“भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है”। ये पंक्तीयां स्वर्गीय प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी वाजपेयी की हैं। आज उनका जन्म दिवस है और पूरा राष्ट्र उन्हें याद कर उनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए आभार जाता रहा है। अटल बिहारी उन नेताओं में से थे जिनके विपक्ष से भी मधुर संबंध थे इसलिए उन्हें अजातशत्रु कहा जाता है। आज कल देश में एक बहुत ही गरम माहौल है, राजनीतिक रूप से भी और सामाजिक रूप से भी। परंतु कारण एक ही है और वह नागरिकता संशोधन कानून और NRC। यह सब कवायद देश में रह रहे अवैध लोगों की पहचान करने के लिए और उन्हें वापस उनके देश भेजने के लिए प्रबंध करने के क्षेत्र में योजना बनाने के लिए है। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपने एक भाषण के दौरान घुसपैठियों को देश के लिए खतरा बताया था।
यह समस्या कोई नई समस्या नहीं है। स्वतन्त्रता के बाद और फिर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान यानि आज के बांग्लादेश से आए अवैध लोगों के कारण भारत में पहले से ही कई अवैध लोग रह रहे हैं। बांग्लादेश से सटे सीमा में किसी प्रकार का बाड़ न होने की वजह से आज भी लोगों का चोरी छिपे भारत आना जारी है।
इस समस्या पर अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद 2005 में उन्होंने संसद में कहा था, “पूरब में हमारे एक पड़ोसी देश से बड़ी संख्या में गैरकानूनी तौर पर लोग आ रहे हैं। सीमा पर उचित प्रबंध नहीं है…पूछताछ का भी तरीका नहीं है…अगर कोई रोजगार के लिए आए और कमाने के बाद वापस चला जाए वो एक अलग स्थिति है …ऐसे लोगों के लिए वर्क परमिट का भी इंतजाम किया जा सकता है।”
बांग्लादेश से चोरी छिपे आने वाले घुसपैठियों पर उन्होंने कहा था, “अगर कोई चोरी छुपे आये…नदियों के रास्ते से आए…झाड़ों के झुरमुट में छिप कर आएं…और लाखों की संख्या में आएं, ये गृह मंत्रालय की रिपोर्ट है…इस बात के लिए आवाज उठाना कि उनका आना रोका जाना चाहिए…सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसंख्या का स्वरूप बदल रहा है…असंतोष पैदा हो रहा है…तनाव बढ़ रहे हैं।”
उस वक्त उन्होंने लोगों की भावना को बयान करते हुए कहा था, “बांग्लादेश से हो रहे घुसपैठ को लेकर करीमगंज में एक विशाल रैली हुई थी और ये बीजेपी की रैली नहीं थी, बल्कि स्थानीय लोगों के गुस्से का प्रकटीकरण था। अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, “रैली में आए लोगों के मन में ये भाव था कि उनका आना रुकना चाहिए इतनी बड़ी संख्या में आना ये हमारे भविष्य को खतरे में डालेगा। मैंने उस दिन अपने भाषण में ये कहा था कि ये हिन्दू मुसलमान का सवाल नहीं है।”
उस दौरान सत्ताधारी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा था, “अब ये कहा जाए कि अल्पसंख्यकों के वोट का सवाल है…इस पर मत बोलो…चुप रहो…और पार्टियां क्यों नहीं बोलती है, मेरी समझ में नहीं आता है, कोई देश इस तरह से बड़े पैमान पर अवैध घुसपैठ को बर्दाश्त नहीं कर सकता है, ये ठीक है कि पूरी तरह से रोकना मुश्किल होता है…लेकिन ये समस्या है। और इसकी रोकथाम होनी चाहिए…और अगर हम आवाज उठाते हैं तो देश के हित में उठाते हैं…वोट के लिए नहीं उठाते हैं, ये बात लोगों के गले में उतरनी चाहिए।”
बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी ने इस भाषण से पहले भी वर्ष 2001 में बांग्लादेश के लोगों के लिए वर्क परमिट का प्रस्ताव रखा था जिसका असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने विरोध किया था।
यह एक सच्चाई है कि असम में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिकों की मौजूदगी से स्थानीय लोगों के मन में पिछले दो-ढाई दशकों से अपनी जातीय एवं आर्थिक स्थिति को लेकर आशंका और असुरक्षा का भाव रहा है। इस पृष्ठभूमि में ही उग्रवाद पनपा है, जिसने एक दौर में असमिया मध्यवर्ग में अपने लिए एक जगह भी बना ली थी। पर बाद के दिनों में उग्रवादियों के निहित स्वार्थ तथा अलगाववादी कारनामों को देखकर स्थानीय आबादी का उनसे मोहभंग होने लगा और आज उग्रवादी स्वयं अलगाव में पड़ते जा रहे हैं।
बांग्लादेशी नागरिकों के भारत में गैरकानूनी प्रवेश की समस्या के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का सांख्यिकीय आकलन है कि 1971से लगभग 90 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए भारत में आ चुके हैं। मोटे तौर पर हिसाब लगाया गया है कि लगभग 50 लाख विदेशी अकेले उत्तर पूर्व में मौजूद हैं, जिनमें अधिकतर असम के विभिन्न इलाकों में रह रहे हैं। हम समझ सकते हैं कि जिस इलाके में इतनी बड़ी संख्या में विदेशी घुसपैठिए उपस्थित हों, वहाँ के स्थानीय निवासियों के मन में कई तरह के संदेहों का पैदा होना स्वाभाविक है। उनमें अपनी आबादी, अपनी अस्मिता और स्थिति के खतरे में पड़ जाने की चिंता उत्पन्न हो सकती है। असम में ऐसा ही हुआ है। घुसपैठ की समस्या से सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में ही एक तीखा उद्वेलन पैदा हो गया था। इस समस्या के समाधान की माँग को लेकर 1978 में ऑलअसम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने एक आंदोलन शुरू किया था, जो आज भी कई रूपोंमें जारी है। इस बीच सरकार और आंदोलनकारियों के बीच कई समझौते भी हुए, पर समस्या ज्यों के त्यों बनी हुईहै।
अब जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम में NRC कराया गया तो उसमें भी कई गड़बड़ियाँ निकली जिसके बाद स्वयं सरकार को अब इस NRC को दोबारा करने और राष्ट्रीय स्तर पर करने के लिए सोचना पड़ रहा है।