमी के कारण रेस्तरां में बड़ी राहत मिली है।
एसी की उपलब्धता के आधार पर पिछला वर्गीकरण रेस्तरां के उपर से अब हटा दिया गया है और सभी रेस्तरां ५ प्रतिशत टैक्स स्लैब में शामिल कर दिए गए हैं। इसके अलावा, जीएसटी परिषद ने छोटे और बड़े दोनों व्यवसायों के लिए रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया में छूट देने का फैसला किया है। राजस्व सचिव (अब वित्त सचिव) हसमुख अधिया ने कहा, “फॉर्म ३ बी का भरा जाना, ३१ मार्च २०१८ तक जारी रहेगा”। “हम उन व्यवसायों के लिए इस फॉर्म को और भी आसान कर देंगे जो रिटर्न फाइल करते हैं लेकिन उनपर कोई कर दायित्व नहीं है। हमने पाया है कि इस तरह के ३० से ४० प्रतिशत व्यवसाय हैं”।
आइए अब एक मौलिक सवाल पर आते हैं। क्या मध्यम वर्ग जीएसटी से परेशानी महसूस कर रहा है?
आप कमेन्ट सेक्शन में इसका जवाब दे सकते हैं। मेरा स्पष्ट जवाब ‘नहीं’ है। मैं भी, आप में से अधिकांश लोगों की तरह, एक मध्यम वर्ग के परिवार से हूँ। मैं सिगरेट, गुटका, पान मसाला की कीमतों को बढ़ता हुआ देख के खुश हूं। बस थोड़ा सा समय में पीछे जाने की आवश्यकता है, जीएसटी के लागू होने से पहले, मध्यम वर्ग असंख्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों से परेशान था, जिनमें से बहुत से करों के बारे में उसे पता तक नहीं था कि वह किस चीज़ के लिए भुगतान कर रहा है। पुरानी कर प्रणाली लोगों को करों में भ्रष्टाचार करने का मौका देती थी और इस भ्रष्टाचार की रीढ़ को विमुद्रीकरण, जीएसटी और आधार कार्ड के तिहरे हमले ने तोड़ दिया है। इसके अंतिम लाभार्थी आपके जैसे ईमानदार नागरिक है जो नियमित कर का भुगतान करते है।
जीएसटी रजिस्ट्रेशन के साथ अनिवार्य आधार लिंकिंग ने कई नए लोगों को टैक्स के जाल में ला दिया है।जो अन्यथा मिडल क्लास की व्यय पर जुआ खेलने के बाद सिस्टम को दुह रहे थे।
यह संतोषजनक है कि जीएसटी बेईमान और भ्रष्ट को अपनी आय रिटर्न को नियमित रूप से जमा करने के लिए मजबूर कर रहा है। कुल करों का भार औसत आज ३० जून की तुलना में काफी कम है! विपक्षी अलग-अलग मामलों को चुनते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं। हालांकि वे अपनी इन गतिविधियों को नहीं रोकेंगे, लेकिन यह हमारे ऊपर निर्भर है की हम इसे किस तरह से देखते है!
परन्तु सरकार को यह भी समझना चाहिए कि हमारी आबादी के आधे लोग यानि की महिलाओ के लिए सैनिटरी नैपकिन जीवन की एक आवश्यकता हैं और ऐसी जरुरी वस्तु पर १२% कर रखने की कोई वजह नहीं सोच सकता। मुझे उम्मीद है कि ये अगले महीने तक जीएसटी कौंसिल सदस्य इस पर विचार करेंगे।
हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि जीएसटी एक संरचनात्मक सुधार है और यह अभी भी प्रारंभिक चरण में है। जब कांग्रेस जैसी पार्टियां सरकार पर हमला करती हैं, ये कहते हुए कि कीमतें पहली बार में सही क्यों नहीं निर्धारित की तो उन्हें याद रखना चाहिए कि जब परीक्षण के परिणाम संतोषजनक नहीं होते हैं, तब उपकरण और परिस्थितियों में थोडा बहुत बदलाव कर के फिर से परीक्षण करते हैं ताकि इसके अंतिम परिणाम पिछले संस्करण की तुलना में बेहतर हों। पूरा विश्व ऐसे ही काम करता है, सभी नतीजों पर पहले से विचार कर उन्हें एक बार में ही पूर्णता के साथ लागू नहीं किया जा सकता है।