लंबे समय से चले आ रहे अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई शुरू तो हुई लेकिन आज भी राम भक्तों को कोर्ट से निराशा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज मामले की सुनवाई नहीं होगी बल्कि सिर्फ इसकी तारीख तय की जाएगी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि आज हम इस मसले पर सुनवाई नहीं करेंगे बल्कि इसकी समयसीमा तय करेंगे। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की अगवाई वाली पांच सदस्यीय नई बेंच सुनवाई कर रही थी जिसमें चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल हैं। ये सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर होनी है।
बता दें कि आज सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष से हरीश साल्वे, सीएस वैद्यनाथन और रंजीत कुमार, उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से तुषार मेहता और मुस्लिम पक्ष से जफरयार जिलानी और राजीव धवन मौजूद हैं। सुनवाई के दौरान राजीव धवन ने बेंच में शामिल जस्टिस यूयू ललित पर सवाल उठाये और कहा कि वे 1994 में कल्याण सिंह के लिए पेश हो चुके हैं। वहीं, हरीश साल्वे ने कहा कि उन्हें जस्टिस यू यू ललित के बेंच में होने से कोई आपत्ति नहीं है। धवन की आपत्ति के बाद बेंच में शामिल जस्टिस यू यू ललित ने सुनवाई से खुद को अलग करने के लिए कहा है। बता दें कि कल्याण सिंह 6 दिसंबर 1992 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में कल्याण सिंह एक अहम कड़ी हैं।
इससे पहले 29 अक्टूबर को सुनवाई होनी थी तब सुप्रीम कोर्ट ने इसे 4 जनवरी तक के लिए टाल दिया था। 4 जनवरी को एक बार फिर से कोर्ट ने 10 जनवरी तक के लिए सुनवाई को टाल दिया और आज कोर्ट से राम भक्तों को फिर से निराशा ही हाथ लगी क्योंकि एक बार फिर से सुनवाई की सिर्फ तारीख ही तय की गयी। अब सुप्रीम कोर्ट ने 29 जनवरी को सुनवाई करेगा। इस मामले पर सुनवाई नयी बेंच करेगी। मतलब की 29 को शायद सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला जल्द ही सुना सकता है। वहीं, कोर्ट के इस फैसले से राम भक्त निराश हो गये हैं अब सभी की नजरें केंद्र सरकार पर टिक गयी हैं क्योंकि अब केंद्र सरकार राम मंदिर मामले में अध्यादेश लाकर राम मंदिर निर्माण को हरी झंडी दे सकती है।
बता दें कि 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई में पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना हक विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले पर को बरकरार रखा था। पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस भूषण ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि पुराना फैसला उस वक्त के तथ्यों के मुताबिक था। इस्माइल फारूकी का फैसला मस्जिद की जमीन के मामले में था। अपने फैसले में जजों ने कहा था, “मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अटूट हिस्सा नहीं। पूरे मामले को बड़ी बेंच में नहीं भेजा जाएगा।” जस्टिस भूषण ने अपने फैसले में आगे कहा था, “सभी धर्मों और धार्मिक स्थानों को समान सम्मान देने की आवश्यकता है। अशोक के शिलालेख दूसरों के विश्वास के लिए सहिष्णुता का प्रचार करते हैं।“ इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि 29 अक्टूबर से फास्ट ट्रैक कोर्ट में राम मंदिर मामले पर सुनवाई शुरू होगी लेकिन ज चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने अगले साल जनवरी के लिए टाल दिया था। अब इस ममाले की सुनवाई जनवरी के आखिरी सप्ताह में होगी। ऐसे में राम निर्माण के लिए केंद्र सरकार से मामले में अध्यादेश लाने की मांग और तेज हो गयी। वहीं कुछ लोग अब कोर्ट के फैसले को बीजेपी पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल करेंगे। आम चुनाव पास है और अगर राम मंदिर का विवाद बीजेपी अपने मौजूदा शासन में नहीं सुलझा पायी तो उसे अगले साल भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने राम मंदिर पर अध्यादेश लाने के संकेत दिए थे और ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार इसकी तैयारी भी कर रही है। इस संबंध में बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने तथा राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी भी लिखी थी और कहा था कि राम मंदिर मुद्दे को कानून बनाकर सुलझाया जा सकता है और केंद्र सरकार को इसके लिए जल्द ही अध्यादेश लाने की जरूरत है। अब देखना ये होगा कि केंद्र सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है क्योंकि केंद्र सरकार का हर कदम अगले लोक सभा चुनाव के लिए एक मजबूत नींव तैयार करेगा और एनडीए सरकार देश की जनता से किये अपने वादे को भी पूरा करेगी। हालांकि, किसी भी तरह की जल्दबाजी से एनडीए सरकार बच रही है क्योंकि ये लोगों की आस्था और उनकी धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है लेकिन ये बात विपक्ष को समझ नहीं आ रही वो मुद्दे को बार बार सांप्रदायिक हिंसा को और देश की जनता को बांटने के कर रहे हैं।