हर साल भारत ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ को याद कर 4 दिसंबर को नौसेना दिवस के रूप में मनाता है। आज ही के दिन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान आक्रमण को आरंभ करते हुए भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह में पाकिस्तानी जहाजों को भारी नुकसान पहुंचाया था। देखा जाए तो यह 7 और 8 सितंबर 1965 को भारतीय तटीय शहर द्वारका पर पाकिस्तानी नौसेना द्वारा एक नौसैनिक हमला “ऑपरेशन द्वारका” का प्रतिशोध था, जिसका प्रतिउत्तर उस दौरान भारतीय सेना नहीं दे पायी थी।
दरअसल, साल 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध 3 दिसंबर को शुरू हुआ था, जब पाकिस्तान वायु सेना ने पश्चिमी भारत में हवाई अड्डों और रडार स्टेशनों पर हमले किए। जिसके बाद भारत ने 4 दिसंबर की तड़के औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा करके जवाब दिया और कराची को तबाह कर दिया। नौसेना द्वारा दिखाई गयी इसी अदम्य वीरता और साहस के कारण यह दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया।
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पाकिस्तान को नहीं दिया था संभलने का मौका
4 दिसंबर को ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत भारतीय नौसेना ने करांची बंदरगाह को तहस-नहस कर दिया था और 4 जहाजों का डुबो दिया था, जिसमें उसका प्रमुख जहाज पीएनएस खैबर भी शामिल था। ऑपरेशन ट्राइडेंट मिशन की सफलता के पीछे सोवियत Osa मिसाइल नौकाएं थी, जो 4 SS-N-2 (P-15) स्टाइक्स मिसाइलों से सुसज्जित थी। 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर आक्रमण कर पाकिस्तानी नौसेना के कई युद्धपोत डुबो दिए और पाकिस्तानी नौसेना की कमर तोड़ दी। उन्हें भारत के खिलाफ कोई एक्शन लेने का मौका तो छोड़िए, उन्हें संभलने तक का मौका नहीं मिला।
INS किल्टन, कच्छल, निपट, निर्घाट और वीर ने PNS खैबर को डुबो दिया था, जिसमें 222 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। यही नहीं, भारतीय हमले के दौरान एक व्यापारी जहाज एमवी वीनस चैलेंजर के साथ PNS मुहाफिज भी डूबा और उसके साथ 33 पाकिस्तानी नाविक भी डूब गए थे। भारतीय नौसेना ने कराची स्ट्राइक ग्रुप का गठन किया था, जिसमें INS निपट, INS निर्घाट और INS वीर समेत तीन विद्युत-श्रेणी की मिसाइल नौकाएं शामिल थी। ये खतरनाक INS, सोवियत निर्मित SS-N-2B Styx सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस थे, जिनकी सीमा 40 समुद्री मील (74 किमी, 46 मील) है।
INS किल्टन, INS कच्छल और एक फ्लीट टैंकर एवं INS पोशक को मिला कर दो Arnala-Class के पनडुब्बी रोध दल बनाए गए थे। यह दल 25वीं मिसाइल बोट स्क्वाड्रन के कमांडिंग ऑफिसर कमांडर बबरू भान यादव की कमान में था। भारतीय नौसेना के सैनिकों ने हैरतअंगेज कारनामा दिखाते हुए कराची बंदरगाह के पास पहुंच कर आक्रमण किया और कराची बंदरगाह को नेस्तनाबूत कर दिया। भारतीय सेना को पता था कि पाकिस्तानी विमानों में रात में बमबारी करने की क्षमता नहीं थी, इसलिए यह योजना बनाई गई थी कि हमला शाम और सुबह के बीच होगा।
ऑपरेशन ट्राइडेंट में वायुसेना ने भी निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
यह स्ट्राइक ग्रुप कराची के तट से 250 समुद्री मील (460 किमी यानी 290 मील) दक्षिण में पहुंच कर दिन के दौरान पाकिस्तान वायु सेना की निगरानी सीमा के बाहर अपनी स्थिति को बनाए रखा। रात 10.30 बजे पाकिस्तान मानक समय के अनुसार, भारतीय स्ट्राइक ग्रुप कराची की ओर बढ़ा और बंदरगाह से लगभग 180 NMI (330 किमी, 210 मील) तक पहुंच गया। जिसके बाद पाकिस्तानी युद्धपोत की पहचान कर हमले किए गए। हमला करने के बाद सुबह होने से पहले तेजी से बेड़े को 150 किमी. वापस आ जाने को कहा गया, ताकि बेड़ा पाकिस्तान की पहुंच से दूर हो जाए। इस आक्रमण के बाद भारतीय नौसेना ने पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में अपना वर्चस्व कायम कर लिया था। यह अपनी तरह की पहली घटना थी, जिसने एक ही हफ्ते में किसी नौसेना ने अपने दुश्मन की नौसेना को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था।
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भारतीय वायु सेना ने ऑपरेशन ट्राइडेंट के दौरान भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब कराची के केमारी तेल टैंकों को उसी दिन एक स्वतंत्र ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना द्वारा उड़ा दिया गया था। हालांकि, पाकिस्तान अब भी इसकी पुष्टि नहीं करता है। कराची तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था। रिपोर्ट्स के अनुसार ऑपरेशन खत्म होते ही भारतीय नौसैनिक अधिकारी विजय जेरथ ने संदेश भेजा, ‘फॉर पीजन्स हैप्पी इन द नेस्ट। रीज्वाइनिंग।’ इस पर उनको जवाब मिला, ‘एफ 15 से विनाश के लिए: इससे अच्छी दिवाली हमने आज तक नहीं देखी।’ कहा जाता है कि कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों और सात रातों तक नहीं बुझाया जा सका।
#OnThisDay 50 years ago#OpTrident was conducted in which the missile boats of #KillersSquadron carried out an audacious attack off Karachi, #Nirghat #Nipat #Veer fired missiles to sink PN ships Khyber & Muhafiz.#04Dec is celebrated as #NavyDay to commemorate this victory.(3/n) pic.twitter.com/BKG26Fabov
— PRO Defence Mumbai (@DefPROMumbai) December 4, 2021
जब पाकिस्तान ने किया था द्वारका पर हमला
बता दें कि उससे पहले पाकिस्तान ने सन् 1965 के युद्ध में भारतीय सेना को मात देने के लिए कई तरीके अपनाए थे। युद्ध में पाकिस्तान कश्मीर और पंजाब में बुरी तरह मात खा रहा था। ऐसे में पाकिस्तान की नौ सेना युद्ध में हिस्सा नहीं ले पा रही थी, तो पाकिस्तान के सैन्य जनरलों ने सोचा कि नेवी को काम में लगाकर भारत का ध्यान उत्तरी मोर्चे से हटाया जा सकता है। जिसके बाद धूर्त पाकिस्तान ने ऑपरेशन द्वारका की प्लानिंग की। सात वॉरशिप्स का बेड़ा पाकिस्तान ने इस अटैक के लिए तैयार किया, पीएनएस बाबर, पीनएस खैबर, पीएनएस बद्र, पीएनएस जहांगीर, पीएनएस आलमगीर, पीएनएस शाहजहां और पीएनएस टीपू सुल्तान।
जबकि द्वारका में भारत का एक ही वॉरशिप तैनात था आईएनएस तलवार, जो उस वक्त पास ही के एक पोर्ट ओखा में रिपेयरिंग का काम करवा रहा था, जो अगले दिन हालात का जायजा लेने आ पाया था। पाकिस्तान का टारगेट था द्वारका में लगा राडार और लाइट हाउस। 7 सितम्बर को रात 11 बजकर 55 मिनट पर वॉरशिप्स से मिसाइलें और बम दागे जाने लगे। बीस मिनट तक यानी रात को 12 बजकर 15 मिनट तक ये जारी रहे। ज्यादातर मिसाइलें या बम मंदिर और रेलवे स्टेशन के बीच की तीन किलोमीटर की समुद्री रेत पर गिरे और बहुत से फटे ही नहीं।
पाकिस्तान के इस हमले में केवल रेलवे गेस्ट हाउस, एक सीमेंट फैक्ट्री और कुछ इमारतों को नुकसान पहुंचा। न राडार का वो लोग कुछ बिगाड़ पाए और न लाइट हाउस का, लेकिन पाकिस्तानी रेडियो ने प्रसारण भी कर दिया कि द्वारका शहर को बुरी तरह बर्बाद कर दिया गया है। जबकि हकीकत कुछ और ही था। तब भारत इस हमले का जवाब नहीं दे पाया था। सन् 1971 में पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाते हुए भारतीय सेना ने द्वारका पर हुए हमले का बदला लिया और कराची बन्दरगाह को नेस्तनाबूत कर विश्व को एक संदेश भी दे दिया कि भारतीय नौसेना को कम आंकना किसी भी देश के लिए घातक साबित हो सकता है।
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