अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों की पढ़ाई में एक सिद्धांत बहुत प्रचलित है, वो सिद्धांत चीन को लेकर केंद्रित है, जिसे कहते हैं ‘Debt Trap Diplomacy’ यानी ‘कर्ज में फंसाने की कूटनीति’ l इसी का इस्तेमाल चीन करता आया है। इसका मतलब यह है कि पैसों की सहायता के रास्ते कूटनीतिक लाभ प्राप्त करना। चीन यह कैसे करता है? वह छोटे-छोटे राष्ट्रों को कुछ पैसे सहायता के नाम पर देता है। फिर धीरे-धीरे उसपर कर वसूलना शुरू करता है और जब कर की रकम बढ़ जाती है तो वह कब्जा करना शुरू कर देता है। कब्जा भी उस चीज का होता है, जिसको कोलेट्रल के रूप में रखा गया हो। श्रीलंका में हुआ अतिक्रमण और अधिग्रहण इसका सटीक उदाहरण हैं।
भारत ऐसी कूटनीति नहीं करता है। भारत जिसकी भी मदद करता है, समझदारी से करता है। वह पैसा देकर, वहां के लोगों को सशक्त बनाता है और फिर वहां का विकास करता है।
ये दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आमने सामने मिल गए और तब भारत ने चीन की इस षड्यंत्रकारी नीतियों पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला किया। भारत ने मंगलवार को यूएनएससी को बताया कि उसने हमेशा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए अपनी विकास साझेदारी के प्रयासों के साथ दुनिया भर में वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है और यह सुनिश्चित किया है कि इसकी सहायता चीन की तरह “कर्ज” नहीं पैदा करे।
मेक्सिको के वर्तमान अध्यक्षता के तहत आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का रखरखाव: बहिष्करण, असमानता और संघर्ष’ पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बहस को संबोधित करते हुए, विदेश राज्य मंत्री डॉ राजकुमार रंजन सिंह ने कहा कि, “भारत अपने पड़ोसियों के साथ है चाहे वो पड़ोसी हो, “नेबरहुड फर्स्ट” नीति या अफ्रीकी भागीदारों या अन्य विकासशील देशों के साथ हो। भारत उन्हें मजबूत बना रहा है और उन्हें बेहतर और मजबूत बनाने में मदद करने के लिए मजबूत समर्थन का स्रोत बना रहेगा।”
विदेश राज्य मंत्री राजकुमार सिंह ने कहा, “भारत ने हमेशा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए हमारी विकास साझेदारी के प्रयासों के साथ दुनिया भर में वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है और यह सुनिश्चित किया है कि हमारी सहायता से मांग-संचालन बना रहे, रोजगार सृजन और क्षमता निर्माण में योगदान दे और ऋणग्रस्तता पैदा न करे।”
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विदेश राज्य मंत्री राजकुमार सिंह की टिप्पणी चीन पर हमले के रूप में प्रतीत होती है। अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं का उपयोग कर चीन द्वारा कर्ज के जाल और क्षेत्रीय आधिपत्य पर वैश्विक चिंताएं शुरू हो हैं।
चीन एशिया से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक के देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए बड़ी रकम खर्च कर रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन BRI के प्रति आलोचनात्मक रहा था और यह विचार था कि चीन का “शिकारी वित्तपोषण” छोटे देशों को भारी ऋण के तहत छोड़ रहा है जिससे उनकी संप्रभुता खतरे में पड़ रही है।
विदेश राज्य मंत्री राजकुमार सिंह ने आगे कहा कि शांति और सुरक्षा बनाए रखने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को समावेशी बनाने की जरूरत है। शांति समझौते को लागू करने की प्रक्रिया मानवीय और आपातकालीन सहायता के प्रावधान से शुरू होगी। आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने और राजनीतिक और प्रशासनिक संस्थानों के निर्माण के साथ चलनी यह आगे की ओर चलनी चाहिए क्योंकि शासन में सुधार, सभी हितधारकों, विशेष रूप से महिलाओं और वंचित वर्गों को शामिल करते हैं।
उन्होंने कहा, “हमें संघर्ष की स्थितियों में मानवीय और विकासात्मक सहायता का राजनीतिकरण करने से भी बचना चाहिए। मानवीय कार्रवाई मुख्य रूप से मानवता, निष्पक्षता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होनी चाहिए।”
भारत ने इस बात पर भी जोर दिया कि संघर्ष के बाद के चरण में देशों के लिए संसाधनों का एक अनुमानित और बढ़ा हुआ प्रवाह सुनिश्चित करके अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को “बात पर चलना” चाहिए।
भारत ने यहां चीन के तथ्य चुराने सम्बंधित दावों पर हमला किया है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की इस षड्यंत्रकारी नीति पर हमला बोला है। भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले कुछ समय से आक्रामक रुख अपनाते हुए अपने विरोधियों पर हमला कर रहा है चीन पर किया यह हमला लम्बे समय तक चीन को याद रहने वाला है।
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