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शिवसेना के इतिहास में पहली बार एक ‘ठाकरे’ मुख्यमंत्री बनने के लिए चुनावी मैदान में उतरा है

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
30 September 2019
in चर्चित, राजनीति
शिवसेना

PC: DT

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महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये शिवसेना ने एक अहम निर्णय लिया है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सुपुत्र और पार्टी के युवा विभाग यानि ‘युवा सेना’ के अध्यक्ष आदित्य ठाकरे इस बार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेने वाले हैं और वे मुंबई शहर के वर्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। इसकी पुष्टि करते हुये न्यूज़ एजेंसी ANI ने ट्वीट किया –

Shiv Sena's Aditya Thackeray to contest from Worli Assembly seat in Mumbai. (File pic) #MaharashtraAssemblyPolls https://t.co/gZJXUnmYnT pic.twitter.com/tIhgodOGMj

— ANI (@ANI) September 29, 2019

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हालांकि यह कोई त्वरित निर्णय नहीं है। इसका संकेत रविवार को ही मिल गया था। जब मुंबई में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने बताया कि उन्होंने बालासाहेब ठाकरे को जुबान दी थी कि एक दिन आएगा जब शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा। उद्धव के इस बयान के अगले ही दिन शिवसेना ने उम्मीदवारों की जो सूची जारी की उसमें वर्ली सीट से आदित्य ठाकरे का नाम घोषित कर दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि शिवसेना न सिर्फ भाजपा के साथ गठबंधन में फ्रंट फुट पर खेलना चाहती है, बल्कि वह अपने परिवार के नए चेहरे को आगे रखकर राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाना चाहती है।

इस निर्णय से महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक अहम परिवर्तन होने वाला है, और वो यह कि कभी राजनीति में प्रतिनिधित्व न करने की ठाकरे परिवार की परंपरा भी इस निर्णय के साथ समाप्त हो जाएगी। ऐसा पहली बार होगा कि जिस पार्टी के संस्थापक ने बिना चुनाव लड़े पूरे महाराष्ट्र पर एकछत्र राज किया, अब उसी का वंशज लोकतान्त्रिक तरीके से अपना कद बढ़ाने के लिए चुनावी दंगल में उतरेगा।

परंतु ठाकरे परिवार ने ऐसा निर्णय क्यों लिया? बाल ठाकरे का तो मानना था कि जनता की सेवा सर्वोपरि है, उसके बाद राजनीति आती है। ऐसे में राजनीति में सक्रिय होने का अर्थ होता बाला साहेब के विचारों को ताक पर रखकर केवल सत्ता के लिए काम करना, जिसे जीते जी उन्होंने कभी नहीं स्वीकार किया। यही बात उनके कई भाषणों में साफ झलकती थी।

1966 में जब विजयदशमी के अवसर पर शिव सेना की आधिकारिक रूप से स्थापना हुई थी, तब एक विशाल रैली में बालासाहेब ने कहा था, “राजनीति मेरे लिए चर्म रोग के समान है और शिवसेना की गतिविधियों में 20 प्रतिशत राजनीति और 80 प्रतिशत समाजसेवा होगी”। इसी कारण बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने कभी भी अपने राजनीतिक करियर में कोई चुनाव नहीं लड़ा, और न ही उन्होंने कोई राजनीतिक पद ग्रहण किया। इसीलिए वर्षों से ठाकरे परिवार की छवि समाज में काफी साफ़ रही है और उन्हें जनता का अपार प्रेम भी मिला है। अपने इन्हीं आदर्शों पर चलते हुये बाल ठाकरे ने कई उम्मीदवारों को कई राजनीतिक पदों पर बिठाया, ताकि वे बिना किसी अवरोध के अपने उद्देश्य को पूरा कर सकें।

शीर्ष पद पर कोई भी विराजमान हो, परंतु असली ताकत तो ठाकरे परिवार, विशेषकर बालासाहेब ठाकरे के हाथ में होती थी। बिना एक चुनाव लड़े ठाकरे परिवार ने समूचे महाराष्ट्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।

इसका प्रारम्भ हुआ था 1995 में, जब भारी जन समर्थन के साथ शिवसेना और भाजपा की गठबंधन सरकार ने महाराष्ट्र में सरकार बनाई थी। तब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर बालासाहेब ठाकरे के विश्वासपात्र और शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर गजानन जोशी ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। मनोहर जोशी के चार वर्ष के कार्यकाल से ही साफ पता चलता है कि ठाकरे परिवार का ‘रिमोट कंट्रोल’ किस प्रकार से चलता था।

आउटलुक और द हिन्दू समेत कई मीडिया रिपोर्ट्स ने तो यहां तक खबर छापी थी कि सीएम के पद पर मनोहर जोशी बैठे हैं, और सत्ता को कोई और [ठाकरे परिवार] नियंत्रित करता है। 1999 में द हिन्दू के मैगज़ीन फ्रंटलाइन के अनुसार मनोहर जोशी केवल चेहरा थे, असली सत्ता तो ठाकरे परिवार के हाथ में थी। यही नहीं, ये भी कहा जाता है कि मनोहर जोशी को इसलिए भी हटाया गया था, क्योंकि वे राज ठाकरे और स्मिता ठाकरे के चहेते माने जाने वाले नारायण राणे की राह में रोड़ा प्रतीत हो रहे थे।

इस रिमोट कंट्रोल शासन की स्थिति ऐसी थी कि राज्य में सुशासन के लिए अगर कोई भी कदम उठाया जाता था तो पूरा श्रेय बालासाहेब को जाता था। परंतु यदि राज्य में स्थिति सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ होती थी तो उसका दायित्व सत्ता में आसीन शीर्ष नेताओं, मुख्य रूप से मनोहर जोशी को लेना होता था।

इसी कारण राज्य में जहां एक ओर एनडीए सरकार सुशासन के लिए प्रयासरत थी, तो वहीं अस्थिरता और उठापटक में भी कोई कमी नहीं थी, जिसके लिए प्रत्यक्ष रूप से ठाकरे परिवार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता था। राज्य में कोई भी उठापटक हो, भ्रष्टाचार हो, इसका दायित्व सीएम की कुर्सी पर बैठे नेता को लेना होता था। इसी कारण 1999 में मनोहर जोशी को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा और नारायण राणे ने उनकी जगह ली थी।

परंतु वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अब इस परंपरा में बदलाव लेना का दायित्व ठाकरे परिवार ने लिया है। अब आदित्य ठाकरे चुनावी मैदान में उतरने के लिए अपनी कमर कस रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी पर बैठने के संकेत भी दे चुके हैं। उन्होने इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान इस बात के भी संकेत दिया था कि वे केवल चुनाव जीतने के लिए ही नहीं, बल्कि सत्ता में उच्चतम पद प्राप्त करने के लिए भी इस बार चुनावी मैदान में उतरेंगे। अब आदित्य ठाकरे चुनाव जीतेंगे या नहीं ये तो भविष्य के गर्भ में है, परंतु एक बात तो तय है कि अब से महाराष्ट्र में किसी भी प्रकार की राजनीतिक उठापटक के लिए ठाकरे परिवार की जवाबदेही होगी।

Tags: उद्धव ठाकरेबाल ठाकरेमहाराष्ट्र चुनावशिवसेना
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