चीन का चमचा बनकर भारत के खिलाफ लगातार बयानबाजी करने वाला नेपाल अब वापस अपनी हरकतों को सुधारने की तऱफ बढ़ रहा है। यही नहीं भारतीय क्षेत्र को अपना बताकर नेपाल के मैप में उसे शामिल करने की गलती को भी अब वो सुधार रहा है जिसके पीछे की असली वजह चीन के प्रति वहां के नागरिकों का गुस्सा औऱ भारत की सख्त नीति को माना जा रहा है। चीन का नेपाल की राजनीति में बढ़ता हस्तक्षेप नेपाल के विपक्षी दलों और नागरिकों को परेशान कर रहा है औऱ नेपाल के पीएम ओली का लगातार अलोकप्रिय होना भी इस बदलाव की बड़ी वजह है कि नेपाल का रुख भारत के प्रति नर्म हुआ है। ये बदलाव अगस्त में हुए भारत नेपाल की बैठक के बाद से देखने को मिल रहे हैं।
इस बदलाव के पीछे चीन द्वारा नेपाल के क्षेत्रों पर बढ़ता कब्जा और देश की राजनीति में चीनी राजदूत हु यांकी की दखलंदाजी भी है। हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि चीन केवल बॉर्डर क्षेत्रों तक ही नहीं सीमित है, बल्कि रिहायशी इलाकों पर भी कब्जा जमा रहा है। यही नहीं, मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दरचूला के जिऊजिऊ गाँव के एक पूरे हिस्से को ही चीन अपने नियंत्रण में ले चुका है। इससे नेपाल की जनता में चीन के खिलाफ गुस्सा है। जिस तरह से कोरोना वायरस का प्रकोप नेपाल में बढ़ा उससे नेपाल में चीनी विरोधी भावना बढ़ी उसपर ओली का चीन की वफादारी में चीन की गतिविधियों को नजरअंदाज करने से देश की जनता और विपक्ष में रोष बढ़ने लगा।
हर तरफ से अपने खिलाफ विरोध की लहर देख शायद ओली को समझ आ गया है चीन से दोस्ती उनके लिए घातक साबित हो सकती है। अब UN में भारत का साथ देना हो या मैप को लेकर उठाये गए कदमों में सुधार करना हो, केपी ओली चीन को दरकिनार करने लगे हैं।
नेपाल के प्रधानमत्री के पी शर्मा ओली ने भारत के प्रति अपनी गलतियों को सुधारने की ओर कदम बढ़ाते हुए हाई-स्कूल के स्व अध्ययन के पाठ्यक्रम की किताबों का वितरण रुकवा दिया था। गौरतलब है कि ये वही किताब है जिसमें नेपाली भाषा में भारत के साथ सीमा विवाद से जुड़ा चैप्टर भी मौजूद था। इस विवाद के काऱण पिछले 4-5 महीनों से नेपाली प्रधानमंत्री भारत के खिलाफ बेहूदे बयान दे रहे थे।
इस मामले को लेकर नेपाल के विदेश मंत्री रंजन भट्टारी ने कहा है कि केपी शर्मा ओली द्वारा हाल ही में किए गए कार्य इस बात को साफ जाहिर कर रहे हैं कि वो भारत से अपने रिश्तो को सकारात्मक बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम देश के सम्मान और मर्यादा को आधार बनाते हुए भारत के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए कटिबद्ध हैं।
गौरतलब है कि नेपाल और भारत के बीच कालापानी क्षेत्र को लेकर विवाद 2019 से जारी हैं। इसको लेकर पिछले काफी वक्त से नेपाल उग्र हो गया था, लेकिन अब नेपाली सरकार का पूरा जोश ठंडा हो चुका है। इस मुद्दे पर हाल ही में नेपाल की संसद में एक कानून पास कर दिया गया था और भारतीय क्षेत्र को अपने नक्शे में शामिल कर लिया था जिसके बाद दोनों देशों के बीच का तनाव खुलकर सामने आ गया था।
नेपाल पर चीन काफी लंबे वक्त से अपना प्रभाव जमाकर बैठा है और कम्युनिस्ट सरकार होने के चलते चीन को इस काम को करने में ज्यादा दिक्कतें नहीं हुईं। इस मामले में भारत ने भी अपना रुख थोड़ा सख्त किया औऱ नेपाल में मुश्किलें शुरू हो गई थीं क्योंकि नेपाल अपने लगभग 63 फीसदी सामान्य आयात और 97 फीसदी के ईंधन आयात के लिए भारत पर ही निर्भर है जिसके चलते नेपाल को तेल से लेकर खाने–पीने की चीजों में भी दिक्कतें शुरू हो गई थी। हाल ही में नेपाल के जानकार इसको लेकर कहा भी था कि नेपाल के बीच रिश्तों में दिक्कतें होंगी तो इसका सीधा खामियाजा नेपाल ही भुगतेगा।
बता दें कि भारत नेपाल की हमेशा मदद के लिए तैयार रहता है। नेपाल में भूकंप के बाद भारत ने ही सबसे ज्यादा उसकी मदद की थी लेकिन केपी ओली शर्मा चीन के कारण भारत के खिलाफ जहर उगलना नहीं छोड़ रहे थे। यहाँ तक कि नेपाल और भारत के रोटी-बेटी के रिश्ते पर भी वार करने का प्रयास किया।
यही कारण है कि ओली की लोकप्रियता राष्ट्रीय राजनीति में घटने लगी। मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की तरह ही ओली का राजनीतिक करियर पतन की ओर जाने लगा था परन्तु अब ऐसा लगता है वो अपनी गलतियों को सुधार रहे हैं। शायद ओली अब ये अच्छे से समझ चुके हैं कि चीन के समर्थन में खुलकर दिखना और भारत के विरोध में बयानबाजी करना उन्हें नुकसान ही पहुंचाएगा। इससे स्पष्ट है कि नेपाल चीन को छोड़ अब भारत के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा।