जो बाइडन ने अपने राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण के समय दिए भाषण में एलान कर रहे हैं कि वे व्हाइट सुप्रिमिसी के विरुद्ध जंग करेंगे। उन्होंने व्हाइट सुप्रिमिस्ट लोगों की तुलना आतंकियों से करते हुए उन्हें “Domestic Terrorist” करार दिया। यह अच्छी बात है कि बाइडन नस्लवाद जैसी गंभीर सामाजिक समस्या के खिलाफ इतना कड़ा रुख अपनाए हुए हैं, लेकिन यहाँ एक समस्या है कि बाइडन यह तय कैसे करेंगे कि कौन व्हाइट सुप्रिमिस्ट कौन नहीं।
बाइडन प्रशासन ने अपने सबसे पहले एलान में एक घोषणा यह भी की है कि वे मुस्लिम देशों से होने वाले अप्रवास पर लगी रोक हटा देंगे। यह रोक ट्रम्प प्रशासन द्वारा लगाई गई थी जिससे इस्लामिक कट्टरपंथ पर लगाम लगाई जा सके। लेकिन बाइडन का मानना है कि कट्टरपंथ व्यक्तिगत दोष है तथा इस आधार पर किसी एक समुदाय को प्रतिबंधित करना उचित नहीं। अब प्रश्न उठता है कि बाइडन व्हाइट सुप्रीमेसी के सन्दर्भ में भी यही धारणा रखेंगे या उनके अनुसार हर ट्रम्प समर्थक व्हाइट सुप्रिमिस्ट है।
ट्रम्प को चुनाव में 74 मिलियन से अधिक लोगों ने वोट किया था। कुल पड़े मतों में उनको 46.9% मत मिले थे, तो क्या बाइडन इतनी बड़ी आबादी को व्हाइट सुप्रिमिस्ट घोषित करने वाले हैं। बाइडन ने अपनी विजय को लोकतंत्र की विजय घोषित किया है, ऐसे में क्या यह माना जाए कि अमेरिका के 7 करोड़ 40 लाख से अधिक लोग लोकतंत्र विरोधी हैं।
वस्तुतः Black Lives Matter आंदोलन, उदारवादी वामपंथी धड़ों द्वारा समर्थित अन्य आंदोलनों जैसा ही था। इसके मुद्दे तो बिल्कुल सही थे किंतु आंदोलन मूलतः सत्ता प्राप्ति का जरिया ही था। आंदोलन व्हाइट-ब्लैक के भेदभाव के खिलाफ कम और ट्रम्प के खिलाफ अधिक था। ट्रम्प को व्हाइट सुप्रीमेसी के प्रतीक की तरह प्रदर्शित किया गया, जबकि असल समस्या ट्रम्प के सत्ता प्राप्ति से बहुत पुरानी है। ट्रम्प के समय इस मुद्दे को विपक्ष द्वारा मुखरता से उठाया गया लेकिन सत्य यह है कि काले लोगों की पुलिस द्वारा हत्या ट्रम्प से पूर्व भी ऐसे ही होती रही थी, यहाँ तक की अश्वेत राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल में भी।
मजेदार यह था कि आंदोलन को प्रतिक्रियावादी कट्टरपंथी इस्लामिक तबकों का भी समर्थन था, जो स्वयं दुनियाभर के भेदभाव और दकियानूसी बातों से ग्रस्त हैं। यह बात स्वतः दिखाती है कि काले लोगों के अधिकार की बात केवल छलावा था, आंदोलन मुख्यतः राजनीति से प्रेरित था।
बाइडन और उनकी पार्टी द्वारा लगातार लोकतंत्र और अधिकारों के नाम पर गुमराह करने का यह पहला उदाहरण नहीं है। इसके पूर्व जब Black Lives Matter के नाम पर हिंसा हो रही थी तो डेमोक्रेट इसे लोकतंत्र की खूबसूरती और इसे मजबूत करने वाली हिंसा करार दे रहे थे। जबकि उसी प्रकार की कैपिटल हिल हिंसा को लोकतंत्र पर प्रहार बताया गया। वस्तुतः लोकतंत्र में किसी भी हिंसा का कोई स्थान नहीं है। लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के अनुसार उनको लोकतांत्रिक हिंसा और अलोकतांत्रिक हिंसा का सर्टिफिकेट बांटने का अधिकार है।
लोकतंत्र में हिंसा को न्यायपूर्ण ठहराना अगली हिंसा के लिए जमीन तैयार करता है। असल में कैपिटल हिल में हुई हिंसा डेमोक्रेटिक पार्टी के 4 वर्षों के व्यवहार पर ट्रम्प समर्थकों की प्रतिक्रिया है। चार वर्षों पूर्व ट्रम्प की विजय को डेमोक्रेटिक पार्टी ने अस्वीकार कर दिया था, चुनावों में धांधली का आरोप लगाया था, ट्रम्प को रूस का एजेंट करार दिया था।
अब ट्रम्प समर्थक भी वही सब दोहरा रहे हैं। बस अंतर इतना ही है कि, डेमोक्रेटिक पार्टी ट्विटर तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मौखिक हिंसा कर रही थी, वैचारिक उन्माद फैला रही थी, जबकि ट्रम्प समर्थक वास्तविक हिंसा पर उतारू हो गए। यह क्रम नहीं रुका तो अमेरिका अधिकाधिक बंटता जाएगा। वास्तव में बाइडन द्वारा व्हाइट सुप्रिमिस्टों को आतंकी घोषित करना केवल सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा देगा, तथा हिंसा प्रतिहिंसा का क्रम चलता रहेगा।
































