कांग्रेस पार्टी के सदस्य ने सैक्रेड गेम्स नामक टीवी सीरिज के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई है। शिकायत में कहा गया है कि सीरीज के एक सीन में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के ऊपर अभद्र टिप्पणी की गयी है जिसमें राजीव गांधी को ‘फट्टू’ कहा गया है। सैक्रेड गेम्स एक टेलीविज़न सीरिज है जिसके निर्देशक अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवाने हैं। इस सीरिज का वो पहला एपिसोड जिसमें राजीव गांधी के लिए अपमानजनक टिप्पणी की गयी है नेटफ्लिक्स पर 6 जुलाई को रिलीज हुआ था। नेटफ्लिक्स की ये सीरीज विक्रम चंद्रा के सैक्रेड गेम्स नाम के नॉवल पर आधारित है जोकि 2016 में पब्लिश हुई थी।
कांग्रेस कार्यकर्ता राजीव सिन्हा द्वारा कोलकाता में इस मामले को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। सिन्हा नगरपालिका चुनावों में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार होने का भी दावा कर रहे हैं। इस शिकायत में नवाजुद्दीन और शो के निर्माता और नेटफ्लिक्स जोकि फिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों की स्ट्रीमिंग के लिए एक ऑनलाइन मंच प्रदान करता है, इन सभी का नाम शामिल है। इस शिकायत ने कांग्रेस के अंदर के पाखंड को दर्शाया है जो हमेशा ही राष्ट्र में अभिव्यक्ति की आजादी के खतरे की बात करती है। पार्टी के शशि थरूर और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता अक्सर ही मोदी सरकार में अभिव्यक्ति की आजादी को खतरे का रोना रोते हैं।
Congressulations, #SacredGames! pic.twitter.com/FIpZxyoc6k
— Shiv Aroor (@ShivAroor) July 10, 2018
कांग्रेस पार्टी हमेशा ही खुद को अभियक्ति की आजादी का रक्षक कहती है और खुद ही खुली सोच और बोलने की आजादी को दबाने की कोशिश करती है। स्कूल के पाठ्यक्रम से मिथक को बढ़ावा देने, इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने और उन नेताओं का गलत चित्रण करने तक कांग्रेस ने उन सभी के खिलाफ अपना रुख स्पष्ट किया है जो कांग्रेस की विचारधारा के विपरीत थे। मिथक को बढ़ावा देने की प्रक्रिया और अभिव्यक्ति की आजादी और अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करने की आजादी पर दबाव बनाने की प्रक्रिया कांग्रेस के पहले प्रधानमंत्री से ही शुरू हो गया था। उन्होंने खुद को ही भारत रत्न से नवाजा और अपने जन्मदिन को बल दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी। देश के संविधान में पहला संशोधन 1951 में उन्हीं की सरकार द्वारा किया गया था जिसमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया था। नेहरू गांधी की बेटी इंदिरा गांधी के शासन के दौरान भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अपने निचले स्तर पर पहुंच गया था। उन्होंने अपने शासन के दौरान 19 महीनों के लिए आपातकाल लगाया था। विपक्षी नेताओं को जेल भेज दिया गया था, समाचार पत्रों को तत्कालीन सरकार के खिलाफ कुछ भी प्रकाशित करने की मंजूरी नहीं थी और आम जनता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया था। जिस ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ देश 200 वर्षों तक अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था वैसा ही कुछ इंदिरा गांधी के शासन में दिखाई दे रहा था। नेहरु-गांधी परिवार के अगले सदस्य थे राजीव गांधी जो अपनी माँ की मृत्यु के बाद देश के प्रधानमंत्री बने थे वो भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में बहुत सहिष्णु नहीं थे। उन्होंने सलमान रुश्दी के उपन्यास ‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर बैन लगा दिया था क्योंकि इस किताब में इस्लाम से जुड़े कुछ ऐसे तथ्यों को पेश किया था जो इस्लाम की छवि को नकारात्मक रूप में था।
ऐसा ही कुछ शाह बानों मामले में भी हुआ था जिसमें कांग्रेस पार्टी ने पूर्ण बहुमत से एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलटकर मुस्लिम महिला (तालाक अधिकार सरंक्षण) कानून को आसानी से पास कर दिया। इस कानून को लाया गया क्योंकि राजीव गांधी अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण करना चाहते थे चाहे इससे मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों की ताक पर हो। सोनिया गांधी जो दो दशक से कांग्रेस पार्टी को नियंत्रण कर रही थीं वो भी इसी श्रेणी में आती हैं। जब राजीव गांधी संस्थान विवेक के निदेशक देवराय ने शेषाद्री चारी को सेमीनार के लिए बुलाया था तब उन्हें सोनिया गांधी के निवास से भाषण की प्रतिलिपि भेजने के लिए एक फ़ोन आया था। इसके बाद शेषाद्री चारी को इस सेमीनार में शामिल होने से रोक दिया गया क्योंकि वो आरएसएस से जुड़ी एक पत्रिका ‘आयोजक’ थे।
जब अभिव्यक्ति की आजादी की बात आती है तब नेहरु-गांधी परिवार का इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है। हाल ही में कांग्रेस के एक सदस्य द्वारा नेटफ्लिक्स और सैक्रेड गेम्स के खिलाफ दर्ज कराई गयी प्राथमिकी उनकी पार्टी द्वारा निर्धारित ट्रेंड का ही एक हिस्सा है जो अभिव्यक्ति की आजादी की कितनी परवाह करती है उसे साफ़ दर्शाता है।