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‘अफ्रीका से होगी चीन की विदाई’, अफ्रीका से चीन को बाहर निकालने के लिए भारत, अमेरिका और रूस आये साथ

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Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
2 August 2020
in अफ्रीका
अफ्रीका
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कोरोना के बाद अफ्रीका-चीन के संबंधों में तनाव देखने को मिल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर अफ्रीकी देश लगातार चीन पर उनका कर्ज़ माफ करने का दबाव बना रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में अपनी debt-diplomacy के तहत चीन ने अफ्रीकी देशों को बड़े पैमाने पर कर्ज दिये हैं। अभी चीन ना सिर्फ अफ्रीका (Africa) का सबसे बड़ा trading पार्टनर है, बल्कि अफ्रीका पर सबसे ज़्यादा कर्ज़ भी चीन का ही है। अभी अफ्रीका पर चीन का लगभग 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है। हालांकि, कोरोना के बाद की स्थिति को देखते हुए अब अमेरिका ने अफ्रीका में चीनी प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। दरअसल, SCMP की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने अफ्रीकी देश मोजाम्बिक में LNG गैस प्रोजेक्ट में निवेश करने का बड़ा फैसला लिया है, जिसे सीधे तौर पर चीनी विरोधी कदम माना जा रहा है।

पूरे विश्व में चीन विरोधी मानसिकता उफान पर है और अफ्रीका (Africa) भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में दशकों तक अफ्रीका को नकारने वाले अमेरिका ने अब आखिरकार अफ्रीका को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर लिया है। अब अमेरिका के Export-Import bank ने LPG प्रोजेक्ट के लिए 4.7 बिलियन डॉलर के निवेश को मंजूरी दी है। अमेरिका इसकी सहायता से अफ्रीकी देश में अपने उपकरण और अन्य मशीनरी भेजेगा, जिसे एक फ्रेंच कंपनी “टोटल” इस्तेमाल करेगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने रूसी और चीनी कर्जदाताओं को पछाड़कर यह प्रोजेक्ट जीता है। इस खबर के बाद आधिकारिक तौर पर अफ्रीका में भी अमेरिका-चीन की जंग शुरू हो चुकी है। अमेरिका द्वारा अफ्रीका में यह अब तक का सबसे बड़ा निवेश माना जा रहा है।

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अब तक अफ्रीका में ट्रम्प प्रशासन की कोई खास रूचि नहीं देखने को मिली थी। इस वर्ष फरवरी में कोरोना महामारी फैलने से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो अपने तीन-दिवसीय दौरे पर अफ्रीका गए थे, जिसके बाद यह उम्मीद जगी थी कि अमेरिका अब अफ्रीका को गंभीरता से लेगा। अब इसके 5 महीनों बाद हमें अमेरिका का बड़ा फैसला देखने को मिला है।

हालांकि, सिर्फ अमेरिका ही ऐसा देश नहीं है, जो चीन को अफ्रीका (Africa) से बाहर धकेलने में लगा है। इसमें भारत और रूस भी शामिल हैं। ये दोनों मित्र देश भी चीन को झटका देने के लिए यह मौका नहीं गंवाना चाहते हैं। हाल ही में भारत और रूस की कम्पनियों ने ट्रांस कॉन्टिनेंटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने के उद्देश्य से एक MOU पर हस्ताक्षर किया है। भारत के रेलवे मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली मिनीरत्ना कम्पनी Ircon International Limited ने रूसी रेलवे कम्पनी के अन्तर्गत आने वाली ZD International LLC के साथ MoU पर हस्ताक्षर किया है। इससे एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में रेलवे और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के द्वार भी खुल जाएंगे। इस MOU के अन्तर्गत दोनों देशों ने साझा तौर पर एक मजबूत साझेदारी के अन्तर्गत अन्य देशों में रेल प्रोजेक्ट्स का क्रियान्वयन करने और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर का सुचारू निर्माण करने को हामी भरी है।

इसके अलावा जब से एस जयशंकर भारत के विदेश मंत्री बने हैं, तब से अफ्रीका (Africa) पर उनका खासा ध्यान रहा है। अप्रैल महीने में उन्होंने अफ्रीका के कई विदेश मंत्रियों के साथ बातचीत कर भारत के हितों को बढ़ावा दिया था। 25 अप्रैल को एस जयशंकर ने ट्वीट कर जानकारी दी थी कि वे अपना पूरा दिन अफ्रीकी नेताओं के साथ वार्ता कर बिताएँगे।

An Africa-focus working day.

Useful conversations with Foreign Ministers of Burkina Faso, Comoros, Uganda and Mali.
Historical solidarity on display in the midst of contemporary challenges.

— Dr. S. Jaishankar (Modi Ka Parivar) (@DrSJaishankar) April 25, 2020

जैसे जैसे अफ्रीका में चीनी विरोधी आवाज़ें बुलंद होती जा रही हैं, वैसे ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफ्रीकी देशों के साथ अपनी कूटनीति को और तीव्र कर दिया है।
इसे कहते है मौके पर चौका💪 pic.twitter.com/oDed9P2j4n

— Vikrant Singh (@VikrantThardak) April 25, 2020

अफ्रीका से चीन को बाहर करने की दौड़ में जापान भी पीछे नहीं है। जापान भी अफ्रीका में बड़ा निवेश कर चीन को आँखें दिखाने का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए जिस LNG प्रोजेक्ट के लिए अमेरिका ने 4.7 बिलियन डॉलर के निवेश को मंजूरी दी है, वहां जापान पहले से ही 3 बिलियन डॉलर निवेश कर रहा है। इसी के साथ पिछले वर्ष जापान ने वर्ष 2022 तक अफ्रीका (Africa) में 20 बिलियन डॉलर निवेश करना का ऐलान किया था। इसके अलावा जापान की कंपनी जैसे Toyota और Sompo holdings केन्या और Nigeria जैसे देशों की कंपनियों में निवेश करती रहती हैं।

कुल मिलाकर जिस समय चीन-अफ्रीका के सम्बन्धों में तनाव देखने को मिल रहा है, वैसे समय में भारत, रूस, अमेरिका और जापान जैसे देश मौका देखकर अफ्रीका में चीन के पैरों तले से ज़मीन खींचने की कोशिश कर रहे हैं। अफ्रीका में पहले ही चीन विरोधी मानसिकता को बढ़ावा मिल चुका है। अफ्रीका में पहले BRI और फिर कोरोना के कारण पहले ही चीन विरोधी मानसिकता पनप रही थी, वहीं चीन में लगातार हो रहे अफ्रीकी लोगों पर हमलों ने इस मानसिकता को और ज़्यादा बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप अफ्रीका ने अब चीन को आड़े हाथों लेने की ठान ली है। हाल ही की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अफ्रीकी देश तंजानिया के राष्ट्रपति ने पिछली सरकारों के समय चीन के साथ final किए गए 10 बिलियन डॉलर्स के एक प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया। साथ ही तंजानिया के राष्ट्रपति ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की शर्तें इतनी बकवास थीं कि कोई पागल व्यक्ति ही इन शर्तों को मान सकता था। इससे अफ्रीका (Africa) में चीन के BRI प्रोजेक्ट को गहरा धक्का पहुंच सकता है। इसके अलावा अफ्रीकी देशों जैसे गिनी और केन्या से भी चीनी विरोधी होने की खबरें सामने आ चुकी हैं। गिनी ने हाल ही में अपने यहां मौजूद कई चीनी नागरिकों को बंदी बना लिया था, क्योंकि चीन से लगातार अफ्रीकी लोगों के पीटे जाने की खबरें सोशल मीडिया पर आ रही थीं। ऐसे ही केन्या के एक सांसद ने सोशल मीडिया पर अपने यहां चीनी लोगों को पत्थर मारकर दूर भगाने के लिए कहा था, क्योंकि उनके मुताबिक चीनी लोग केन्या में कोरोना वायरस फैला रहे हैं।

स्पष्ट है कि कोरोना के बाद अफ्रीका-चीन के सम्बन्धों में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं। भारत, रूस और अमेरिका मिलकर समीकरणों को बदल सकते हैं। चीन के लिए अफ्रीका (Africa) में बड़ी मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं।

Tags: अफ्रीका
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