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राज्य सरकारें बिजली क्षेत्र का उपयोग मुनाफ़ा कमाने और नागरिकों को ठगने के लिए करती हैं, पीएम मोदी इसे बदलने जा रहे हैं

नए कानून से बिजली के क्षेत्र में राज्य सरकारों का अधिपत्य खत्म हो जाएगा।

Krishna Bajpai द्वारा Krishna Bajpai
10 August 2021
in चर्चित
विद्युत संशोधन विधेयक
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जब परिवर्तन की बात आती है, तो उसका विरोध अवश्य होता है। देश की मोदी सरकार जिस विद्युत संशोधन विधेयक को पेश करने की तैयारी में है, उसे एक बड़े परिवर्तन के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में कोई परिवर्तन हो, और विपक्षी दल उसका विरोध न करें, ये असंभव है। विद्युत संशोधन विधेयक के संबंध में शिवसेना से लेकर कांग्रेस और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक विरोध करने लगे हैं, लेकिन ऐसा क्यों हैं ये आपकों पता होना चाहिए, क्योंकि ये माना जा रहा है कि इस संशोधन विधेयक के कानून बनने के पश्चात निजी क्षेत्र की कंपनियां भी बिजली वितरण क्षेत्र में उतर सकेंगी और कुछ दो चार कंपनियों का अधिपत्य खत्म हो जाएगा।

परिवर्तन की पहल

मोदी सरकार परिवर्तन की एक नई पहल के अंतर्गत विद्युत क्षेत्र का कायाकल्प करने में जुट गई है। इसके अतंर्गत ही विद्युत संशोधन विधेयक लाने की तैयारी की जा रही है। इसको लेकर सरकार का कहना है कि जनता तक बिजली पहुंचाने के मामले में अधिक सहजता होगी, क्योंकि टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियों की तरह ही बिजली क्षेत्र में निजी कंपनियां भी देश में लोगों को उनकी सुविधानुसार बिजली का वितरण करेंगी। मोदी सरकार की इस पहल को एक बेहतरीन सोच माना जा रहा है, किन्तु सकारात्मक समझी जाने वाली पहल का भी विरोध होने लगा है।

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विपक्ष द्वारा विरोध की नौटंकी

एक तरफ जहां मोदी सरकार संसद में विद्युत संशोधन विधेयक 2021 पेश करने की तैयारी कर रही है, तो दूसरी ओर देश में इस मुद्दे को लेकर विपक्ष ने विरोध की आग भड़का दी है। महत्वपूर्ण बात ये भी है कि विद्युत विभाग से जुड़े यूनियन भी मोदी सरकार की इस नीति का विरोध कर रहे हैं। शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा, “इस मुद्दे पर मोदी सरकार ने कोई चर्चा नहीं की है।” उन्होंने आगे कहा कि वो, “अन्य राज्य की सरकारों और विपक्ष के नेताओं से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करेंगे।”

विरोध करने वाले लोगों में केवल संजय राउत या शिवसेना ही नहीं हैं, बल्कि ममता बनर्जी भी शामिल हैं। उन्होंने भी विद्युत संबंधी बिल के मुद्दे पर पीएम मोदी को पत्र लिखकर अपना विरोध जताया है। ममता ने विद्युत संशोधन विधेयक को पारित होने पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा, “इस मुद्दे पर पहले व्यापक और पारदर्शी तरीके से विचार–विमर्श होना चाहिए।” ममता ने लिखा, “अत्यधिक आलोचना झेल चुके विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 को संसद में पेश करने की केंद्र सरकार की नई पहल के खिलाफ फिर से अपना विरोध दर्ज करवाने के लिये मैं यह पत्र लिख रही हूं। इसे पिछले साल पेश किया जाना था, लेकिन हम में से कई लोगों ने मसौदा विधेयक के जन–विरोधी पहलुओं को रेखांकित किया था और कम से कम मैंने 12 जून 2020 को आपको लिखे अपने पत्र में इस विद्युत संशोधन विधेयक के सभी मुख्य नुकसानों के बारे में विस्तार से बताया था।”

ममता ने विद्युत संशोधन विधेयक के विरोध में लिखा, “मैं यह सुनकर हैरान हूं कि हमारी आपत्तियों पर कोई विचार किए बिना यह विधेयक आ रहा है और वास्तव में इस बार इसमें कुछ बेहद जन–विरोधी चीजें भी हैं।” दिलचस्प बात ये भी है कि इस मुद्दे पर केवल राजनीतिक पार्टियां ही नहीं ब्लकि ऑल इंडिया पावर फेडरेशन की यूनियन भी विरोध कर रही हैं, और इन्होंने हड़ताल तक शुरु कर दी है। यही नहीं, भोपाल से लेकर उत्तर प्रदेश में कुछ यूनियनों ने भी इस मुद्दे को लेकर अपना विरोध भी दर्ज किया है।

Mamta Banerjee CM WB writes to PM Narendra Modi against Electricity (Amendment) Bill 2021 pic.twitter.com/qlrOxM9ZF9

— लाइट हाऊस (@BijaliGhar) August 8, 2021

और पढ़ें- टेलीकॉम के बाद अब बिजली सेक्टर में क्रांति लाएगी मोदी सरकार, मानसून सत्र में पेश होगा बिल

लचर है विद्युत क्षेत्र का आधारभूत ढांचा

दिल्ली, मुबंई, अहमदाबाद जैसे मेट्रोपोलिटिन शहरों को छोड़ दें, तो लगभग सभी राज्यों में राज्यों की कंपनियों द्वारा ही बिजली का वितरण किया जाता है। भारत बिजली उत्पादन को लेकर वैश्विक स्तर पर एक किफायती राष्ट्र माना जाता है। इसके बावजूद यहां राज्यों के हाथों में बिजली वितरण और नियंत्रण होने के चलते कुछ ही कंपनियों का इन पर विशेषाधिकार होता हैं। मान्यता ये भी है कि राज्य सरकार उन्हीं कंपनियों को टेंडर देती हैं, जो अपने टेंडरों में राज्य सरकारों को मोटी मुनाफा कमा कर देती हैं।

कोयले के जरिए बड़ी मात्रा में बिजली का उत्पादन करने वाले देश के सामने किसी भी अन्य देश के पसीने छूट जाएं। इसके बावजूद विश्व बैंक की ही एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में बिजली से संबंधित तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा करीब 21 प्रतिशत से अधिक का है, जो कि भारत जैसे बिजली के संबंध में आत्मनिर्भर राष्ट्र के लिए शर्मनाक विषय है। हालांकि इसके लिए भी राज्य सरकारें ही जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं बिजली वितरण को लेकर भी राज्यों की एक दिक्कत ये भी है कि करीब 1/5  भाग की बिजली बर्बाद हो जाती है।

घाटे में है देश का विद्युत क्षेत्र

लोकसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार 2017 में 33,894 करोड़ रुपए, 2018 में 29,492 करोड़ और 2019 में 49,623 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। इन्हें घाटे से बचाने के लिए ही केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को करीब 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपए का ऋण पैकेज दिया गया था। ऐसे में यदि ये विद्युत संशोधन विधेयक लागू होता है, तो निजी कंपनियों के हाथों में होने से संभावनाएं हैं कि घाटा कम होगा।। इतना ही नहीं अभी राज्यों से टेंडर लेने की कोशिश में कंपनियां किसी भी हद तक चली जाती हैं और गुटों के गैंगवार तक की नौबत आ जाती है। ऐसे में यदि उपभोक्ता अपनी सहूलियत के अनुसार कंपनियां चुन सकेंगे, तो ये ठीक उसी तरह की स्थिति होगी, जैसे देश के दूर संचार सेक्टर के साथ होती है।

बिजली के बिलों से लेकर बिजली के मीटरों में असामान्यता राज्यों द्वारा चयनित कंपनियों के कारण होती है। इतना ही नहीं, इन बिजली कंपनियों की भी जवाबदेही नहीं होती है, क्योंकि इनको राजनीतिक संरक्षण मिलता है। बिजली की आपूर्ति बाधित होने पर यदि इन कंपनियों के हेल्पलाइन नंबरों पर फोन भी किया जाता है, तो उपभोक्ताओं के फोन ही रिसीव नहीं होते हैं, और यदि रिसीव भी हो गए, तो उनकी समस्याओं के हल होने का अनुपात भी बेहद कम होता है।

और पढ़ें- बिजली सेवाएँ पसंद न आने पर कंपनी तो बदल लेंगे, पर option क्या है ?

निजीकरण को बढ़ावा सकारात्मक कदम

मोदी सरकार इन सभी समस्याओं को अच्छे से समझती है, यही कारण है कि वो अब विद्युत संशोधन विधेयक 2021 के माध्यम से नए नियमों में निजी क्षेत्र की कंपनियों को विशेष महत्वता दे सकती है। इससे उपभोक्ताओं के पास अपनी पसंद के अनुसार बिजली आपूर्ति के लिए कंपनियां चुनने का अधिकार होगा, साथ ही बिजली कंपनियों की भी दूरसंचार कंपनियों की तरह ही सुविधाएं बाधित होने पर जवाबदेही भी होगी। इससे न केवल उपभोक्ताओं की सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी, अपितु बिजली क्षेत्र से जुड़े घाटों में भी कमी आएगी।

इन सारे बिंदुओं के होने के बावजूद यदि विपक्ष विद्युत संशोधन विधेयक का विरोध कर रहा है तो ये सवाल उठ सकता है कि आखिर क्यों? तो इसका सीधा से एक ही जवाब है, कि इससे बिजली के क्षेत्र से राज्य सरकारों का अधिपत्य खत्म हो जाएगा, जिससे न केवल इन राज्य सरकारों में बैठी राजनीतिक पार्टियों को होने वाला मोटा मुनाफा खत्म हो जाएगा, अपितु बिजली क्षेत्र में राज्य सरकारों और विद्युत यूनियनों द्वारा होने वाला भ्रष्टाचार भी खत्म हो जाएगा। यही कारण है कि मोदी सरकार के इस अभूतपूर्व फैसले पर विपक्ष आक्रोशित है, और निजीकरण का हवाला देकर छाती पीट रहा है।

Tags: नरेंद्र मोदीममता बनर्जीविधेयकशिवसेनासंजय राउत
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Tejas Under Fire — The Truth Behind the Crash, the Propaganda, and the Facts

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