प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को नया मानक बनाने पर जोर दे रहे हैं। पिछले महीने, मोदी सरकार ने 26,058 करोड़ रुपये की PLI योजना (उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन) को मंजूरी दी थी, जो उन्नत प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देता है। इसमें से सबसे महत्वपूर्ण इलेक्ट्रिक बैटरी तकनीक है। यह योजना विशेष रूप से इलेक्ट्रिकल गाड़ियाँ और हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहनों और उनके घटकों पर केंद्रित है। यही नहीं आज देखा जाए तो भारत की स्थापित बिजली क्षमता का 38.5% अब non-fossil fuels से संबंधित है और यह 2030 तक 66% हो जाएगा। भारत को तेल पर से अपनी निर्भरता को कम करते देख अब पेट्रोलियम बेचने वाले देशों का संगठन OPEC इसी बात से नाराज हो चुका है और भारत को डराने की कोशिश कर रहा है।
दरअसल, ब्लूमबर्ग के अनुसार, OPEC ने कहा है कि डीजल और गैसोलीन अगले 25 वर्षों में भारत की तेल मांग का 58% हिस्सा बन जाएगा, जो अभी 51% है। इसमें कहा गया है कि 20 करोड़ यात्री और वाणिज्यिक वाहनों के जुड़ने का अर्थ यह है कि दुनिया के तीसरे सबसे अधिक तेल खपत करने वाले देश में तेल की खपत में इन दोनों ही ईंधन का वर्चस्व बना रहेगा। बता दें कि ओपेक भारत के कच्चे तेल का लगभग 71% आवश्यकताओं को पूरा करता है।
यह स्पष्ट है कि OPEC भारत के लिए एक डरावनी तस्वीर चित्रित करने की कोशिश कर रहा है, जिसमें देश अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए लगभग पूरी तरह से मध्य पूर्व पर निर्भर है। OPEC द्वारा डराने-धमकाने का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को भारत के ऑटोमोबाइल बाजार पर बड़ा दांव लगाने और भारतीयों में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की इच्छा से रोकना है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है। इस बाजार में खपत अधिक है और तो और, यह बाजार तेजी से विकसित होने वाले बाजारों में से एक है। पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन यानी OPEC दूसरे राष्ट्रों की निर्भरता का लाभ उठाने की कोशिश में लगा रहता है। हालांकि केंद्र की मोदी सरकार ने तमाम अलग-अलग तरीकों से दूसरे ऊर्जा संसाधनों की ओर देखना पहले से ही आरंभ कर दिया था। पहले सौर ऊर्जा और अब EV के लिए PLI स्कीम को देख कर OPEC झल्ला चुका है।
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भारत और इलेक्ट्रिकल गाड़ियाँ
भारत सरकार ने इस समस्या को देखते हुए बिजली से चलने वाले गाड़ियों के ऊपर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। उच्च तकनीक से बनने वाले बिजली वाली गाड़ियों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि भारत में विशाल नदियों का डेरा है, जहाँ से ऊर्जा बनाई जा सकती है।
सरकार EV क्षेत्र मजबूत करने के लिए PLI स्किम लेकर आई। इस योजना में 26,058 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि दी गई है, जो पांच साल की अवधि में EV निर्माण करने वाली कम्पनियों को प्रदान की जाएगी। यह OPEC के लिए सबसे बड़ा झटका क्यों है? सड़क परिवहन के लिए तेल अभी भी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। विश्व स्तर पर, बिजली सड़क परिवहन में उपयोग की जाने वाली ऊर्जा का केवल 0.4% है। तेल बाजार के लिए यह मायने रखता है कि बिजली से कितनी मांग विस्थापित होती है। 2020 में, हल्के वाहन (LV) कैटेगरी में लगभग 9.2 मिलियन हल्के प्लग-इन इलेक्ट्रिक वाहन (PEV) थे और 20,000 ईंधन सेल इलेक्ट्रिक वाहन थे। सामूहिक रूप से, इन वाहनों ने लगभग 1,50,000 बैरेल प्रतिदिन तेल की खपत को विस्थापित किया जो कि विश्व खपत का 0.2% है।
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भारत और प्राकृतिक ऊर्जा
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने पूर्वानुमान लगाया है कि 2021 में भारत की प्राकृतिक गैस की खपत में 4.5% की वृद्धि होगी, जबकि वैश्विक मांग में 3.6% की वृद्धि होगी। भारत CNG जैसे विकल्पों की ओर देख रहा है। यहां तक कि वह सौर ऊर्जा पर भी निर्भरता बढ़ाने की ओर देख रहा है। TFI ने पहले भी बताया है कि इसी रास्ते पर चलते हुए अंतरराष्ट्रीय सोलर ऊर्जा अलायन्स बनाकर भारत ने वैश्विक स्तर पर तेल उत्पादकों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया था।
हाइड्रोजन, जैव ईंधन और प्राकृतिक गैस के ज्यादा इस्तेमाल के कारण यह कहा जा सकता है कि यह तेल की निर्भरता को कम करेंगे। तेल की बढ़ती कीमतों से भारतीय जनता दूसरे विकल्पों की तलाश शुरू कर चुकी है। OPEC ऐसे प्रगतिशील कदमों से झल्ला चुका है क्योंकि उसे आशंका है कि भविष्य में तेल की मांग कम होने से हानि होने के पूरे आसार है।
भले ही OPEC ने कहा है कि भारत में तेल की मांग, 2021 में एक दिन में 4.9 मिलियन बैरल के अपने पूर्व-महामारी स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2045 तक 11 मिलियन बैरल से दोगुने अधिक हो जाएगी लेकिन भारत में नए EV स्टार्टअप्स के चलते ऐसे पूर्वानुमान नष्ट होने के आसार है। पूर्व में भी इस सरकार ने ऐसे तमाम अनुमानों को ध्वस्त करते हुए नए नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं और आत्मनिर्भर ऊर्जावान भारत इसी कदम में एक महत्वपूर्ण कड़ी होगी।