एक बार फिर से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सियासत तेज हो गयी है। सभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं लेकिन इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई टाल रही है। वहीं हिंदू संगठन से लेकर देशभर में राम मंदिर निर्माण आये दिन चर्चा का विषय बना हुआ है। 28 साल पहले भी कुछ इसी तरह से राम मंदिर के मामले ने तूल पकड़ा था तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। वीएचपी के आह्वान पर साल 1990 के अक्टूबर महीने में लाखों कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए थे और इन सबका उद्देश्य राम मंदिर का निर्माण करना था। 30 अक्टूबर 1990 को भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ अयोध्या पहुंचने लगी तो प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया और पुलिस ने बाबरी मस्जिद के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर दी थी। इसी दिन अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाई गयी थी जिसमें कारसेवकों के मरने की संख्या सिर्फ 18 बताई गयी थी। हालांकि, अब जो सच सामने आया है उसने मुलायम सिंह क्रूर शासन की पोल खोलकर रख दी है।
दरअसल, रिपब्लिक भारत इन्वेस्टीगेशन नाम के एक टीवी चैनल ने इसपर एक स्टिंग ऑपरेशन किया और ये जानने की कोशिश की कि उस दिन कितने लोग मारे गये थे और वास्तव में उसदिन क्या हुआ था। इस स्टिंग ऑपरेशन में जो सामने आया उसने एक बात तो साफ़ कर दी कि मुलायम सिंह ने पूरी योजना के साथ हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं पर न सिर्फ बड़ा अघात किया बल्कि 1984 में हुए सिख नरसंहार और जलियांवाला बाग हत्याकांड की तरह ही बड़े पैमाने पर नरसंहार को अंजाम भी दिया था।
राम जन्मभूमि थाने के तत्कालीन एसएचओ वीर बहादुर सिंह से जब रिपब्लिक भारत इन्वेस्टीगेशन ने सवाल करते हुए कहा, “आपसे एक बात जाननी थी कि जिस दिन ये घटना हुई मतलब कि जिस दिन बाबरी मस्जिद ढाई गयी उसदिन के बाद से सरकार ये कहती है कि सिर्फ 18 कारसेवकों पर ही गोली चली थी।” टीवी चैनल से बातचीत में एसएचओ वीर बहादुर सिंह ने कहा, “देखिये उस दिन विदेश तक से पत्रकार आए थे। डीएम ने कहा कि जाकर एसओ से बात करिए। कैमरा लेकर वो सब बात कर रहे थे तो उसमें जो स्टेटमेंट सरकार को दिया गया था उसमें उन्हें हमने आठ लोगों की मौत और 42 लोगों के घायल होने का आंकड़ा बताया था। वहां 10 से 15 दिनों पर एक एक लाश बरामद होती थी, गावों से और अन्य क्षेत्रों से लोग आकर अपनों के बारे में पूछ रहे थे लेकिन सरकार को रिपोर्ट देनी थी तो हम गये मुर्दाली घाट पर। वहां हमने पूछा कि कितनी लाशें हैं जो दफनाई जाती हैं और कितनी लाशों का दाह संस्कार किया गया है, तो शमशान घाट पर बैठने वाले ने बताया कि 15 से 20 लाशें दफनाई जाती हैं। दरअसल, जो बांस आता है हम उसे ले लेते हैं और उसका इस्तेमाल अन्य वस्तुओं के निर्माण के लिए करते हैं और इसी आधार पर सरकार को अपना बयान दिया था। सभी लाशें कारसेवकों की थीं। उस गोलीकांड में कई लोग मारे गए थे। आंकड़े तो नहीं पता हैं, लेकिन काफी संख्या में लोग मारे गए थे।“
इसके बाद इस टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन की टेप को 30 अक्टूबर 1990 की एक वीडियो फुटेज से मिलाया जब कारसेवकों पर पुलिस ने बर्बरता से गोली चलाई थी। इस फुटेज से साफ़ था कि उस दिन कारसेवकों पर बर्बरता से गोलियां चलाई गयी थी और भारी संख्या में उनकी मौत हुई थी। उस वक्त गोली कारसेवकों को डराने के लिए नहीं बल्कि जानबूझकर उनकी हत्या के लिए चलाई गयी थी। एसएचओ वीर बहादुर सिंह से जब सरकारी आंकड़ों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “उस दिन भारी संख्या में कारसेवकों की मौत हुई थी। उसका हिसाब नहीं है। कई लोग पानी में गिर गये कई दफना दिए गये। दोनों तरफ से रब्बर की गोलियां चली तो उस संख्या को बता पाना मुश्किल है। सरकारी रिपोर्ट फर्जी है। सिर्फ 42 लोग घायल दिखाए गये। जबकि कई लोग घायल हुए थे।”
ऐसा लगता है कि मुलायम सिंह यादव ने पहले से ही पूरी योजना बनाई थी और कारसेवकों की हत्या की साजिश रची। साजिश के तहत उनपर गोलियां चलवाई और उन्हें अयोध्या की जमीन में दफन करवा दिया ताकि दुनिया इस नरसंहार के बारे में पता न चल सके और सरकारी आंकड़े सिर्फ 18 दिखाए गये।
जब अपनों की बांट ढूँढ़ते हुए लोग अयोध्या पहुंचते थे पुलिस उन्हें यही कहती थी कि जिनकी लाशों को दफनाया गया वो उनके परिवार के नहीं है। पूर्व एसएचओ ने कहा, “हमें ऊपर से आदेश था इसलिए हम उन्हें बताते थे कि ये लाशें (जिन्हें दफनाया गया है) उनके परिवार के सदस्यों की नहीं हैं।“
उस समय लुटियंस मीडिया ने इस घटना पर मुलायम से सवाल करने से मना कर दिया लेकिन कुछ मीडिया पत्रकारों ने इसपर निष्पक्ष होकर पत्रकारिता की। जब मुलायम से सवाल किया गया तो मुलायम यही कहते रहे कि “हमने देश की एकता के लिए गोली चलवाई थी। आज जो देश की एकता है उसी वजह से है। हमें इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षाबल मारते।“ उन्होंने कभी नहीं स्वीकार कि बड़े पैमाने पर नरसंहार को उन्हीं के आदेश पर अंजाम दिया गया था। रिपब्लिक ने अपने इस जांच में पाया कि मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली सरकार में पुलिस ने सिविल राइट्स का हनन किया और लोकतंत्र पर वार किया था। फर्जी गवाह बनाये गये और फर्जी रिपोर्ट देश और दुनिया के सामने रखी गयी। इस गोलीकांड के बाद हुए विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह बुरी तरह चुनाव हार गए। यही नहीं उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा जाने लगा क्योंकि उन्होंने कार्स्व्कों पर गोलियां चलवाई थी।
जिस तरह के नरसंहार को मुलायम सिंह यादव ने 1990 में अंजाम दिया था वो शर्मनाक था उन्होंने हिंदुओं को अपनी भक्ति भावना के लिए मौत की नींद सुला दी गयी। ऐसे में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने के मामले में मुलायम सिंह को कड़ी सजा होनी चाहिए उन्होंने न सिर्फ हिंदुओं पर गोलियां चलवाई बल्कि मानवता की भी हत्या की।