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केके मोहम्मद: जिसने उन वामपंथियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जो रामलला के अस्तित्व पर सवाल कर रहे थे

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
10 November 2019
in मत
केके मोहम्मद

PC: asianetnews

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9 नवंबर 2019 की तारीख का देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाना तय है। इसी तारीख को देश के करोड़ो हिंदुओं का इंतज़ार खत्म हुआ और सदियों पुराने बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद में कोर्ट का फैसला आया जिसमें विवादित स्थल को हिंदुओं को सौंपने का आदेश दिया गया। हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला archaeological survey of india की उस रिपोर्ट पर आधारित था, जो ASI ने वर्ष 2003 में विवादित स्थल पर खुदाई के बाद जुटाए गए सबूतों के आधार पर तैयार की थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में archaeological survey of india की रिपोर्ट को आधार बनाकर कहा गया कि विवादित स्थल की खुदाई में किसी इस्लामिक ढांचे के होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं और बाबरी मस्जिद को खाली जगह पर नहीं बनाया गया था। साथ ही चीफ जस्टिस ने यह भी साफ किया कि ASI द्वारा खुदाई में इस बात के सबूत मिले हैं कि हिन्दू वर्ष 1856 से पहले इस जगह प्रार्थना किया करते थे। हालांकि, विडम्बना यह है कि जिस ASI की रिपोर्ट ने आज अयोध्या में राम मंदिर का रास्ता साफ किया है, एक वक्त उसी ASI और उसके पूर्व चीफ केके मुहम्मद के खिलाफ देश के लेफ्ट लिबरल गैंग ने जमकर अपना एजेंडा चलाया था और देश के कुछ तथाकथित इतिहासकारों ने पूर्व ASI चीफ केके मुहम्मद को संघी और भाजपा का एजेंट बता डाला था।

बता दें कि केके मुहम्मद पूर्व ASI चीफ रह चुके हैं और जब बाबरी मस्जिद विवाद के बाद वर्ष 1976-77 में पहली बार विवादित स्थल पर खुदाई हुई थी, तो केके मुहम्मद प्रोफेसर बीबी लाल के साथ बतौर ट्रेनी खुदाई स्थल पर अकेले मुस्लिम व्यक्ति मौजूद थे। वर्ष 1990 में विवादित स्थल पर खुदाई को लेकर उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक लेख भी लिखा था, जिसमें उन्होंने लिखा था ‘मैंने विवादित स्थल पर जाकर खुद उन स्तंभो को देखा था, जो खुदाई के दौरान मिले थे’। इसके बाद वर्ष 2016 में केके मुहम्मद ने इसी मुद्दे पर एक किताब लिखी जिसका शीर्षक था ‘मैं एक भारतीय’। इस किताब में केके मुहम्मद ने लिखा था ‘जो कुछ मैंने जाना और कहा है, वो ऐतिहासिक सच है। हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे। सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे। ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे। गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं, जो मंदिर में मिलते हैं’।

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केके मुहम्मद की इस किताब से यह स्पष्ट था कि ASI को खुदाई में विवादित मस्जिद के नीचे मंदिर होने के सबूत मिले थे। हालांकि, इसके बावजूद ASI पर तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों ने झूठा होने का आरोप लगाया और ASI पर संघ के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया। इसके बाद वर्ष 2003 में ASI ने फिर एक बार विवादित स्थल की खुदाई की थी जिसके बाद तैयार की गयी रिपोर्ट में ASI द्वारा यह दावा किया गया कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे मंदिर के ढांचे मिले हैं। इसके बाद archaeologist सुप्रिया वर्मा और जया मेनन ने ASI पर खुदाई के दौरान नियमों की अवहेलना का आरोप लगाया और कहा कि ASI द्वारा जिस तरीके से सबूत जुटाए जा रहे हैं, वह अवैध है। बता दें कि उस वक्त सुप्रिया वर्मा जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में archaeology की प्रोफेसर थीं और जया मेनन शिव नादर यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री डिपार्टमेन्ट के हेड थे। लिबरल गैंग के इन सदस्यों ने तब यह आरोप लगाया था कि खुदाई में ऐसा कुछ भी नहीं मिला है जो यह साबित करता हो कि विवादित ज़मीन पर कभी मंदिर हुआ करता था, और ASI केंद्र की NDA सरकार के दबाव में काम कर रहा है।

लेफ्ट लिबरल गैंग के इसी एजेंडे का पर्दाफाश करते हुए वर्ष 2016 के एक लेख में केके मुहम्मद लिखते हैं ‘JNU के इतिहासकारों ने केवल एक पक्ष को दिखाया, और दूसरे पक्ष को छुपा दिया। JNU के इतिहासकारों से मेरा मतलब है इरफान हबीब, रोमिला थापर, डीएन झा, बिपिन चंद्रा और RS शर्मा। ये सभी वे लोग हैं जो अयोध्या विवाद का हल कभी नहीं चाहते हैं। मैं ऐसे कई मुस्लिम संगठनों को जानता हूँ, जो इस विवाद का सौहार्दपूर्ण हल चाहते हैं’। आगे केके मुहम्मद लिखते हैं कि यह मामला कब का सुलझ गया होता अगर ये वामपंथी इतिहासकर मुस्लिम समुदाय को ना बरगलाते।

ज़ाहिर है कि स्वयं केके मुहम्मद भी इस बात से वाकिफ थे कि इन वामपंथी इतिहासकरों के लिए तथ्य से पहले उनकी विचारधारा आती है, और उसके लिए वे सच का भी गला घोटने को तैयार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर के अपने फैसले में यह साफ कर दिया है कि ASI की रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित थी और लिबरल गैंग ने ASI के खिलाफ केवल दुष्प्रचार किया था। यहाँ केके मुहम्मद की प्रशंसा करना अतिआवश्यक हो जाता है, क्योंकि वे 90 के दशक से ही कहते आ रहे हैं कि विवादित स्थल हिंदुओं को दी जानी चाहिए। उनके खिलाफ लेफ्ट लिबरल के प्रोपेगैंडे के बावजूद उन्होंने विचारधारा से परे हटकर तथ्यों के आधार पर बात की। शनिवार को जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया, तो केके मुहम्मद ने इस पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इससे बढ़िया फैसला कोई और नहीं हो सकता था। वहीं दूसरी तरफ उन सभी वामपंथी इतिहासकारों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए जिन्होंने दशकों तक अपने झूठ से भारत के मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच खाई खोदने का काम किया और सिर्फ अपनी विचारधारा से प्रेरित होकर झूठ के प्रसार में ही अपनी भलाई समझी।

Tags: अयोध्याएएसआईकेके मोहम्मदराम मंदिरसुप्रीम कोर्ट
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22 October 2025

गोरखपुर के पावन मंच से जब योगी आदित्यनाथ ने यह कहा कि राजनीतिक इस्लाम ने सनातन धर्म को सबसे बड़ा झटका दिया है, तो यह...

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