अक्सर आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी ‘बाप बाप होता है, बेटा बेटा।” लगता है सऊदी अरब ने इस कहावत को आत्मसात करने का मन बना लिया है। तुर्की के इस्लामिक जगत के बादशाह बनने के ख्वाबों को मिट्टी में मिलाने के लिए सऊदी अरब आधिकारिक रूप से मैदान में उतर आया है, जिसकी शुरुआत उन्होंने अपने देश में तुर्की के उत्पादों पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाके की है।
कम्हूरियत डेली के रिपोर्ट के अनुसार सऊदी प्रशासन ने स्थानीय उद्योगों पर इस बात का दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वे किसी भी तरह से तुर्की के साथ किसी प्रकार का व्यापार नहीं करेंगे। रिपोर्ट के एक अंश अनुसार, “रियाद ने तुर्की उत्पादों पर अनाधिकारिक प्रतिबंध लगा दिया है, चाहे वो perishable भोजन हो, या फिर कपड़े ही क्यों न हो। एयरपोर्ट हो या सऊदी का भूमि बॉर्डर, हर जगह तुर्की के उत्पादों से भरे ट्रक्स रोके गए थे। इन ट्रकों को तुर्की के राजनयिकों द्वारा हस्तक्षेप के बाद ही जाने दिया गया था।”
इसी रिपोर्ट में आगे बताया गया, “सऊदी प्रशासन ने स्थानीय उद्योगों पर दबाव डाला है कि वे तुर्की से कोई भी उत्पाद न खरीदे। तुर्की अखबार दूनया के अनुसार सऊदी सरकार ने स्वयं इस निर्णय को अपनी स्वीकृति दी है, और जो भी इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उस कंपनी पर भारी जुर्माना लगेगा।” परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। सऊदी अरब ने अपने नागरिकों को अब से तुर्की की ओर यात्रा करने से भी मना किया है, क्योंकि वह भली-भांति जानता है कि तुर्की अब पहले जैसा नहीं रहा। इससे पहले भी सऊदी अरब ने अपने नागरिकों के तुर्की जाने पर काफी पाबन्दियाँ लगाई थी, जिसके कारण तुर्की आने वाले सऊदी के पर्यटकों में करीब 17 प्रतिशत की गिरावट पिछले वर्ष दर्ज हुई थी।
रोचक बात तो यह है कि यह सभी एक्शन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यूएन की आम सभा में दिये गए सम्बोधन और उससे पहले सऊदी अरब के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर अजीत डोवाल द्वारा सऊदी दूतावास में पधारने के कुछ ही दिनों के पश्चात लिए हैं। इससे अब यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सऊदी के इस निर्णय के पीछे भारत का भी काफी हद तक प्रभाव रहा है। बता दें कि अभी कुछ दिनों पहले सऊदी के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर सऊदी की खुशियों में शामिल होने सऊदी दूतावास पधारे थे, और दोनों देशों के बीच संबंध बढ़ाने और तुर्की के संकट से निपटने के लिए आगे का रोडमैप तैयार करने के लिए इससे बढ़िया मौका और कोई नहीं हो सकता था।
परंतु तुर्की से सऊदी अरब को आखिर किस बात की परेशानी है? इसके लिए हमें जाना होगा 2017 में, जब सऊदी अरब और उसके समर्थकों ने क़तर की किसी विषय पर हेकड़ी को लेकर पाबंदी लगाई थी। तब एर्दोगन के नेतृत्व में तुर्की ने क़तर की खूब मदद की थी, जिससे सऊदी काफी कुपित हुआ था। इसके पश्चात चाहे जमाल खशोगी के गायब होने पर सऊदी को घेरना हो, या फिर मुस्लिम ब्रदरहुड को बढ़ावा देना हो, तुर्की ने सऊदी अरब के इस्लामिक जगत में वर्चस्व को चुनौती देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इतना ही नहीं, तुर्की ने सऊदी अरब के वर्चस्व को खत्म करने के लिए हर प्रकार के आतंकी गतिविधि को भी बढ़ावा देना शुरू किया, जो न सिर्फ सऊदी अरब, बल्कि भारत जैसे देशों के लिए भी सरदर्द बनता जा रहा है।
पूरी कथा का सार यह है कि तुर्की सऊदी अरब को हटाकर इस्लामिक जगत का निर्विरोध बादशाह बनना चाहता है, और यह सऊदी अरब को स्वीकार्य नहीं। इसी वह तुर्की को दण्ड की नीति से नहीं, बल्कि अर्थ यानि आर्थिक दण्ड देकर सबक सिखाना चाहता है, और तुर्की पर सऊदी का वर्तमान प्रहार इसी नीति का परिचायक है।