दक्षिणपंथ की वकालत करने वाली पार्टी के तौर पर भारतीय जनता पार्टी, अपने आप को खूब प्रचारित करती है। इसी स्पष्ट एजेंडे के कारण BJP को हिंदुओं की स्वीकारिता भी मिली है। हालांकि, कई बार बीजेपी के कुछ ऐसे ऐसे फैसले होते हैं, जिसको समझ पाना मुश्किल लगता है और इसी कड़ी में अब एक और फैसला जुड़ गया है। वह फैसला यह है कि 14वे भारतीय प्रेस परिषद् यानी Press Council of India में केंद्र सरकार ने The Caravan के Vinod Jose (विनोद जोस) जैसे वामपंथी पत्रकार को नामित किया है। उन्हें ‘सम्पादक’ वाले सूची में रखा गया है। सरकार के इस फैसले के बाद बवाल होना लाजिमी है, नेटीजेन ने सरकार को आड़े हाथ लिया और भाजपा को छद्म राष्ट्रवादिता ना दिखाने की सलाह दी है।
केंद्र सरकार द्वारा नामित विभिन्न नामों में, द कारवां पत्रिका के प्रधान संपादक Vinod K Jose (विनोद जोस) का नाम शामिल है, जो सार्वजनिक तौर पर मोदी से नफरत करने वाले और हिंदू तथा भारत विरोधी मत रखने वाले पत्रकार हैं। इनके क्रियाकलापों को पढ़कर कोई भी व्यक्ति इनके मन के भीतर की कुंठा को भांप सकता है।
केंद्र सरकार ने हाल ही में तीन साल की अवधि के लिए भारतीय प्रेस परिषद का पुनर्गठन किया है। 7 अक्टूबर, 2021 को एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें भारतीय प्रेस परिषद की 14वीं कार्यकाल के लिए 22 सदस्यों के नामांकन को अधिसूचित किया गया है। इसी सूची में विनोद के Jose को केंद्र सरकार द्वारा ‘संपादक’ के तहत नियुक्त किए गए छह व्यक्तियों में शामिल किया गया।
Did any1 notice Press Council of India members’ nominations? Straight from Ripley’s ‘Believe It or Not’! At no, 6, Vinod Jose of The Caravan! Looks like someone in @BJP4India feels that nationalists and pro-Hindu voices do not matter, but every enemy of nation is to be appeased! pic.twitter.com/oUh0fseOsZ
— Koi Sanjay Dixit ಸಂಜಯ್ ದೀಕ್ಷಿತ್ संजय दीक्षित (@Sanjay_Dixit) October 12, 2021
केंद्र सरकार ने Jose के अलावा अंकुर दुआ, डॉ बलदेव राज गुप्ता, डॉ खैदेम अथौबा मैतेई, डॉ सुमन गुप्ता और प्रकाश दुबे को ‘संपादक’ के तहत नियुक्त किया है। गुरिंदर सिंह और एलसी भारतीय का नाम ‘मध्यम समाचार पत्रों के मालिक या प्रबंधक’ के कैटगरी में रखा गया है। ‘छोटे अखबारों के मालिक या प्रबंधक’ के अंतर्गत आने वालों में आरती त्रिपाठी और श्याम सिंह पंवार शामिल हैं। इसके अलावा, भारतीय प्रेस परिषद के 14वें कार्यकाल में 12 अन्य लोग नामांकित हैं।
और पढ़े: वियतनाम का रबर उद्योग संकट में है, भारत के लिए ये एक बढ़िया अवसर है
इसी वर्ष 9 फरवरी, 2021 द हिन्दू को दिए गए साक्षात्कार में विनोद ने सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि, “हम असहिष्णुता की संस्कृति देख रहे हैं। सत्ता में बैठे लोगों द्वारा पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से अपना काम करने से रोकते हुए देखा जा सकता है। इसे कई तरह से किया जा सकता है। यह विज्ञापन के माध्यम से, प्रकाशकों या व्यक्तिगत पत्रकारों को प्रभावित करके किया जा सकता है। जब कोई इस तरह के प्रयासों का विरोध करता है और निष्पक्ष पत्रकारिता करता है, तो उसे निशाना बनाया जाता है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग, जो एक दशक पहले 101 थी, अब 142 क्यों है?”
वहीं मई 2012 में द कारवां के संपादक Vinod Jose (विनोद जोस) ने मोदी पर 18,000 शब्दों की कहानी लिखी थी जिसका विषय “द एम्परर अनक्राउन्ड” था। विनोद ने पीएम मोदी के बारे में कहा था कि, “वह Secular Cliches को दोहराने का प्रबंधन करते हैं, वह खुद को पार्टी से ऊपर मानते है। गुजरात विकसित नहीं हुआ है; राज्य में बच्चे कुपोषित हैं तथा मोदी की सफलता सिर्फ जनसंपर्क की सफलता है और उन्होंने गुजरात दंगों की साजिश रची है।” Vinod Jose (विनोद जोस), गोधरा ट्रेन नरसंहार में हिंदुओं की सामूहिक हत्या को एक दुर्घटना के रूप में बता चुके हैं और यह कहा है कि कैसे हिंदुओं ने मुसलमानों का ‘नरसंहार’ किया और यह मोदी और भाजपा पर सबसे कम घातक हमला है। Vinod Jose, (विनोद जोस) जो कारवां पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं, उन्होंने इस झूठ को हवा दी थी कि दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगे वास्तव में भारत में मुसलमानों का एक संगठित नरसंहार था। कारवां किस तरह से अनेकों मुद्दे पर केंद्र सरकार से लेकर अजित डोभाल के बेटे तक के बारे में झूठ फैला चुका है यह किसी से छुपा नहीं है। बावजूद इसके Vinod Jose (विनोद जोस) की नियुक्ति की गयी जो यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार अब भी सीख नहीं ले रही है।
और पढ़े: ब्राह्मणों को नीचा दिखाने के लिए तमिल मीडिया ने लिया लखीमपुर खीरी की घटना का सहारा
द कारवां ने अक्सर ही अपने लेखों में संस्कृत संस्थानों पर उनके ‘बहुसंख्यकवाद’ और ‘ब्राह्मणवादी मूल्य प्रणाली’ के लिए हमला किया है। यह समझ से परे है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने क्या सोचकर PCI में विनोद को शामिल किया है। इसका राजनीतिक लाभ कुछ भी हो, पार्टी समर्थकों यह फैसला अवश्य ही रास नहीं आएगा।