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आखिर क्यों ईटेला राजेंदर से डर रहे हैं केसीआर?

ईटेला राजेंदर होने का महत्व...

Krishna Bajpai द्वारा Krishna Bajpai
12 October 2021
in राजनीति
ईटेला राजेंदर भाजपा

Source- Google

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परिवारवाद की ओर कदम बढ़ाने वाले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने अपने विश्वासपात्र नेता ईटेला राजेंदर से स्वास्थ्य मंत्री का पद छीना, तो  ईटेला ने अपने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए तेलंगाना राष्ट्रीय समिति से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। TFI ने उस दौरान आपको बताया था कि ईटेला का केसीआर से अलग होना तेलंगाना की राजनीति में केसीआर के लिए झटका होगा और ईटेला राजेंदर राज्य में भाजपा के लिए सुवेंदु अधिकारी जैसी भूमिका निभाएंगे। TFI  की भविष्यवाणी के अनुसार ही अब ईटेला राजेंदर का असल टेस्ट शुरु हो गया है, क्योंकि 30 अक्टूबर को होने वाले हुजूराबाद विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने उन्हें बतौर उम्मीदवार उतारा है। ऐसे में टीआरएस का गढ़ होने के चलते केसीआर अपनी जीत के संबंध में आश्वस्त हैं, किन्तु हकीकत ये है कि यदि ईटेला ये उपचुनाव जीत गए, तो न केवल भाजपा में उनका कद बढ़ेगा, अपितु केसीआर की पार्टी में एक बड़ी फूट भी देखने को मिल सकती है। जिसका सीधा फायदा तेलंगाना में अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रही भाजपा को होगा।

महत्वपूर्ण है ये विधानसभा उपचुनाव

जमीन की धोखाधड़ी का आरोप लगाकर मुख्यमंत्री केसीआर ने ईटेला राजेंदर को मई 2021 में स्वास्थ्य मंत्री के पद से हटाया था, जिसके बाद उन्होंने जून में ही दिल्ली आकर भाजपा की सदस्यता ले ली। ऐसे में अब निर्वाचन आयोग ने जब देश भर की अलग-अलग 30 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का ऐलान किया है, तो उनमें एक सीट करीमनगर की हुजूराबाद विधानसभा भी है, जहां से भाजपा ने ईटेला को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। टीआरएस की टिकट पर पिछले तीन बार से हुजूराबाद से चुनाव जीतने वाले ईटेला के लिए ये एक आसान उपचुनाव हो सकता है। वहीं, केसीआर के लिए ये सीट राजनीतिक प्रतिष्ठा का विषय बन गई है। इसकी वजह ये है कि टीआरएस के लिए हुजूराबाद को एक गढ़ के रूप में देखा जाता है, लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि टीआरएस का गढ़ होने के पीछे ईटेला राजेंदर की राजनीतिक विश्वसनीयता की बड़ी भूमिका थी, जो कि अब भाजपा के ध्वज तले केसीआर की राजनीतिक मुश्किलों को बढ़ा रहे हैं।

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डरे हुए हैं केसीआर

जिस दिन से ईटेला राजेंदर ने टीआरएस छोड़कर भाजपा का दामन थामा, उस दिन ही ये तय हो गया था कि केसीआर की मुसीबतें बढ़ेंगी, जिसकी शुरुआत हुजूराबाद के उपचुनाव से होगी। केसीआर को पता है कि हुजूराबाद सीट पर जीत उनके लिए कितनी अधिक महत्वपूर्ण है। ऐसे में हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि कैसे केसीआर लगातार हुजूराबाद में विकास की नई परियोजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण कर रहे हैं, जिससे पार्टी के लिए क्षेत्र में  सकारात्मक माहौल स्थापित हो सके।

इतना ही नहीं, जानकारों का मानना है कि यदि इस सीट पर ईटेला राजेंदर की जीत होती है, तो ये केसीआर की नैतिक हार साबित होगी। ऐसे में अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने के लिए केसीआर क्षेत्र के अलग-अलग वर्ग और उम्र के लोगों के साथ बातचीत कर रहे हैं। इसके साथ ही जानकारों का यह भी मानना है कि केसीआर अनैतिक ढंग से राज्य का पैसा हुजूराबाद क्षेत्र में बर्बाद कर रहे है, जिसका उद्देश्य मात्र अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को सुरक्षित करना है। इसके तहत ही उस क्षेत्र में दलितों को 2000 रुपए का झुनझुना पकड़ाने वाली योजना भी शुरु की गई है।

हमलावर हैं ईटेला राजेंदर

एक तरफ जहां दलितों के लिए पैसे बांटने की घोषणा करके केसीआर ने एक मुफ्त की मलाई का दांव चला है, तो दूसरी ओर ईटेला ने इसे राजनीतिक रिश्वत करार दिया है। ईटेला इस सीट से अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं क्योंकि वो यहां से लगातार चुनाव जीतते आएं हैं। उन्होंने केसीआर पर हमला बोलते हुए कहा, “यह किसी भी कीमत पर सीट जीतने के लिए मतदाताओं को रिश्वत देने के अलावा और कुछ नहीं है। अगर केसीआर को दलितों से इतना प्यार है, तो उन्हें सिर्फ हुजूराबाद के बजाय पूरे राज्य में सभी दलितों के लिए योजना लागू करनी चाहिए। टीआरएस नेतृत्व ने मेरे अधिकांश सहयोगियों और नेताओं को लुभाया है, जो हाल तक मुझे पद और धन की पेशकश करके मेरा समर्थन कर रहे थे, लेकिन मैं हुजूराबाद के लोगों के समर्थन से उपचुनाव जीतने के लिए आश्वस्त हूं, जो मुझे पिछले तीन कार्यकाल से आशीर्वाद दे रहे हैं।”

भाजपा के लिए जड़ी-बूटी

ग्रेटर हैदराबाद महानगरपालिका चुनाव में भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को उतारकर राज्य की राजनीति के लिए अपनी महत्वकांक्षाएं स्पष्ट की थीं, जिसका फायदा भी भाजपा के हिस्से आया था। ऐसे में भाजपा के लिए ईटेला राजेंदर का आना ठीक वैसी ही स्थिति है, जैसे बंगाल  विधानसभा चुनाव के पहले सुवेंदु अधिकारी का भाजपा में शामिल होने की थी। ईटेला के साथ भाजपा के लिए सकारात्मक स्थिति ये है कि वो टीआरएस में एक वक्त नंबर दो माने जाते थे, लेकिन केसीआर द्वारा जमीन घोटाले से संबंधित आरोपों को लेकर कार्रवाई उनके लिए झटका साबित हुई। द प्रिंट की रिपोर्ट बताती है कि राज्य में भाजपा के लिए ईटेला राजेंदर की हुजूराबाद सीट की विजय हैदराबाद महानगर पलिका चुनाव के बाद एक दूसरी बड़ी सफलता हो सकती है।

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बताते चले कि टीआरएस में केसीआर का एकछत्र राज चलता है, कोई भी नेता उनके फैसले को मना नहीं कर सकता। इसके विपरीत ईटेला राजेंदर ने न केवल उनके फैसले को चुनौती दी, अपितु अब उन्होंने हुजूराबाद की सीट पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव को अपनी निजी अस्मिता की लड़ाई बना लिया है। ऐसे में केसीआर की असहजता स्पष्ट कर रही है कि ईटेला का जीतना आसान है। राजनीतिक गणित और अनुमानों के मुताबिक यदि भाजपा के ध्वज तले ईटेला राजेंदर की जीत होती है, तो ये भाजपा के लिए एक मौका बन सकता है, क्योंकि केसीआर की नैतिक हार के बाद पार्टी में उनके विरोधियों का धड़ा सक्रिय होकर बगावत कर सकता है। इतना ही नहीं, टीआरएस की ये राजनीतिक फूट भाजपा के लिए  तेलंगाना की राजनीति में एक सकारात्मक मौका बन सकती है, जो केसीआर के लिए उनके राजनीतिक पतन की शुरुआत का संकेत होगा।

Tags: ईटेला राजेंदरटीआरएसहुजूराबाद
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