रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के प्रमुख और देश के वरिष्ठ पत्रकार अर्नब गोस्वामी वामपंथियों के सर्वाधिक निशाने पर रहते हैं। उनकी पत्रकारिता से ही उद्धव ठाकरे इतना ज्यादा डर गए कि एक पुराना केस पुनः खोलकर उन्हें प्रताड़ित तक किया गया! इसके विपरीत अब भी उनकी पत्रकारिता की धार वैसी ही है। ऐसे में एक हास्यास्पद बात ये है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) नामक एक अलगाववादी संगठन ने अर्नब गोस्वामी पर मानहानि का केस कर दिया है। संगठन ने इस संबंध में दिल्ली की एक अदालत में असम की हिंसा को लेकर मामला दाखिल कराया है, जिसे लेकर उसकी ही फजीहत हो रही है। जो संगठन पूरे भारत में अलगाववादी, कट्टरपंथ के आरोपों को लेकर चर्चा में हो और प्रतिबंधित होने की कगार पर हो, वो अर्नब गोस्वामी जैसे देशभक्त पत्रकार पर सवाल उठाता है, जो कि काफी हास्यास्पद है।
अर्नब पर लगाया आरोप
दरअसल, दिल्ली की एक अदालत ने रिपब्लिक मीडिया चैनल के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड्स एसोसिएशन को समन किया है। ये समन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा हाल ही में असम की दरांग फायरिंग घटना से संबंधित एक समाचार रिपोर्ट पर मानहानि के मुकदमे से जुड़ा है।
गौरतलब है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने इस केस में एक न्यूज आर्टिकल का उल्लेख किया है। जिसका टाइटल है, ‘दारंग फायरिंग: पीएफआई से जुड़े 2 संदिग्ध गिरफ्तार, विरोध के लिए भीड़ जुटाने का आरोप’। रिपब्लिक की ओर से 27 सितंबर को यह आर्टिकल प्रसारित किया गया था। इसमें अन्य उल्लेखों की बात करें तो, “असम हिंसा जांच: पीएफआई से जुड़े 2 लोग गिरफ्तार… साजिश के आरोप… पुलिस ने पीएफआई से जुड़े 2 लोग एमडी अस्मत अली अहमद और मोहम्मद चंद ममूद को गिरफ्तार किया है” के बारे में चैनल द्वारा रिपोर्ट किया गया। जिसे लेकर पीएफआई ने अर्नब गोस्वामी पर मानहानि का केस किया था।
पीएफआई की शिकायत के अनुसार, “चैनल ने लोगों को भड़काने के इरादे से और बदनाम करके छवि के लिए पूर्वाग्रह पैदा करने के इरादे से संगठन के खिलाफ झूठे और तुच्छ आरोप लगाए।” पीएफआई ने कहा, “उक्त रिपोर्टें निराधार हैं और बिना किसी सबूत के सही तथ्यों की पुष्टि किए बिना बनाई गई हैं। प्रसारण में जिन दो व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है, वे किसी भी तरह से पीएफआई के सदस्य नहीं हैं।”
दिलचस्प बात ये है कि PFI ने रिपब्लिक पर मानहानिकारक पोस्ट के जरिए मानहानि करने का आरोप लगाया है। इस केस को लेकर कहा गया कि “इस तरह की मानहानिकारक पोस्ट अभी भी जनता द्वारा प्रसारित और देखी जा रही है, जिससे इसकी सद्भावना, छवि और प्रतिष्ठा को लगातार नुकसान हो रहा है। पीएफआई ने चैनल को लिखित में बिना शर्त माफी मांगने के लिए कानूनी नोटिस भेजा था, लेकिन उन्हें एक झूठा और टाल-मटोल करके जवाब दिया गया।”
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बदनामी का पर्याय है पीएफआई
‘सूप बोले तो बोले चलनी बोले 72 छेद’, अर्नब गोस्वामी एक बड़े पत्रकार हैं, जिनकी राष्ट्रवाद को लेकर प्रतिबद्धता सर्वविदित है। ऐसे में उनके ऊपर आरोप लगाने वाले PFI पर ये उपर्युक्त कहावत सही साबित होती है। पीएफआई एक ऐसा संगठन है, जिसका देश में हुए प्रत्येक बड़े दंगे में नाम आ चुका है। हाथरस में हुए एक युवती के रेप के बाद हिंसा भड़काने की प्लानिंग पीएफआई की ही थी। सीएए के देश विरोधी आंदोलनों के दौरान जिस प्रकार से पूरे देश में सामूहिक दंगे भड़के थे, उसमें भी मुख्य भूमिका पीएफआई की ही सामने आई थी!
उत्तर प्रदेश में हो रहे धर्म परिवर्तन के मुद्दों में भी पीएफआई की संदिग्ध भूमिका सामने आती रही है। इसी तरह हाल ही में असम के दरांग जिले में जो हिंसा हुई थी, उसमें पीएफआई की भूमिका का शक स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने जताया था। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पीएफआई बदनाम संगठन है, जो देश में अराजकता का माहौल पैदा करने का पर्याय बन गया है। और जब अराजकता का पर्याय पीएफआई, अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकार पर मानहानि का दावा करता है तो ये हास्यास्पद ही प्रतीत होता है।
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