आरोपी खुले आम आतंक मचाएं तो सरकार की आलोचना और अगर सरकार और पुलिस उनपर नकेल कसे तो और भी ज्यादा आलोचना। सूबे में कोई अपराधी बड़े अपराध को अंजाम दे बैठे, तो उसके पीछे सरकार की नाकामी मानी जाएगी और अगर अपराधियों के होश ठिकाने लगाने की कवायद करें, तो भी सरकार की आलोचना। कोई अपराधी खुलेआम घूमें तो भी बुराई और अगर उसे अपराध से तौबा कराने के लिए हथकंडे अपनाए जाएं तो और भी आलोचना।
चौंकिए मत, हम आपको बिल्कुल सही स्थिति से परिचित करवा रहे हैं। ये स्थिति कहीं और की नहीं बल्कि जनसंख्या की दृष्टिकोण से देश का सबसे बड़ा और विश्व का पांचवा सबसे बड़ा देश कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश की है।
दरअसल प्रदेश में जब से योगी सरकार आई है, अपराधी या तो अपराध की बजाय मेहनत करके रोजी-रोटी कमाने भाग निकले हैं या फिर जेल में हैं। इसके अलावा अपराधियों के पास कोई तीसरा विकल्प नहीं बचा है। अगर कोई तीसरे विकल्प यानी ‘सूबे में रहकर अपराध को अंजाम देने’ का प्रयास कर रहा है तो उसपर योगी की पुलिस मुसीबत बनकर टूट रही है लेकिन योगी के इस कदम की तारीफ करके हौसला अफजाई करने की बजाय इसकी आलोचनाएं हो रही हैं। एक ओर जहां सत्ता खोने के गम में डूबी विपक्षी पार्टियां, मीडिया और मानवाधिकार संगठनों ने सरकार को बदनाम करने के लिए तमाम अफवाहें उड़ानी शुरू कर दी हैं तो वहीं न्यायालय ने भी नाराजगी व्यक्त करते हुए जवाब मांगा है। बहरहाल, सांचे को आंच क्या। योगी सरकार ने न्यायालय में एक-एक सवालों का बेबाकी से स्पष्ट जवाब दिया है।
दरअसल, एक एनजीओ ने उच्चतम न्यायालय में अपील किया कि योगी सरकार में हुए एनकाउंटर्स की सीबीआई या एसआईटी से जांच कराई जाए। इस पर उच्चतम न्यायालय ने पहले तो एनजीओ से पूछा कि इस मामले में आपने इलाहाबाद उच्चन्यायालय का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया? उसके बाद न्यायालय ने एनजीओ से ये भी पूछा कि आप अंतहीन जांच (रोविंग इन्क्वॉयरी) क्यों कराना चाहते हैं?
शीर्ष न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से भी इस मामले में जवाब देने को कहा। दरअसल, एनजीओ ने अपनी याचिका में इस बात का आरोप लगाया था कि पुलिस अल्पसंख्यकों को ही चुन-चुनकर निशाना बना रही है। जवाब में योगी सरकार ने पूरे आंकड़ो सहित न्यायालय को स्पष्ट रुप से बताया कि ये आंकड़े न्यायालय और जनता के बीच गलत संदेश भेजने मात्र के लिए पेश किए गए हैं। योगी सरकार ने बताया कि एनजीओ द्वारा न्यायालय में केवल ऐसे आंकड़े चुनकर पेश किए गए हैं, जो अल्पसंख्यकों के हैं। जबकि पुलिस में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक देखे बगैर अपराधियों का एनकाउंटर किया गया है। योगी सरकार ने बताया कि न्यायालय में पेश करने के लिए 14 ऐसे आंकड़ों को मनमाने ढंग से उठाया गया जिसमें 13 एनकाउंटर अल्पसंख्यकों मात्र का दिखाया जा सके जबकि पुलिस ने जिन 48 एनकाउंटर किए हैं, उनमें से 30 एनकाउंटर तो बहुसंख्यकों के हैं। इस बात को न्यायालय से क्यों छिपाया गया।
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शीर्ष न्यायालय में सरकार की ओर से पेश वकील सुरेश सिंह बघेल के जरिए दाखिल किए गए रिपोर्ट में सरकार ने यह भी बताया कि यूपी पुलिस ने 20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच कुल 3 लाख से भी ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार किया है। कई पुलिस कार्रवाई में तो आरोपियों ने गिरफ्तारी का बेहद कड़ा विरोध किया और पुलिस कर्मियों पर गोलीबारी तक की। जिसके कारण पुलिस को आत्मरक्षा में कार्रवाई करनी पड़ी। रिपोर्ट में बताया गया, “20 मार्च 2017 से 31 मार्च 2018 के बीच कुल 3,19,141 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया जो पुलिस कार्रवाई में 48 लोगों के मारे जाने के ठीक विपरीत है। ये अपने आप में इस तथ्य की पुष्टि करता है कि पुलिस कर्मियों की मंशा केवल आरोपियों की गिरफ्तारी है।’’
सरकार ने माननीय न्यायालय को बताया कि सरकार ने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले सभी आवश्यक नियमों का पालन किया है। इनमें प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर मानवाधिकार आयोग को सूचित किए जाने जैसे कदम शामिल हैं।
बता दें, इससे पहले यूपी पुलिस ने एक एनकाउंटर करने से पहले मीडिया को बुलाकर लाइव एनकाउंटर करके सबको चौंको दिया था। पुलिस और सरकार की मानें तो एनकाउंटर को लेकर माननीय न्यायालय, मीडिया, विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों समेत तमाम तरफ से हमारे ऊपर अनावश्यक दबाव बनाया जा रहा था। सबको वास्तविक स्थिति की भयावहता से रूबरू कराने के लिए हमें ऐसा कदम उठाना पड़ा। वीडियो में देखा जा सकता है कि इस एनकाउंटर में 2 साधुओं की हत्या के आरोपी दो अपराधी किस तरह से पुलिस पर ताबड़तोड़ फायरिंग पर फायरिंग कर रहे हैं। दोनों ही आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। पुलिस को पता था कि इनके खिलाफ कार्रवाई होते ही विपक्षी दलो और मानवाधिकार संगठनों समेत कई लोगों का विलाप शुरू हो जाएगा। इसलिए पुलिस ने इस घटना को लाइव दिखाना उचित समझा।
दरअसल योगी आदित्यनाथ कई मंच से स्पष्ट रुप से कह चुके हैं कि हमारी सरकार और पुलिस अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक देखकर राज्य में कोई योजना या नियम-कानून लागू नहीं करती। जो भी अपराध में संलिप्त होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक। कानून और संविधान सबके लिए एक समान है।